डाक टिकटों का संग्रह : शौक ही नहीं पूंजी निवेश भी
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हाईलाइटर :: ई-मेल, एसएमएस के दौर में डाक टिकटों की जरूरत भले ही कम हो गई हो लेकिन उनका महत्व नहीं घटा है। डाक टिकटों में दर्ज होती है हमारी राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान। पुराने डाक टिकट बन जाते हैं हमारी विरासत जिनकी बोली लगती है लाखों-करोड़ों में।
कंचन किशोर, बक्सर : क्या आप जानते हैं कि एक स्टाम्प (डाक टिकट) आपको पूरी दुनिया समझाती है। रंगारंग और उत्साहवर्द्धक डाक टिकटों में असीम ज्ञान छुपा हुआ है। विशेषज्ञों की माने तो 50 डाक टिकट हमे जो ज्ञान सहजता से व शौकिया दे देते हैं उसके लिए कम से कम पांच किताबें पढ़नी पड़ती हैं। आश्चर्य किंतु यह सत्य है कि यही डाक टिकट समय बीतने के साथ ही बहुमूल्य पूंजी निवेश में बदल जाते हैं।
हर देश अपने किसी महापुरुष, मेडिकल क्षेत्र की उपलब्धि, फ्लोरा-फाउना (वनस्पतियों और वन्य जीवों), प्रकृति, साइंस, दूरसंचार, पर्यावरण, वैज्ञानिकों, ऐतिहासिक धरोहरों और राजनेताओं आदि से जुड़े डाक टिकट जारी करता है। यह एक ऐसी कुंजी है जो आपको हर क्षेत्र का ज्ञान सहजता से कराता है। चूंकि स्टाम्प सीमित संख्या में जारी होते हैं इसलिए समय के साथ बहुमूल्य भी होते जाते हैं।
पटना में डाक विभाग के निदेशक श्री अनिल कुमार की माने तो हर व्यक्ति ज्ञान के साथ जीवन में कुछ जमा भी करना चाहता है। स्टाम्प कलेक्शन से उनकी इस अनुभूति की भी पूर्ति होती है। फुटबाल के बाद सबसे ज्यादा लोग फिलैटली के ही शौकीन हैं। अमेरिका तथा कनाडा जैसे देशों में नालेज थ्रू स्टाम्प एक अभियान ही चलाया जा रहा है। इसमें पढ़ाई के पहले विषय संबंधी डाक टिकट दिखा कर उन्हें मूलभूत जानकारियों से अवगत कराया जाता है। यह सबसे अच्छा निवेश भी है क्योंकि पांच रुपये के टिकट की कीमत कभी इससे कम नहीं हो सकती, बढ़ चाहे जितनी जाए। अब तक के रिटर्न को देखें तो यह प्रथम तीन स्थानों में रहा है। फिलैटली, बच्चों के दिमाग को नियंत्रित करने व उन्हें बहुमुखी शौक से जोड़ने का भी सर्वोत्तम माध्यम है। इसीलिए फिलैटली की बाबत कहा जाता है कि देयर इज मैनी हाबी इन वन हाबी। इस संबंध में किंग आफ हाबी, हाबी आफ किंग की कहावत भी प्रसिद्ध है।
तनाव भी करता है कम : फिलैटली एक शौक है जो व्यक्ति पूरे मन से करता है। इससे बच्चे थकते भी नहीं और ज्ञान उन्हें बोनस के रूप में मिलता है। फिलैटिस्ट श्री अनिल जी के अनुसार जब कभी आप बहुत परेशान हों और अपने डाक टिकट संग्रह को देखें तो देखते ही देखते तनाव छूमंतर हो जाता है। यह हाबी किसी योगा से कम नहीं हैं।
कैसे जुड़ें : इसके लिए आपको हेड पोस्ट आफिस के फिलैटली काउंटर पर दो सौ रुपये में खाता खुलवाना होगा। इसके बदले डाक विभाग तत्काल आपको दो सौ के स्टाम्प के अलावा विवरणिका, फर्स्ट डे कवर, कैंसिलेशन स्टाम्प, हिस्ट्री व मिनिएचर या सोविनियर शीट दे देगा। इस प्रकार आपका खाता नि:शुल्क खोला जाता है। इसके बाद जो भी नया डाक टिकट जारी होगा डाक विभाग का ब्यूरो बिल के साथ आपके पास भेजता रहेगा। इसके अलावा डाक विभाग हर वर्ष जिले, राज्य से लेकर देश-विदेश में इसकी प्रदर्शनी लगवाता है, जहां आप बहुमूल्य टिकट देख, खरीद व बेच भी सकते हैं।
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स्टाम्प संबंधी कुछ रोचक तथ्य
- कापर टोकन : सबसे पहले 1774 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने पटना में ही दो आने कीमत के तांबे के स्टाम्प जारी किए थे। वर्तमान में यह अमूल्य है।
तांबे के स्टाम्प, केवल जबलपुर निवासी दिलीप कुमार तथा दिल्ली म्यूजियम में ही देखे जा सकते हैं।
- सिंध डाक : देश का पहला डाक टिकट 1 जुलाई 1852 को सिंध प्रांत के चीफ कमिश्नर बार्टले ने जारी किया। यह विश्व का पहला गोलाकार स्टाम्प था। इसे सिंध डाक के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में इसकी कीमत 15 लाख से अधिक है।
- सर्विस स्टाम्प : राज गोपालाचारी ने अपने प्रयोग के लिए गांधी जी के चित्र वाले चार स्टाम्प प्रिंट कराए थे। वर्तमान में इसकी कीमत 50 लाख से अधिक है।
- द थ्री स्कीलिंग येलो : स्वीडन का 1855 में छपे इस स्टाम्प का वर्तमान में केवल एक टिकट बचे होने से इसकी कीमत 11.6 करोड़ तक लगा दी गई है।
- 171 वर्ष पुराना है डाक टिकट का इतिहास। पहला टिकट 1 मई 1840 में ग्रेट ब्रिटेन ने जारी किया था।
- महात्मा गांधी, विश्व की इकलौती ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें 80 देशों ने अपने डाक टिकट में जगह दी है।
- जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद 12 जून 1964 को जारी टिकट अब तक सबसे बड़ी संख्या (2 करोड़) में छापे गए टिकट हैं।
- भारत में पहले अंतरराष्ट्रीय डाक टिकट प्रदर्शनी का आयोजन 1954 में किया गया।
- राजा-रानी के बाद ग्रेट ब्रिटेन ने पहली बार जिस महापुरुष का डाक टिकट निकाला वह महात्मा गांधी थे।
- हमारे भगवानों को इंडोनेशिया, यमन, अरब का अजमान और पूर्वी जर्मनी जैसे कई देश अपने डाक टिकटों में स्थान दे चुके हैं।
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