Litti Chokha: बक्सर में भगवान श्रीराम ने खाया था लिट्टी-चोखा, जानिए क्या है पंचकोशी यात्रा की पौराणिक कथा
Buxar Panchkoshi Yatra आध्यात्म की नगरी बक्सर को काशी का दूसरा रूप यूं ही नहीं कहा जाता। लिट्टी चोखा का प्रसाद इसलिए भी अत्यंत पवित्र है क्योंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है जिसके रजकण में अनंत यज्ञ किए गए।
गिरधारी अग्रवाल, बक्सर । आध्यात्म की नगरी बक्सर को काशी का दूसरा रूप यूं ही नहीं कहा जाता। आज का प्रसाद इसलिए भी अत्यंत पवित्र है, क्योंकि यह उस पवित्र धरती पर तैयार होता है जिसके रजकण में अनंत यज्ञ किए गए। गुरुवार को पंचकोशी परिक्रमा के अंतिम दिन विश्वामित्र की तपोस्थली आस्था की रंग में पूरी तरह से डूबी हुई थी। उपलों के बीच सिंकती लिट्टी की सोंधी खुशबू फिजां में घुल रही थी।
सुबह से तैयारी हो जाती शुरू
तड़के से ही सुलगते उपलों की अग्निहोत्र से पूरा आकाश ढंक पड़ा था जो श्यामल रंग बिखेर रहा था। इस दौरान उत्तरायणी मां गंगा के किनारे का यह दृश्य काफी मनोरम बना हुआ था। लिट्टी-चोखा के इस पावन महोत्सव में शहर का प्रायः हर तबका डूबा हुआ था। पंचकोशी परिक्रमा में शामिल श्रद्धालुओं ने पहले गंगा स्नान किया फिर महाप्रसाद बनाने में जुट गए। जिसे देख ऐसा लग रहा था जैसे आस्था की अमृत बूंदों से पूरे तपोवन में हरियाली छा गई हो।
लिट्टी चोखा खाने की है परंपरा
कहते हैं की जिस धरा पर यज्ञ रक्षा हेतु श्री राम लक्ष्मण कदम-कदम चले हो और उनके चरणों की पवित्रता समाहित हुई हो ऐसी पावन धरा पर तैयार लिट्टी-चोखा का महाप्रसाद से भला कोई अछूता क्यों रहे। यह जीव के सभी पांचों तत्वों को पवित्र कर देती है। इसी अंतर्निहित भाव को समेटे पंचकोशी परिक्रमा का एक अलग ही महत्व है। उसमें भी लिट्टी-चोखा महोत्सव को हर कोई भुनाना चाहता है। तभी तो भोजपुरी स्पेशल व्यंजन लिट्टी-चोखा खाने की परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी सराबोर होते दिखती है। निकटवर्ती प्रान्त यूपी के गहमर निवासी राम बहादुर सिंह का परिवार मेला का उत्सवी माहौल देखकर फूले नहीं समा रहा था। इस दौरान जो दृश्य बयां किया उसमें तो जैसे पवित्र वाहिनी मां गंगा की शीतल धारा से सुधा ही बरस रही हो।
रहमतुल्लाह अल्लैह की दर पर भी पक रहा लिट्टी-चोखा
रहमतुल्लाह अल्लैह की दर पर बन रहा श्री राम का प्रसाद लिट्टी-चोखा, आस्था के समंदर में आपसी सौहार्द और प्रेम की गाथा बयां कर रहा है। किला मैदान के आस-पास अधिक भीड़ हो जाने से यहां भी लोग लिट्टी चोखा का प्रसाद पूरे मनोभाव से बनाने में जुट हुए हैं। थी। इसके अलावा नाथ बाबा घाट, रानी घाट, बुढ़वा घाट समेत सुमेश्वर घाट, सिपाही घाट आदि स्थलों के आसपास भी भक्तजन लिट्टी की सिंकाई कर रहे हैं।
श्रीरामकी आस्था से जुड़ी हुई है बक्सर की पंचकोशी यात्रा
पांच दिवसीय पंचकोशी यात्रा भगवान श्रीराम की बक्सर यात्रा से जुड़ी है। इस बाबत पंचकोशी परिक्रमा समिति के अध्यक्ष बसांव पीठाधीश्वर अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने कहा कि ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों का वध करने के बाद श्रीराम और लक्ष्मण जब दुबारा सिद्धाश्रम (बक्सर का पौराणिक नाम) आए तब उन्होंने पांच ऋषि-मुनियों के आश्रम में पांच रात गुजारी। इस दौरान जहां भी उन्होंने भोजन किया। उसे पंचकोशी यात्रा के दौरान प्रसाद के रूप में भगवान को भोग लगाने की परंपरा है। यात्रा के अंतिम दिन मार्गशीष कृष्णपक्ष की नवमी को चरित्रवन में महर्षि विश्वामित्र के आश्रम में उन्होंने लिट्टी-चोखा का भोजन किया था। इसी वजह से इस दिन भगवान को लिट्टी-चोखा का भोग लगा प्रसाद बांटा जाता है।
बड़ी संख्या में आते हैं श्रद्धालु
मेला में भाग लेने के लिए सुबह बक्सर आने वाली हर ट्रेन से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उतर रहे हैं। पटना के अशोक नगर से अपनी बेटी और सास के साथ पहुंची पिन्नु दिव्या ने बताया कि वह दूसरी बार यहां आई हैं, उनका यहां ननिहाल है और इस आयोजन को पिछले साल देखा था सो रहा नहीं गया। इसलिए लिट्टी-चोखा बनाने की पूरी तैयारी करके आई है। इस बार भीड़ पिछले साल से ज्यादा है। वहीं, पटना दीघा के पास से पहुंचीं कुसुम देवी एवं पटना राजाबाजार की ही सावित्री देवी ने कहा कि वे दोनों बहनें पिछले 25 साल से लगातार यहां आ रहीं हैं। इस बार साथ में अपनी भाभी को लेकर भी आई हैं।