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    नगर परिषद की कुर्सी पर पांच साल में बदले नौ अधिकारी, स्थायित्व बना चुनौती

    Updated: Thu, 04 Sep 2025 03:33 PM (IST)

    बक्सर नगर परिषद में कार्यपालक पदाधिकारी का पद पिछले पांच सालों में अस्थिर रहा है। नौ अधिकारियों के बार-बार बदलने से प्रशासन और विकास कार्य प्रभावित हुए हैं। अधिकारियों का कार्यकाल अक्सर तीन साल का होता है लेकिन बक्सर में 2021 से लगातार बदलाव हो रहे हैं। तबादलों और अदालती हस्तक्षेपों ने स्थिति को और जटिल बना दिया है।

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    नगर परिषद की कुर्सी पर पांच साल में बदले नौ अधिकारी, स्थायित्व बना चुनौती

    जागरण संवाददाता, बक्सर। नगर परिषद की कार्यपालक पदाधिकारी की कुर्सी पर पिछले पांच वर्षों में स्थायित्व का संकट बना हुआ है। इस अवधि में कुल नौ अधिकारियों ने बारी-बारी से कुर्सी संभाली और छोड़ी, जिससे नगर प्रशासन में निरंतरता और विकास कार्यों पर असर पड़ा है।

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    सामान्यत: किसी अधिकारी का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है, लेकिन बक्सर में हालात इसके ठीक उलट हैं। वर्ष 2021 से अब तक कार्यपालक पद पर लगातार बदलाव होते रहे हैं। 20 अप्रैल 2021 को प्रेम स्वरूपम ने ईओ पद का कार्यभार ग्रहण किया था। इसके बाद 8 अगस्त से 18 सितंबर तक मनोज कुमार पद पर रहे। फिर प्रेम स्वरूपम ने दोबारा पदभार संभालते हुए 11 मार्च 2024 तक कार्य किया।इसके बाद 11 मार्च को अमित कुमार ने कार्यभार संभाला और 5 जुलाई 2024 तक पद पर रहे। इसी बीच, 5 जुलाई से ही बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आशुतोष गुप्ता को भी कार्यभार सौंपा गया था।

    अक्टूबर में प्रशिक्षु आईएएस प्रतीक्षा सिंह ने 14 अक्टूबर से 9 नवंबर तक ईओ के रूप में कार्य किया।उनके बाद फिर से आशुतोष गुप्ता ने पदभार संभाला, लेकिन मई 2025 में वे सिवान के अनुमंडलाधिकारी बनाए गए और उनका तबादला हो गया। इसके बाद 14 जून को डुमरांव के ईओ मनीष कुमार को प्रभार सौंपा गया, जिन्हें 30 जून को स्थायी तौर पर बक्सर में पोस्ट किया गया। परंतु कुछ ही दिनों में उनका तबादला दाउदनगर हो गया।

    16 अगस्त को कुमार ऋत्विक ने ईओ का कार्यभार संभाला, लेकिन मनीष कुमार ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। न्यायालय के निर्देश पर 3 सितंबर को मनीष कुमार ने पुनः नगर परिषद का कार्यभार ग्रहण कर लिया। तबादलों और अदालती हस्तक्षेपों के बीच नगर परिषद की कार्यप्रणाली प्रभावित हो रही है। स्थायी नेतृत्व की कमी के कारण विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है, जिससे आमजनता में भी नाराजगी देखी जा रही है। स्थायित्व की कमी नगर प्रशासन की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है।

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