Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Holi 2023: होली पर शाकाहारी बन जाता है बक्सर का यह गांव, पुरखों की अनोखी परंपरा को बरसों से निभा रहे लोग

    By Satendra KumarEdited By: Prateek Jain
    Updated: Sun, 05 Mar 2023 07:35 PM (IST)

    Holi Festival 2023 होली हमारे देश के सबसे बड़े त्योहारों मे से एक है लेकिन इसे मनाने का अंदाज स्थान के अनुसार अलग-अलग है। बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत सोवां एक ऐसा गांव है जहां होली में पूरा गांव शुद्ध शाकाहारी बन जाता है।

    Hero Image
    बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत सोवां एक ऐसा गांव है।

    कृष्णाब्रह्म (बक्सर), सत्येंद्र कुमार: होली हमारे देश के सबसे बड़े त्योहारों मे से एक है, लेकिन इसे मनाने का अंदाज स्थान के अनुसार अलग-अलग है।

    बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत सोवां एक ऐसा गांव है, जहां होली में पूरा गांव शुद्ध शाकाहारी बन जाता है। इस गांव में होली के मौके के लिए पीढ़ियों से पकवान तय हैं। वही पकवान लोग खाते-खिलाते हैं।

    आजकल होली के अवसर पर मांसाहारी भोजन का चलन भी बढ़ चला है, लेकिन सोवां गांव के लोग दूसरे मौकों पर भले मीट-मांस वाला भोजन कर लें, लेकिन होली में इससे पूरी तरह दूर रहते हैं।

    गांव में बरसों  से चली आ रही है पुरानी परंपरा

    गांव की परंपरा ऐसी है कि यहां किसी के भी घर में होली के दिन मीट-मुर्गा नहीं बनाया जाता है। केवल पुआ-पकवान बनाए जाते हैं। गांव के लोगों का आपसी सौहार्द है कि यहां हर बिरादरी के लोग रहते हैं, लेकिन होली के दिन हर जाति-समुदाय के लोग इस परंपरा का सम्मान करते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    इसके पीछे कोई धार्मिक मान्यता नहीं, बल्कि लोगों का परंपरा के प्रति लगाव जुड़ा है। गांव के लोग बाबा भुअर नाथ की पूजा करते हैं और सात्विक होली मनाते हैं।

    गांव के बुजुर्ग सुदर्शन सिंह बताते हैं कि जब से होश संभाला है, तब से इसी परंपरा को देखते आ रहे हैं। बचपन में पिताजी भी होली के दिन अपने साथ बाबा भोलेनाथ के मंदिर में लेकर जाते थे।

    हालांकि, सात्विक होली की वजह तो वे नहीं बता पाए, लेकिन इतना बताया कि जो परंपरा वे लोग निभाते आ रहे हैं, उसे आगे भी निभाना है। 

    परदेस से भी गांव होली मनाने आते हैं प्रवासी

    गांव में सात्विक होली का इतना महत्व है कि परदेश में बस चुके गांव के लोग भी होली यहीं आकर मनाने का प्रयास करते हैं। गांव के मुकेश यादव ने बताया कि दूसरे प्रदेश में नौकरीपेशा तथा व्यवसाय से जुड़े लोग पर्व के मौके पर गांव जरूर आते हैं।

    सुबह में रंग-गुलाल खेलने के बाद दोपहर बाद स्नान-ध्यान से निवृत हो नए वस्त्र धारण कर भुअर नाथ के मंदिर में लोग मत्था टेकते हैं। इसके बाद मंदिर में विराजमान शिवलिंग पर अबीर-गुलाल चढ़ाकर पूजा-अर्चना करते हैं, फिर इसके बाद एक-दूसरे को अबीर गुलाल लगाते हैं।

    कहते हैं ग्रामीण

    होली पूरी तरह से सात्विक पर्व है। गांव में सभी बाबा भुअरनाथ के भक्त हैं। यहां लोग शिवलिंग पर अबीर-गुलाल चढ़ाने के बाद प्रेम और भाईचारे के साथ पर्व मनाते हैं। जनार्दन शर्मा, बाबा भुअर नाथ मंदिर के पुजारी। 

    होली के दिन पूरे गांव में मांसाहार भोजन नहीं बनता। लोग पुरखों की इस परंपरा का पालन कर रहे हैं और आने वाली पीढ़ी को भी प्रेरित कर रहे हैं। लाली यादव, ग्रामीण 

    गांव के कई लोग परदेश और विदेश में रोजी-रोजगार के लिए गए हुए हैं। वे लोग पर्व के मौके पर यहां आते हैं और परंपरा का निर्वहन करते हैं। -  मोहन प्रसाद, ग्रामीण 

    अच्छी बात है कि गांव की युवा पीढ़ी अपने पूर्वजों से मिली परंपरा का पालन कर रही है। यही वजह है कि बाबा भुअरनाथ की कृपा से गांव में सब खुशहाल हैं। शिव नंदन महतो, ग्रामीण