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    डुमरांव की धरती में बसती है शहनाई का आत्मा

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 22 Mar 2017 03:02 AM (IST)

    शहनाई के शहंशाह उस्ताद बिस्मिल्ला खां की 101 वीं जयंती के अवसर पर पहली बार उनकी जन्मस्थली डुमरांव की धरती को केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय ने याद किया है।

    डुमरांव की धरती में बसती है शहनाई का आत्मा

    बक्सर : शहनाई के शहंशाह उस्ताद बिस्मिल्ला खां की 101 वीं जयंती के अवसर पर पहली बार उनकी जन्मस्थली डुमरांव की धरती को केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय ने याद किया है। उस्ताद की धरती पर संगीत नाटक अकादमी ने मंगलवार को सुरों की महफिल सजाई। इस मौके पर देश के कई चोटी के सुर साधक और नामचीन कलाकार पहुंचे। इन कलाकारों में से कई पद्मश्री और राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजे गए ऐसे कलाकार भी थे जिन्होंने अपनी कला की बदौलत न सिर्फ ¨हदुस्तान बल्कि विश्व के कई देशों में अपनी कला का जादू बिखेरा। दैनिक जागरण ने कुछ कलाकारों से बात की। प्रस्तुत हैं बातचीत के महत्वपूर्ण अंश।

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    उस्ताद में मिला संगीत का ज्ञान- शहनाई वादक कृष्णाराम चौधरी

    शहनाई वादन में आज उस्ताद के बाद सबसे पहला नाम आता है पद्म भूषण शहनाई वादक कृष्णाराम चौधरी का। जिन्हें 2008 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया है। बनारस शैली में वादन की दीक्षा अपने पिता बुद्धलाल चौधरी से प्राप्त की। इन्होंने राग की बारीकियां और शहनाई वादन की गहन तकनीक बनारस घराने के पंडित महादेव प्रसाद मिश्र से हासिल की है। शहनाई पर ¨हदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अलावा ठुमरी, दादरा, चैती, कजरी और होरी बजाने में भी पारंगत हैं।

    सवाल-शहनाई वादन की प्रेरणा आपको कब और किससे मिलीजवाब- बचपन में जब काफी छोटे थे तब उस्ताद भी पड़ोस में ही रहा करते थे और नित्य प्रतिदिन सुबह शहनाई पर राग छेड़ा करते थे। इस प्रकार बचपन से ही शहनाई के सान्निध्य में रहते हुए बजाने की प्रेरणा मिली। तब पिता जी ने एक बेहद छोटी सी शहनाई बनवा कर दी थी। और उसी पर रियाज करना शुरू किया था। उसे आज भी सुरक्षित रखे हैं।

    सवाल- आज पाश्चात्य संगीत और वाद्य यंत्रों को तरजीह दी जाती है। बॉलीवुड जनमानस पर छाया हुआ है। क्या इससे भारतीय वाद्य यंत्रों के अस्तित्व को कोई खतरा है।

    जवाब-शहनाई मंगल ध्वनी का प्रतीक माना जाता है। जिसकी जन्म से लेकर जीवन के अंतिम पड़ाव तक अहमियत है। ऐसे में शहनाई को कभी भी कोई खतरा पहुंचने की संभावना नही है। भले ही आज लोग इससे दूर भागते दिखाई दे रहे हैं पर आने वाला कल भी इसी का होगा।

    सवाल- शहनाई और उस्ताद की धरती डुमरांव के बीच क्या संबंध है। और आप डुमरांव की धरती को कहां तक शहनाई का जनक मानते हैं।जवाब- अरे, डुमरांव की धरती तो शहनाई की आत्मा है। इसके बिना शहनाई की कल्पना भी नही की जा सकती है। शायद बहुत कम लोगों को पता होगा कि शहनाई वाद्य में लगने वाली जीभ्भी या पतुर पूरे विश्व में एक मात्र डुमरांव की धरती पर ही पैदा होती है। जिसके बिना शहनाई की कल्पना भी नही की जा सकती है।

