भगवान श्रीकृष्ण को द्रौपदी ने बांधी थी राखी
बक्सर। रक्षा बंधन का पर्व श्रावणी पूर्णिमा के दिन न सिर्फ भारत बल्कि नेपाल और मारिशस जैसे कई
बक्सर। रक्षा बंधन का पर्व श्रावणी पूर्णिमा के दिन न सिर्फ भारत बल्कि नेपाल और मारिशस जैसे कई देशों में पूरे हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। रक्षा की कामना लिए यह एक ऐसा बन्धन है जो प्राचीन काल से इस सृष्टि पर मौजूद है। प्राचीन काल से ही यह पर्व भाइ-बहन के निश्चल स्नेह के प्रतीक के रूप में जाना जाता है और इन धागों के साथ हर भाई बहन की रक्षा का वादा करता है तो बहनें भी भाई की रक्षा की मंगलकामना करती हैं।क्या है रक्षाबन्धन का महत्व
पुराणों में रक्षा बंधन के संदर्भ में कई कथायें चर्चित हैं जिनमें माता लक्ष्मी द्वारा भगवान विष्णु को राजा बली से मुक्त कराने के लिए राखी बान्धे जाने की चर्चा की गई है। एक अन्य कथा के अनुसार द्वापर युग में भी भगवान श्री कृष्ण को द्रौपदी द्वारा राखी बांध कर भाई बनाये जाने की जिक्र है जिसको लेकर श्री कृष्ण ने चीर हरण के समय द्रौपदी की रक्षा की थी। सिकन्दर महान की पत्नी ने पुरूवास को रक्षासूत्र में बांध कर अपने पति की रक्षा का वचन लिया था और पुरूवास ने भी पवित्र घागों के महत्व को सम्मान देते अपनी मुंहबोली बहन से किए गए वचन को निभाया था। मुगल शासन काल में भी इन धागों के महत्व की इतिहास के पन्नों में चर्चा की गई है। जब राजपूतों और मुगलों के बीच लड़ाई चल रही थी तब चितौड़ की महारानी कर्णावती ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेज कर मदद मांगी थी। तब हुमायूं ने भी राखी के कच्चे धागों की लाज रखते हुए महारानी कर्णावती की मदद की थी और अपनी सेना को वापस बुला ली थी।
पूरे देश में मनाया जाता है त्योहार
भाई-बहन के अटूट प्यार का प्रतीक रक्षबन्धन पूरे देश में मनाया जाता है भले ही देश के अलग-अलग भागों में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। उत्तरांचल में इसे श्रावणी के नाम से जाना जाता है तो राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां कच्चे दूध से अभिमंत्रीत रेशम की डोर बांधने के बाद हीं भोजन करने की परम्परा है। तमिलनाडू, केरल और उड़ीसा में यह अवनि अवितम के नाम से मनाया जाता है वहीं, कुछ जगह हरियाली तीज के नाम से भी जाना जाता है और इसी दिन से ठाकुर जी का झूला दर्शन बंद होता है।
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