Gokul Reservoir: बक्सर मेें डेढ़ साल पहले चुनावी शिलान्यास, अब जाकर मिली मंजूरी, लोगों को मिलेगा रोजगार
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 12 मार्च 2024 को तत्कालीन सांसद और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने इसे ईको टूरिज्म के तहत विकसित करने के लिए 32 करोड़ रुपए की योजना का शिलान्यास किया था।राज्य मंत्रिमंडल ने बीते एक जुलाई को इसके लिए 32 करोड़ 48 लाख 30 हजार रुपए की योजना को स्वीकृति दी है।

शुभ नारायण पाठक,बक्सर। गोकुल जलाशय देश और दुनिया की एक महत्वपूर्ण विरासत है। इसे रामसर साइट में शामिल करने का प्रस्ताव है। गत लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 12 मार्च 2024 को तत्कालीन सांसद और केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने इसे ईको टूरिज्म के तहत विकसित करने के लिए 32 करोड़ रुपए की योजना का शिलान्यास किया था।
दावा था कि पहले और दूसरे फेज में कुल मिलाकर लगभग 61 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इसके बाद यहां कोई बदलाव नहीं दिखा। हमने पड़ताल की, तो पाया कि इस योजना को राज्य सरकार की मंजूरी केवल एक सप्ताह पहले मिली है।
इसका विकास पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की केंद्र प्रायोजित स्कीम, जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय योजना (एनपीसीए) के तहत होना है। केंद्र से तो इसकी स्वीकृति पहले ही मिल गयी थी, लेकिन राज्य मंत्रिमंडल ने बीते एक जुलाई को इसके लिए 32 करोड़ 48 लाख 30 हजार रुपए की योजना को स्वीकृति दी है। बहुत संभव है कि अब इसके लिए टेंडर प्रक्रिया शुरू हो और एक बार फिर शिलान्यास हो।
बढ़ रही है पक्षियों की आवाजाही
चक्की से ब्रह्मपुर प्रखंड तक लगभग 27 किलोमीटर लंबे और 4.48 हेक्टेयर में फैले इस जलाशय की आकृति धनुषाकार है। यह जलीय जीवों और पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण आश्रय है। ठंड के दिनों में यहां विदेशी पक्षी भी आते हैं। यह बगल से बहती गंगा नदी का पुराना छाड़न माना जाता है। 2022 में यहां 47 प्रजातियों के पक्षी मिले थे, जो 2024 में बढ़कर 74 प्रकार तक हो गए।
नौका विहार और पक्षी अभयारण्य का सपना अधूरा
गोकुल जलाशय में नौका विहार, पक्षी अभयारण्य, वाच टावर, साइकिलिंग, विश्राम गृह, सांस्कृतिक केंद्र, मत्स्य प्रशिक्षण केंद्र आदि बनाया जाना है। इससे आसपास के करीब 86 गांवों के हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा।
अतिक्रमण से सिमट रहा दायरा
यह जलाशय लगातार अतिक्रमण का शिकार बन रहा है। बीते वर्ष यहां करीब साढ़े चार हजार पौधे लगाए गए थे। देखरेख के अभाव में इनका अस्तित्व भी संकट में है। जलाशय में स्वच्छ जल की बजाय कीचड़ और कचरा फैलते जा रहा है। कई जगह लोग जलाशय की जमीन में मकान तक बनाने लगे हैं।
बिहार में फिलहाल केवल तीन रामसर साइट
बिहार में अब तक केवल तीन रामसर साइट हैं। रामसर साइट अंतर्राष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि को कहा जाता है, जिसे रामसर कन्वेंशन के तहत चिह्नित किया गया है। ये साइटें विभिन्न पौधों और जानवरों की प्रजातियों के लिए महत्वपूर्ण आवास प्रदान करती हैं।
कहते हैं अधिकारी
यह केंद्र प्रायोजित योजना है। बीते सप्ताह ही इसे राज्य सरकार की स्वीकृति मिली है। विभाग से समुचित निर्देश मिलने पर जल्दी ही योजना का क्रियान्वयन किया जाएगा।
प्रद्युम्न गौरव, डीएफओ
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