    सवाल- उस्ताद की जीवनी से आपको क्या प्रेरणा मिली है।

    जवाब- उच्स्ताद बड़े ही अच्छे इंसान थे। मैं उनके काफी करीब रहा हूं और उनके जीवन का हर एक पल प्रेरणा का असीम भंडार है।

    शास्त्रीय संगीत के बिना राग व धुन संभव नहीं- सुंदरी वादक भीमन्ना जाधव

    सुंदरी नामक वाद्य यंत्र बिल्कुल शहनाई के समान एक छोटा वाद्य यंत्र है। जिसमें महाराष्ट्र के शोलापुर निवासी भिमन्ना जाधव को प्रवीणता हासिल है। इस वाद्य यंत्र के जन्मदात भीमन्ना के पितामह बाबुराम जाधव थे। जिनके सान्निध्य में रहकर उन्हें इस कला में पारंगत होने का अवसर मिला और सुंदरी वादन में विश्व स्तर पर ख्याति मिली। मौजूदा समय ये इस वाद्य यंत्र के एकमात्र प्रशिक्षक हैं जिनके सान्निध्य में अनेक छात्र सुंदरी वादन की कला सीख रहे हैं। वर्तमान में संगीत नाटक अकादमी के गठन के बाद वहां से उस्ताद बिस्मिल्ला खां पुरस्कार से सबसे पहले नवाजा गया।-सवाल- सुंदरी बजाने की ओर आपकी रूचि कैसे बढ़ी?

    जवाब- ये हमारे पुरखों की दी हुई निशानी है जिसे जीवंत रखना नई पीढ़ी का काम है। एकमात्र इसी उद्देश्य के साथ मैंने अपना जीवन इस कला को समर्पित कर दिया।

    सवाल-जीवन के हर पहलू पर बालीवुड छाया है। ऐसे में शास्त्रीय संगीत का भविष्य कैसा देख रहे हैं।

    जवाब- शास्त्रीय संगीत किसी भी संगीत की जनक है। इसके बिना किसी भी राग अथवा धुन की कल्पना तक नही की जा सकती। लिहाजा शास्त्रीय संगीत कभी भी लुप्त नही हो सकता। और न इसके बिना कोई संगीत कामयाब हो सकता है।

    सवाल-कभी उस्ताद के साथ संगत करने का मौका मिला है।

    जवाब- जीवन में एक बार मुंबई के वर्ली में आयोजित कार्यक्रम के दौरान मुझे उस्ताद के साथ सुंदरी बजाने का अवसर मिला था। तब उनके शहनाई वादन की कला से मैं बेहद अभिभूत हुआ था।

    सवाल- यहां आज उस्ताद के नाम पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेकर कैसा महसुस करते हैं।

    जवाब- यह मेरा सौभाग्य है कि उस्ताद की सौवीं वर्षगांठ के प्रथम कार्यक्रम में भी मुझे शुरूआत करने का अवसर मिला और आज अंतिम वर्षगांठ पर भी शामिल होने का सोभाग्य मिला।

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    डुमरांव की पतुर से शहनाई बनती है खास

    शायद बहुत कम लोग ही इस बात को जानते होंगे कि जिस शहनाई को उस्ताद बिस्मिल्ला खां ने विश्व स्तर पर पहचान दिलाई उसके अंदर सुर पतुर से उत्पन्न होता है। यह पतुर विशेष प्रकार की घास से बनती है जो पूरे विश्व में सिर्फ डुमरांव की धरती पर ही उपजती है। यह जानकारी देते हुए शहनाई वादक कृष्णाराम चौधरी ने बताया कि इसके अलावा बहराइच में भी वो लकड़ी पाई जाती है। पर, उस लकड़ी से बनी शहनाई की पतुर सुरों में वो लचक पैदा करने में नाकाम साबित हो जाती है जो डुमरांव की लकड़ी से उत्पन्न होती है।