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    टिकट की चाह में काम न आई 'पोस्टर पॉलिटिक्स', अब 'लाेकल फॉर वोकल' का मचा रहे शोर

    Updated: Sat, 18 Oct 2025 10:44 AM (IST)

    बक्सर विधानसभा चुनाव में टिकट पाने की चाहत रखने वाले नेताओं ने 'पोस्टर पॉलिटिक्स' का सहारा लिया। उन्होंने शहर में खूब पोस्टर लगाए, लेकिन टिकट वितरण के बाद निराशा हाथ लगी। अब ये नेता इंटरनेट मीडिया पर 'लोकल फॉर वोकल' का नारा बुलंद कर रहे हैं और अपनी नाराजगी व्यक्त कर रहे हैं। उनकी सारी कोशिशें बेकार हो गईं।

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    टिकट की चाह में काम न आई पोस्टर पॉलिटिक्स

    राजेश तिवारी, बक्सर। किसी भी प्रमुख चुनाव से पहले नई-नई राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का जन्म लेना और पार्टियों में अचानक नेताओं की बाढ़ आना सामान्य बात है। इस बार बक्सर विधानसभा चुनाव में भी इसका नजारा खूब देखने को मिला, जहां प्रमुख पार्टियों में संभावनाएं तलाश रहे नेताओं ने अपनी दावेदारी मजबूत करने के लिए पूरा जोर लगा दिया। 

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    इसके लिए इन लोगों सीधे तौर पर पार्टी मंचों से अधिक, अपनी पहचान जनता के बीच स्थापित करने के लिए 'पोस्टर पॉलिटिक्स' का सहारा लिया, लेकिन अब टिकट वितरण के बाद इन महत्वाकांक्षी नेताओं की निराशा इंटरनेट मीडिया पर 'लोकल फार वोकल' (स्थानीय के लिए मुखर) का शोर मचा रही है।

    कुछ ने तो आखिरी दौर में एंट्री 

    जाहिर हो, बक्सर की राजनीति में इस बार माहौल बनाने की कोशिश खूब हुई, लेकिन चुनावी टिकट की असली जंग ने कई नेताओं को उनकी वास्तविक स्थिति का एहसास करा दिया। 

    राजनीतिक पंडितों का मानना है कि प्रमुख पार्टियों से जुड़ने वाले नेता अपनी जीत की संभावना अधिक देखते हैं। इसी उम्मीद में बक्सर के कई 'टिकटार्थी' पिछले छह माह से अधिक समय से माहौल बनाने में जुटे थे। कुछ ने तो आखिरी दौर में एंट्री मारी। 

    खुद को जनता का हमदर्द और स्थानीय शुभचिंतक बताने की होड़ में इन नेताओं ने शहर में पोस्टर युद्ध छेड़ दिया। शहर के चौक-चौराहों से लेकर गली-मोहल्लों तक, पर्व-त्योहारों की शुभकामनाओं वाले पोस्टरों की भरमार हो गई। 

    सड़कों पर लगे बिजली के खंभे इनके पोस्टर से पट गए। दीपावली हो या छठ पूजा, हर अवसर पर इन नेताओं ने बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाकर यह दर्शाने की कोशिश की कि जनता से बड़ा उनका कोई हितैषी नहीं है। 

    शक्ति का भरपूर प्रदर्शन किया

    कुछ नेता तो चुनावी गहमागहमी को देखते हुए अंतिम समय में इस 'पोस्टर युद्ध' में कूदे। कुल मिलाकर, माहौल बनाने के लिए पोस्टर पर खूब पैसा और प्रयास खर्च किया गया। शहर में हुए पार्टी के कार्यक्रमों में भी इन लोगों ने अपनी शक्ति का भरपूर प्रदर्शन किया या यूं कहें कि जिसको जिस विधानसभा से टिकट मिलने की उम्मीद थी, उन्होंने उस विधानसभा में खास ध्यान दिया। 

    ये लगातार अपने चहेते नेताओं के संपर्क में रहे, ताकि पार्टी आलाकमान की नजर इन पर पड़े और टिकट की दावेदारी पुख्ता हो सके, लेकिन आखिर तक इनकी यह पोस्टर पालिटिक्स काम नहीं आ सकी। 

    दावेदारी के लिए राजी नहीं कर पाए

    पोस्टर के सहारे माहौल बनाने वाले ये नेता पार्टी को अपनी दावेदारी के लिए राजी नहीं कर पाए। टिकट वितरण के अंतिम चरण में इन सभी महत्वाकांक्षी चेहरों को पार्टी ने किनारे कर दिया। सारी कोशिशें धरी की धरी रह गईं और इन्हें निराशा हाथ लगी। 

    पार्टी द्वारा टिकट से किनारा किए जाने के बाद, ये निराश टिकटार्थी अब एक नए रास्ते पर चल पड़े हैं। ये सभी अब इंटरनेट मीडिया पर 'लोकल फॉर वोकल'' (स्थानीय के लिए मुखर) का राग अलाप रहे हैं और अपनी भड़ास निकाल रहे हैं।