जागरण कवि सम्मेलन: उमरें गुजरी हैं तब जाकर ये रंग आया है, हम मिट्टी थे, वक्त ने हमें सोना बनाया है
दैनिक जागरण के कवि सम्मेलन में जमकर लगे वंदे मातरम और भारत माता के जयकारे। राष्ट्रीय कवियों के आगमन से छाई बहार। सुनील जोगी ने मंच की बागडोर संभालते हुए कहा वो कविता है जो मानस बनकर घर-घर गाई जाती है वो कविता है जिसको गाकर आरती सजाई जाती है
जागरण संवाददाता, बक्सर। आरती की थाल सजाओ जी, वीणापाणि मां को मनाओ जी, सब मिलकर मां का आज करे वंदन... की काव्य वंदना से रविवार की शाम मणिका दुबे ने श्रोताओं की ऊर्जा चेतना को जागृत करते हुए मंच से जोड़ा। यह मौका था दैनिक जागरण द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का, जो अंबेडकर चौक स्थित श्री श्याम उत्सव वाटिका में आयोजित किया गया था।
वो कविता है, जिसको गाकर आरती सजाई जाती है
सुप्रसिद्ध कवि सुनील जोगी ने मंच की बागडोर संभालते हुए कहा कि वो कविता है, जो मानस बनकर घर-घर गाई जाती है, वो कविता है, जिसको गाकर आरती सजाई जाती है... को सुनाकर साहित्य की काव्य धारा से श्रोताओं का परिचय कराया।
कवियों ने बगिया के चमन श्रोताओं पर उड़ेले
उसके बाद एक-एक कर कवियों ने अपनी बगिया के सारे चमन श्रोताओं पर उड़ेल दिए। वहीं, कवियों की इस अनूठी कविताएं सुनकर दर्शकों की ओर से भी तालियां और वाहवाही की गूंज सभागार में गूंजते रही।
तेरी याद पत्थर मेरा दिल निशाना है..
कवि कुमार रजत ने कहा कि " उमरें गुजरी हैं तब जाकर ये रंग आया है, हम मिट्टी थे वक्त ने हमें सोना बनाया है.., तथा "तेरी याद पत्थर मेरा दिल निशाना है, की पहली छुअन में टूट जाना है... सुनाकर श्रोताओं का मन टटोला, ..और फिर "पहले होती थी विदा बेटियां अब बेटे भी होते हैं, इस पैसे वाली दुनिया में मां-बाप अकेले होते हैं... सुनाकर तो जैसे श्रोताओं के मन को ही झकझोर दिया और खूब तालियां बटोरीं।
बोटी-बोटी कट जाऊं, इंच-इंच बंट जाऊं..
उसके बाद जब लखनऊ के वीर रस के कवि प्रख्यात मिश्रा ने कहा कि बोटी-बोटी कट जाऊं, इंच-इंच बंट जाऊं, लाडला ना पुरखों की नाक को कटाएगा, या तो ये तिरंगा में लपेट घर आऊंगा मां, या तो ये तिरंगा सीमा पार लहराएगा... आदि जोशीली कविताएं सुनाईं, तो श्रोताओं की ओर से वंदे मातरम् और भारत माता की खूब जयघोष होने लगी। वहीं अपने तरकश से एक एक बाण छोड़कर श्रोताओं में देशप्रेम के प्रति जोश भरने का काम करते रहे।
भक्तों के हैं भगत राम भगवान हैं
इसके बाद डा. श्लेष गौतम ने दुर्गा है काली मां है भवानी है बेटियां.., भक्तों के हैं भगत राम भगवान हैं, भावना आस्था से सम्मान है.. राम तीर्थ भी है राम ही धाम है, जो न डूबे कभी राम वो नाम है, राम कण कण में हैं राम हर मन में है.., जिन्हें चंदन समझता था, वो धधकती आग बन बैठा.. आदि मुक्तक छंद सुनाकर मानवीय व्यवहार, धर्म, समाज और राजनीतिक पर अपने चुटीले बाणों से खूब प्रहार किया।
घरेलू मसलों में गैर की तुम राय मत लेना
दिल्ली से पधारे शायर आदिल रशीद ने "जमाना लाख उसके फायदे बतलाए मत लेना, घरेलू मसलों में गैर की तुम राय मत लेना, बहुत दौलत कमाना तुम तरक्की खूब करना तुम, कभी मजबूर की हाय मत लेना तुम... सुनाकर श्रोताओं को मानवतावादी आदर्शों और मूल्यों के महत्व को समझाने का प्रयास किया।
दिल से सुहानी याद का साया नहीं गया
मणिका दुबे ने दूसरी बार मंच पर अपनी पारी संभालते हुए "दिल से सुहानी याद का साया नहीं गया, क्यों राबता किसी से निभाया नहीं गया, दिया आपने कसम थी बस इसलिए, आंखों से एक आंसू भी बहाया नहीं गया..., हम दोनों एक हो बैठे तब हुई आंखें चार.., मैं भंवर हूं या मौज हूं या किनारा हूं ये नहीं जानती पर खुद का सहर हूं मैं... कभी मां की हथेली चूम लेना, रही मां की बड़ी कुर्बानियां हैं... आदि सुनाकर श्रोताओं में प्रेम रस की धारा बहाईं तो सुप्रसिद्ध कवि सुनील योगी ने मुक्तक व गीत छंद से माहौल में समां बांध दिया। साबित रोहतासवी ने दिल मेरा लिया नादान ने अनजाने में... सुनाकर लोगों की वाहवाही लूटी।
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