Bihar Election: भाजपा के लिए चुनौती बनी ब्रह्मपुर विधानसभा सीट, इस बार क्या होगी रणनीति?
ब्रह्मपुर विधानसभा क्षेत्र भाजपा के लिए एक मुश्किल सीट रही है। 1990 में डॉ. स्वामीनाथ तिवारी की जीत के बाद पार्टी को यहाँ संघर्ष करना पड़ा है। राजद के अजीत चौधरी ने कई बार चुनाव जीता लेकिन 2010 में भाजपा की दिलमणि देवी ने उन्हें हराया। 2015 में राजद ने शंभू नाथ सिंह यादव को जिताया। 2020 में भाजपा ने वीआईपी को सीट दी पर वे हार गए।

संवाद सहयोगी, ब्रह्मपुर (बक्सर)। ब्रह्मपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र की सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए लगातार मुश्किल साबित हो जा रही है। लगातार संघर्ष के बाद भी हार की चुनौती से निपटने के लिए पार्टी इस बार भी पूरी रणनीति के साथ काम कर रही है।
राष्ट्रीय जनता दल को मात देने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने यहां आंतरिक सर्वे भी कराया है। ब्रह्मपुर में 40 वर्षों के चुनावी संघर्ष के बाद 1990 में भाजपा के टिकट पर डॉ. स्वामीनाथ तिवारी को यहां से सफलता मिली थी।
अगले चुनाव में यानी 1995 में जनता दल से अजीत चौधरी यहां से चुनाव जीते तो वह लगातार 2010 तक यहां से विधायक रहे। वह लगातार 15 साल में यहां से चार चुनाव जीते। बाद के तीन चुनाव उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल के प्रत्याशी के रूप में लड़े।
2010 के चुनाव में पहली बार उन्हें पराजय और भाजपा की दिलमणि देवी को सफलता मिली थी। इस तरह दूसरी बार यह सीट भाजपा के हाथ लगी और 15 साल बाद इस पार्टी के लिए सूखा खत्म हुआ, लेकिन 2015 के चुनाव में दिलमणि को बेटिकट कर सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर को यहां से उतार दिया गया।
राजद ने किया सफल प्रयोग
भाजपा का यह फैसला सही साबित नहीं हुआ था। दूसरी तरफ राजद ने भी लगातार चार चुनाव जीतने वाले अजीत चौधरी का पत्ता साफ कर शंभू नाथ सिंह यादव को प्रत्याशी बनाया।
राजद का प्रयोग सफल रहा और शंभू पहली बार चुनाव जीते। अपनी कमजोर स्थिति को देखते हुए 2020 के चुनाव में भाजपा मैदान से हट गई और सहयोगी दल मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी को यह सीट दे दी, लेकिन वीआइपी के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर चले गए।
इस बार सीट पर कब्जा जमाने के लिए भाजपा ने कई तरह के प्रयास के अलावा आंतरिक सर्वे भी कराए हैं। चर्चा इस बात की है कि इस बार सीट को भाजपा अपने ही पास रख सकती है।
पार्टी के पूर्व विधायक डॉ. स्वामीनाथ तिवारी ने भी स्वीकार किया कि पार्टी के लिए सर्वे करने आए अपने पुराने साथी के साथ हार का कारण, प्रत्याशी का पैमाना और राजद की चुनौती के बारे में विस्तार से चर्चा हुई है।
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