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    धर्म के उन्नायक थे नेहनिधि पूज्य मामा जी

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 05 Dec 2021 07:17 PM (IST)

    बक्सर पौराणिक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक स्थल बक्सर से संबद्ध नगर के पांडेयपट्टी निवासी राष्ट्रस

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    धर्म के उन्नायक थे नेहनिधि पूज्य मामा जी

    बक्सर : पौराणिक, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक स्थल बक्सर से संबद्ध नगर के पांडेयपट्टी निवासी राष्ट्रसंत साकेतवासी परम पूज्य श्रीनारायण दास भक्तमाली उपाख्य नेहनिधि मामा जी धर्म के उन्नायक थे। वे देश के एक ऐसे आध्यात्मिक संत थे, जो अपनी आध्यात्मिक उपलब्धियों के लिए राष्ट्रीय स्तर की सीमा को पार कर अंतर्राष्ट्रीय अस्तित्व प्राप्त कर चुके थे।

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    बक्सर, पटना, अयोध्या, मथुरा, वृंदावन धाम, ग्वालियर आदि स्थित विभिन्न आध्यात्मिक आश्रमों के संस्थापक और संचालक नेहनिधि मामा जी विभिन्न धार्मिक मंचों के प्रणेता, निर्माता, निर्देशक व अभिनेता के साथ-साथ भजनों व कीर्तनों के लोकगायक के रूप में भी अति लोकप्रिय थे। संत भी मानते हैं कि उनमें धर्म के प्रति लौकिक एवं सामाजिक कर्तव्य में निष्ठा पूरी तरह से विद्यमान थी। इनकी कृत रचनाओं में साहित्य-भक्ति-भाव की त्रिवेणी धारा समाहित है। दशक पूर्व ब्रह्मलीन होने के बाद भी उनकी धरा पर आध्यात्मिकता और धार्मिक सहिष्णुता आज भी कायम है और रहेगी।

    साहित्यिक प्रतिभा के धनी

    अपने जीवन काल में उन्होंने जय विजय, श्री गौरी शंकर विवाह, भक्त नरसिंह मेहता, श्रीचंद्रहास, गोस्वामी तुलसी दास आदि समेत दर्जनों नाटकों के साथ-साथ भक्त भगवंत गुण कीर्तन की 11 पुस्तकों के अलावा गौरांग चरित, शंभू चरित, शिव विवाह आदि पदावली के अतिरिक्त सीता जी लाडली के पक्ष से सीता सहचरी सहित अनेकों पठनीय उत्कृष्ट पुस्तकों के सृजन किए।

    जिह्वा पर तैरती थी मानस की चौपाई

    वे प्रतिपल श्रीरामचरितमानस की चौपाइयों को उद्घोषित करते रहते थे। हर बात पर एक चौपाई सहज ढंग से उनकी जिह्वा पर ऐसे तैरती हुई आ जाती थी जैसे कि उनके मानस पटल पर कंप्यूटर की तरह संचालित हो। वे श्रीमद् भागवत पुराण के भी अच्छे ज्ञाता थे। बल्कि, विभिन्न पुराणों के जानकार विद्वतजन यदाकदा उनके (नया बाजार स्थित श्रीसीताराम विवाह महोत्सव) आश्रम में आकर अपनी शंकाओं का समाधान भी किया करते थे।

    धर्म में माता-सीता को माना बहन

    महाराज जी के कृपापात्र परम शिष्य डा. रामनाथ ओझा बताते है कि धर्म में श्री किशोरी जी के साथ उनका नाता भाई-बहन का था। बल्कि, लीला मंच के माध्यम से इसकी बखान या अभिनय के साथ प्रस्तुतिकरण भी प्रकट करते थे। यही वजह रही कि विश्व प्रसिद्ध रामकथा के प्रवक्ता मुरारी बापू समेत अनेक आध्यात्मिक क्षेत्र के मनीषियों ने उन्हें मामा जी कहकर संबोधित करना शुरू कर दिए और वे भी सभी को अपना स्नेह, सगे मामा की तरह ही बांटते थे।

    प्रबुद्धों ने कहा, महर्षियों की श्रृंखला के अंतिम विश्वामित्र

    प्रबुद्ध साहित्यकार सह वरीय अधिवक्ता रामेश्वर प्रसाद वर्मा का मानना है की प्रात: स्मरणीय परमपूज्य साकेतवासी श्रीनारायण दास भक्तमाली उपाख्य मामा जी महर्षियों की पारंपरिक श्रृंखला में इस विश्वामित्र तपोवन के अंतिम विश्वामित्र थे, जो आध्यात्मिक परिवेश के तहत मानवीय संवेदनाओं के प्रति सतत सजग प्रतिबद्ध थे।