बिहार के बक्सर में निकली बंदर की शव यात्रा, भगवान राम से जुड़ी है वानर के अंतिम संस्कार करने की कहानी
बक्सर में करंट लगने पर एक बंदर की मौत हो गई। ऐसे में लोगों ने एक इंसान की तरह बंदर की शव यात्रा निकाली और उसका अंतिम संस्कार किया। जिले में लोग बंदर को हनुमान मानकर पूजते हैं। यही वजह है कि वे परेशान करने पर भी बंदर को नहीं मारते हैं। अगर किसी बंदर की मौत हो जाती है तो लोग उसका अंतिम संस्कार मनुष्यों की तरह करते हैं।

बक्सर, जागरण संवाददाता। मुनि विश्वामित्र के तपोस्थली बक्सर में बुधवार को एक बंदर की शव यात्रा निकाली गई। बंदर की करंट लगने से मौत हो गई थी, ऐसे में हिंदू रीति-रिवाज से बंदर का गंगा किनारे अंतिम संस्कार किया गया।
जानकारी के अनुसार, स्थानीय गायत्री नगर इलाके स्थित बालगृह परिसर में करंट लगने एक बंदर की मौत हो गई थी। इसकी सूचना मिलने के बाद गृह की अधीक्षिका रेवती कुमारी ने वहां पहुंच कर पूरे धार्मिक रीति-रिवाज के साथ अपने सहकर्मियों के सहयोग से बंदर का अंतिम संस्कार कराया।
बंदर के पार्थिव शरीर पर एकरंगा और रामनामा (साधुओं के इस्तेमाल में आने वाली चादर) देकर शव को गंगा किनारे जेल घाट पर दाह संस्कार श्रद्धापूर्वक कराया।
इस मौके पर मृत आत्मा के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में बाल कल्याण समिति की सदस्य योगिता कुमारी और डा. शशांक शेखर, दीनबंधु प्रधान, सौरभ कुमार, नीरज कुमार तथा गार्ड कमलेश कुमार आदि मौजूद रहे।
बक्सर के हर मुहल्ले में है बंदरों का वास
बता दें कि स्थानीय निवासी बंदर और लंगूरों को भगवान हनुमान का प्रतिरूप मानकर पूजा करते हैं। भगवान राम के युवा अवस्था का साक्षी रही बक्सर की धरती पर स्थानीय आबादी के बीच बंदरों का काफी समय से निवास है।
शहर के प्राय: हर इलाके में बंदरों का वास है। छोटी-मोटी परेशानियों के बावजूद लोग बंदरों को बर्दाश्त करते रहते हैं। पहले भी कई बार बंदरों की मृत्यु होने पर स्थानीय निवासियों ने आपसी सहयोग से उनका मनुष्यों की तरह अंतिम संस्कार संपन्न कराया है।
वहीं, बक्सर में मुनि विश्वामित्र का आश्रम था। यहीं पर भगवान राम ने पहली बार किसी राक्षस का वध किया था। उन्होंने राक्षसी ताड़का को मारकर इस क्षेत्र को असुरों से मुक्ति दिलायी थी। इस प्रकार भगवान राम ने अपने अवतार के प्रयोजन के लिए पहला कदम इसी जगह उठाया था।
बक्सर में राम चरण चिन्ह
राजा जनक की ओर से आयोजित सीता के धनुष स्वयंवर में भाग लेने के लिए भगवान राम और लक्ष्मण बक्सर से ही मुनि विश्वामित्र के साथ रवाना हुए थे। बक्सर में भगवान राम के चरण चिह्न और रामेश्वर नाथ मंदिर हैं, जहां दर्शन-पूजन को हर साल लाखों श्रद्धालु बिहार और उत्तर प्रदेश के अलावा नेपाल तक से आते हैं।
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