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    Buxar Election 2025: बक्सर में 'चुनावी बिसात' पर मुद्दे ओझल, 'जुबानी तीर' बने जंग के 'हथियार'

    Updated: Fri, 31 Oct 2025 04:25 PM (IST)

    बक्सर में विधानसभा चुनाव के लिए 52 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन चुनावी माहौल में विकास के मुद्दे गायब हैं। उम्मीदवार एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं और पुराने मामले उठा रहे हैं। सोशल मीडिया पर आरोप-प्रत्यारोप के वीडियो छाए हुए हैं। मौजूदा विधायक अपने काम नहीं गिना पा रहे हैं, और नए उम्मीदवारों का नज़रिया भी स्पष्ट नहीं है। मतदाताओं को अब यह तय करना है कि वे किसे चुनें।

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    बक्सर में 'चुनावी बिसात' पर मुद्दे ओझल, 'जुबानी तीर' बने जंग के 'हथियार'

    राजेश तिवारी, बक्सर। जिले के चार विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से 52 प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। कुछ प्रमुख राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, तो अधिकतर निर्दलीय एवं अन्य पार्टियों से हैं। चुनाव में सबको जीत चाहिए। खासकर प्रमुख दलों के प्रत्याशी, इसी प्रत्याशा में चुनाव लड़ रहे हैं कि बाजी वे ही मारेंगे।

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    इसके लिए ये दिन-रात जनता से आशीर्वाद मांग रहे हैं, लेकिन हैरत की बात यह है कि जनता को यह भरोसा नहीं दे पा रहे हैं कि जनता अगर उन्हें जीत दिलाती है, तो वे जनता के लिए क्या करेंगे।

    यह स्थिति केवल नए प्रत्याशियों की नहीं, बल्कि मौजूदा विधायकों की भी है। जिन उम्मीदवारों ने पिछले पांच वर्षों तक बक्सर की जनता का प्रतिनिधित्व किया, वे भी यह बताने में असमर्थ दिख रहे हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल में जिले के विकास के लिए क्या ठोस कदम उठाए।

    सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार या उद्योग जैसे बुनियादी मुद्दों पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया जा रहा। इसके उलट चुनावी माहौल में अब केवल एक-दूसरे पर आरोप लगाने और पुराने मामलों को कुरेदने की राजनीति हावी है।

    मौजूदा विधायक अपना काम नहीं गिना पा रहे हैं कि पांच साल में उन्होंने बक्सर के किस विकास का खाका तैयार किया है, तो नए प्रत्याशियों का दृष्टिकोण भी स्पष्ट संकेत नहीं दे रहा है।

    इसके विपरीत उम्मीदवार एक-दूसरे के प्रति आरोप-प्रत्यारोप का राग अलाप रहे हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो यहां चुनावी बिसात पर मुद्दे ओझल हो गए हैं और जुबानी तीर जंग के हथियार बन गए हैं।

    प्रत्याशियों की यह जुबानी जंग इंटरनेट मीडिया पर सिर चढ़कर बोल रही है। इंटरनेट मीडिया और सोशल प्लेटफार्म चुनावी रैलियों और सभाओं से ज्यादा “आरोप-प्रत्यारोप” के वीडियो से भरे पड़े हैं। एक प्रमुख दल के प्रत्याशी एक वीडियो में अपने प्रतिद्वंद्वी पर हमला करते हुए कहते हैं कि “अगर वह जीत गया तो बक्सर की जनता की नहीं सुनेगा, अफसरशाही हावी हो जाएगी और जिले का विकास रुक जाएगा।”

    वहीं दूसरे दल के उम्मीदवार पुराने मामलों को उछालते हुए अपने विरोधियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। वह अतीत में हुई कार्रवाइयों और विवादों को उठाकर एक अन्य प्रत्याशी के कारनामों का जिक्र कर रहे हैं। एक और प्रत्याशी एक वीडियो में पिछले कार्यकाल में हुए कार्यों को दिखाते नजर आते हैं।

    इनसे अलग एक प्रमुख दल के प्रत्याशी अवश्य विकास की बात करते हैं, लेकिन उनकी बातें सामान्य और अस्पष्ट रहती हैं। वह किन विशिष्ट मुद्दों को लेकर चुनावी मैदान में हैं और उनकी जीत का रोडमैप क्या है, इसे स्पष्ट करने से वे बचते नजर आ रहे हैं। तीसरे दल के प्रत्याशी विकास की बातें तो कर रहे हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं कर पा रहे कि उनके “विकास” की परिभाषा क्या है और वह किन ठोस योजनाओं के साथ मैदान में उतरे हैं।

    कहने का लब्बोलुआब यह कि मतदाताओं के बीच जाने, नुक्कड़ सभाओं और इंटरनेट मीडिया के मंचों पर मुख्य फोकस मुद्दों से हटकर व्यक्तिगत आरोपों पर केंद्रित हो गया है। प्रचार के दौरान प्रत्याशियों के बीच विकास के विजन पर बहस होने की बजाय, एक-दूसरे की कमजोरियों को उजागर करने और पुरानी बातों को कुरेदने की होड़ मची हुई है।

    केवल छोटी सभाएं ही नहीं, बल्कि बड़े राजनीतिक दलों की सभाओं और रैलियों में भी यही बानगी देखने को मिल रही है। बड़े नेताओं के भाषणों में भी विकास के वादों से अधिक समय विपक्षी दलों पर हमला बोलने में व्यतीत हो रहा है।

    राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि एजेंडा और मुद्दों का अभाव कहीं न कहीं प्रत्याशियों की कमजोरी को दर्शाता है। अब इस परिस्थिति में मतदाताओं को यह तय करना है कि वे किसको अपना मत देते हैं।