Jitiya Date 2025: जितिया की तिथि को लेकर विद्वानों में मतभेद, 14 या 15 तारीख, किस दिन करें व्रत?
बक्सर में जीवित्पुत्रिका व्रत की तिथि को लेकर लोगों में संशय बना हुआ है। कुछ विद्वानों के अनुसार यह व्रत 14 तारीख को मनाया जाएगा क्योंकि वाराणसी पंचांग के अनुसार यही सही तिथि है। वहीं कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि 15 तारीख को व्रत करना अधिक श्रेयस्कर होगा। विद्वानों के मतभेद के कारण लोगों में भ्रम की स्थिति है।

गिरधारी अग्रवाल, बक्सर। शास्त्र में आश्विन (कुंवार) कृष्णपक्ष की उदयाष्टमी तिथि में जितिया, जीमूत वाहन अथवा जीवित्पुत्रिका व्रत करने का विधान है। इससे पहले का दिन नहाय-खाय और दूसरा दिन खर जितिया कहलाता है। आमलोगों में जीवित्पुत्रिका व्रत की तिथि को लेकर संशय बरकरार है कि यह 14 को है या 15 तारीख को। इस पर विद्वतजनों के भिन्न-भिन्न विचार हैं।
आचार्य कृष्णानंद शास्त्री "पौराणिक", ज्योतिषाचार्य पंडित नरोत्तम द्विवेदी, प्रसिद्ध कर्मकांडी अमरेंद्र कुमार शास्त्री उर्फ साहेब पंडित, पंडित पुरुषोत्तम शास्त्री आदि का कहना है कि जीवित्पुत्रिका व्रत कथा भविष्योत्तर पुराण से ली गई है, जिसमें स्पष्ट है कि अश्विन कृष्ण सप्तमी से रहित शुभ अष्टमी तिथि को ब्रह्म भाव प्राप्त है।
14 को सप्तमी तिथि सुबह 8:41 बजे तक है, जो पूरी तरह सप्तमी से विद्ध है। 15 को उदयाष्टमी है और संपूर्ण नवमी है, लेकिन अगले दिन उदय नवमी नहीं है, सो पारण हेतु भी उचित है।
अर्थात नवमी तिथि की हानि है और दशमी तिथि में पारण का निषेध नहीं मिलता है। ऐसी स्थिति में सप्तमी रहित (के बिना) उदयाष्टमी में 15 तारीख दिन सोमवार को जीवित्पुत्रिका व्रत करना श्रेयस्कर होगा।
वहीं, प्रसिद्ध कर्मकांडी पंडित रविन्द्र कुमार शास्त्री, उपेंद्र कुमार शास्त्री, पंडित शैलेंद्र कुमार मिश्र, पंडित वीरेंद्र पांडेय, पंडित अनिल कुमार पांडेय आदि का कहना है कि अपने यहां किसी भी पर्व-त्योहार का आधार वाराणसी पंचांग है। जिसके तहत पंचांग में उद्धृत माता और पुत्र के इस अगाध प्रेम का जीवित्पुत्रिका व्रत 14 तारीख दिन रविवार को मनाया जाएगा।
इसी दिन माता-बहनों द्वारा संतान की सुरक्षा एवं स्वास्थ्य कल्याण के लिए 24 घंटे का निर्जला उपवास रखा जाएगा। इसके पहले दिन व्रती नहाय-खाय की विधि पूरा करेंगी। व्रत का पारण सोमवार को होगा। हालांकि विद्वतजनों के इस मतभेद को लेकर कुछ लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया भी जारी की है।
अधिवक्ता सुदर्शन वर्मा, अधिवक्ता अविनाश सिन्हा, शिक्षाविद राजेश कुमार आदि का कहना है कि स्थानीय विद्वत परिषदों को चाहिए कि वे सामूहिक रूप से उचित निर्णय लेकर दें, ताकि जनता भ्रमित न हो और इसका दुष्प्रभाव न पड़े।
जीवित्पुत्रिका व्रत रखने की विधि:
आचार्यों ने बताया कि सबसे पहले व्रती महिलाएं पवित्र होकर संकल्प के साथ प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजन स्थल की लिपाई करें, फिर शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूत वाहन की कुछ निर्मित मूर्ति स्थापित कर पीली व लाल रूई से उसे अलंकृत करें।
मिट्टी या गाय के गोबर से चिल्होरिन (मादा चील) और सियारिन की मूर्ति बनाकर उसका मस्तिष्क लाल सिंदूर से विभूषित कर दें। तत्पश्चात धूप, अक्षत, फूल, माला व विविध प्रकार की नैवेद्य सामग्री से पूजन प्रारंभ करें।
आचार्य ने कहा कि पूजन के बाद व्रत महत्व की कथा श्रवण करनी चाहिए और दान पुण्य के साथ अगले दिन सूर्योदय उपरांत व्रत का पारण कर लें।
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