बक्सर के लाल एसएन सिन्हा ने रखी थी आधुनिक बिहार की नींव
बक्सर बिहार का इतिहास डॉ.सच्चिदानन्द सिन्हा से शुरू होता है। क्योंकि राजनीतिक स्तर पर स
बक्सर : बिहार का इतिहास डॉ.सच्चिदानन्द सिन्हा से शुरू होता है। क्योंकि, राजनीतिक स्तर पर सबसे पहले उन्होंने ही बिहार की बात उठाई थी। डॉ. सिन्हा जब वकालत पास कर इंग्लैंड से लौटे तो बिहार की आवा•ा को बुलंद करने के लिए जनजागरण का शंखनाद किया। अंतत: 12 दिसम्बर 1911 को ब्रिटिश सरकार ने बिहार और उड़ीसा के लिए एक लेफ्टिनेंट गवर्नर इन काउंसिल की घोषणा कर दी। डॉ. सिन्हा का बिहार के सृजन में वही स्थान माना जाता है, जो बंगाल के नवजागरण में राजा राममोहन राय का है।
स्वतंत्रता हासिल होने के बाद भारत को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में स्थापित करने के लिए संविधान गढ़ना कोई आसान काम नहीं था। यह पूरे बिहार का सौभाग्य है कि इतनी महती भूमिका को निभाने के लिए बनी समिति के पहले कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में बक्सर के मुरार गांव में जन्मे डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को चुना गया। डॉ.सिन्हा अपनी भूमिका में पूरी तरह खरे उतरे, लेकिन दुर्भाग्य से जब संविधान की मूल प्रति तैयार हुई तो तब वे पटना में काफी बीमार पड़ गए। उसी समय उनके हस्ताक्षर के लिए संविधान की मूल प्रति को विशेष विमान से पटना में उनके आवास पर लाया गया। वर्ष 1946 में बिहार लेगिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य रूप में निर्वाचित होने वाले डॉ.सच्चिदानंद सिन्हा ने भारतीय संविधान सभा के प्रथम सत्र की अध्यक्षता की। 14 फरवरी 1950 को उन्होंने भारतीय संवैधानिक दस्तावेज पर हस्ताक्षर किया। चौगाईं प्रखंड के मुरार में हुआ था जन्म चौगाईं प्रखंड अन्तर्गत मुरार गांव में 10 नवंबर 1871 को यहां के प्रसिद्ध कायस्थ कुल में डॉ.सिन्हा का जन्म हुआ था। इनके पिता बख्शी शिवप्रसाद सिन्हा डुमरांव महाराज के मुख्य तहसीलदार थे। डॉ. सिन्हा की प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा मुरार गांव के ही स्कूल में हुई थी। इसके बाद जिला स्कूल आरा से मैट्रिक की परीक्षा पास किए। महज 18 वर्ष की उम्र में 26 दिसंबर 1889 को बिहार से उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले प्रथम युवा छात्र थे। वहां से तीन साल बैरिस्ट्री की पढ़ाई कर 1893 में स्वदेश लौटे। इसके बाद लगातार दस वर्षों तक इन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत की प्रैक्टिस की। बाद में इन्होंने इंडियन पीपुल्स व हिन्दुस्तान रिव्यू नामक सामाचार पत्र का कई वर्षों तक संपादन कार्य किया। सन् 1921 ई. में ये बिहार के अर्थ सचिव व कानून मंत्री का पद सुशोभित किए। तत्पश्चात, पटना विश्वविद्यालय के उप कुलपति के पद पर रहते हुए डॉ.सिन्हा ने सूबे में शिक्षा को नया आयाम दिया। एक जन्मजात चक्रवर्ती के नाम से चर्चित बिहार के इस महान सपूत का निधन छह मार्च 1950 ई. को हो गया।
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