बच्चों की जन्मजात विकृति दूर करने के लिए सही समय पर पहचान जरूरी
बक्सर नवजात शिशुओं को शारीरिक विकृति से बचाने के लिए सरकार कई योजनाएं चलाती है और
बक्सर : नवजात शिशुओं को शारीरिक विकृति से बचाने के लिए सरकार कई योजनाएं चलाती है और इसमें संपूर्ण टीकाकरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन, उसके बाद भी कुछ बच्चों में शारीरिक व मानसिक विकृति देखने को मिल जाती है। जन्म के शुरुआती दौर में इन विकृतियों की पहचान करना मुश्किल होता है, लेकिन सही समय पर इन विकृतियों की पहचान हो जाए, तो उचित इलाज से इनको दूर किया जा सकता है। जिससे नवजात को नया जीवन दान दिया जा सकता है। इसके लिए विभाग द्वारा फैसिलिटी एवं समुदाय दोनों स्तरों पर ऐसे नवजातों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।
सिविल सर्जन डॉ. जितेंद्र नाथ ने बताया जन्मजात विकृतियों का सही समय पर पहचान करना जरुरी होता है। नवजात को समुचित इलाज प्रदान कर उनकी विकृति को दूर किया जा सकता है। समुदाय स्तर पर आशा घर-घर जाकर जन्मजात विकृति वाले नवजातों की पहचान करती है। इसके लिए आशाओं का क्षमतावर्धन भी किया गया है। फैसिलिटी स्तर पर भी संस्थागत प्रसव के बाद नवजातों में जन्मजात विकृति की पहचान की जाती है। चिन्हित नवजातों को विशेष इलाज प्रदान कराने के लिए जिले में स्थित सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) में रेफर किया जाता है। एसएनसीयू में ऐसे बच्चों के लिए पर्याप्त सुविधा उपलब्ध है।
गर्भावस्था के दौरान नियमित जांच जरूरी
डॉ.जितेंद्र नाथ ने बताया जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा होने वाले बच्चों का शरीर गर्भावस्था के दौरान या तो पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता या फिर जन्म के दौरान ऐसे बच्चों में किसी ना किसी तरह का शारीरिक अपंगता देखने को मिलती है। जन्मजात विकृतियों को रोकने के लिए गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान व गर्भधारण करने से पहले भी नियमित जांच के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जा कर करवाने चाहिए। ताकि बच्चों में होने वाले जन्मजात विकृतियों से बचा जा सके। उन्होंने बताया, गर्भावस्था के दौरान हाइपर टेंशन, डायबिटीज, थॉयरायड, एचआइवी एड्स, हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों के लिए जांच की जानी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान आवश्यक टीकाकरण भी करवाना चाहिए।
विकृतियों में शामिल होती है कई जटिल लक्षण
एएनसीयू प्रभारी डॉ. आर के गुप्ता ने बताया जन्मजात विकृतियों में कई जटिलताएं शामिल होती हैं। जिसमें मल त्याग करने के रास्ते का नहीं बनना, श्वास नली में अधिक समस्या, पैरों का मुड़ा होना, सिर का आकर सामान्य से अधिक हो जाना, ह्रदय में छिद्र या हृदय संबंधित गंभीर समस्या का होना एवं रीढ़ की हड्डी की विकृति जैसे अन्य रोग भी शामिल है। एसएनसीयू में विशेषज्ञ चिकित्सकों की देखरेख में इलाज होता है। लेकिन, नवजात बच्चों में यदि स्थिति अधिक नाजुक होती है तब एसएनसीयू से नवजात को नजदीकी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में रेफर करने का भी प्रावधान किया गया है। इसके लिए सभी जिलों के एसएनसीयू को राज्य की तरफ से निर्देशित भी किया गया है।
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