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    Bihar Election 2025: बिहार की इस सीट को माना जाता था कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़, कांग्रेस की नहीं गलती थी दाल

    Updated: Sun, 31 Aug 2025 01:48 PM (IST)

    बक्सर जिले का नावानगर जो कभी शाहाबाद क्षेत्र का हिस्सा था ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है। 1957 में यह विधानसभा क्षेत्र बना। पहले चुनाव में कांग्रेस के राजा राम आर्य मामूली अंतर से जीते थे। परिसीमन के बाद कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई और भाकपा ने यहाँ दबदबा बनाया। बाद में परिसीमन के चलते नावानगर सुरक्षित क्षेत्र राजपुर सुरक्षित क्षेत्र में बदल गया।

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    कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ बनकर वजूद में आई थी नावानगर की विधानसभा सीट

    शुभ नारायण पाठक, बक्सर। अब बक्सर जिले का एक प्रमुख प्रखंड मुख्यालय नावानगर पुराने समय में शाहाबाद क्षेत्र का एक ऐतिहासिक कस्बा रहा है। यह इस क्षेत्र का प्रमुख बाजार भी है। अंग्रेज सर्वेयर फ्रांसिस हैमिल्टन बुकानन ने इस जगह का दौरा किया था, जो इसकी ऐतिहासिकता को रेखांकित करता है।

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    आजादी के बाद बिहार विधानसभा चुनाव में नावानगर एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र के रूप में उभरा। बिहार के दूसरे विधानसभा चुनाव में वर्ष 1957 में पहली बार नावानगर विधानसभा सीट अस्तित्व में आई।

    इससे पहले 1951-52 में इस क्षेत्र में इटाढ़ी नाम से विधानसभा क्षेत्र था, जिसे परिसीमन में नावानगर के रूप में पुनर्गठित किया गया। बाद में, परिसीमन के दौर में इसे विलोपित कर क्रमश: नावानगर सुरक्षित और राजपुर सुरक्षित क्षेत्र बनाया गया।

    पहले चुनाव में केवल 72 वोटों से जीती थी कांग्रेस

    1957 में नावानगर के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के राजा राम आर्य ने जीत हासिल की, लेकिन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) के सूरज प्रसाद के साथ उनका मुकाबला बेहद कड़ा रहा।

    राजा राम को 14,787 और सूरज प्रसाद को 14,715 मत मिले, यानी जीत का अंतर मात्र 72 वोट (0.22%) था। इससे पहले 1952 में इटाढ़ी सीट पर भी यही दोनों चेहरे आमने-सामने थे, जहां राजा राम ने 2,417 वोट (9.67%) के अंतर से जीत दर्ज की थी।

    1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बृज किशोर चमार को 1,522 (4.71%) और बांके बिहारी सिंह को 1,284 (3.97%) मत मिले। परिसीमन के बाद मतदाताओं की संख्या भी बढ़ी, जहां 1952 में इटाढ़ी सीट के 58,125 मतदाताओं में से 25,005 (43.02%) ने वोट डाले, वहीं 1957 में नावानगर सीट के 59,902 मतदाताओं में से 32,308 (53.93%) ने मतदान किया।

    परिसीमन ने बदली कांग्रेस की किस्मत

    इटाढ़ी से नावानगर बनने के बाद कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई। 1957 में राजा राम की जीत का अंतर सिमट गया, जो परिसीमन के प्रभाव को दर्शाता है। 1962 में सीपीआई के सूरज प्रसाद ने तीसरे प्रयास में नावानगर पर कब्जा जमाया। उन्होंने कांग्रेस के नए उम्मीदवार राम गृही सिंह को 1,856 मतों (5.25%) के अंतर से हराया।

    सूरज प्रसाद को 14,196 (40.14%) और राम गृही को 12,340 (34.89%) मत मिले। अन्य उम्मीदवारों रामानंद प्रसाद सिंह को 6,378 (18.04%) और चंद्र शेखर राय को 2,450 (6.93%) वोट मिले। इस चुनाव में कुल 53.27% मतदान हुआ।

    1962 से 1972 तक लगातार जीती भाकपा

    1967 में नावानगर को अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित सीट बना दिया गया। इस चुनाव में सीपीआई के एलबी प्रसाद 19,563 (44.55%) मतों के साथ विजयी रहे, जबकि कांग्रेस के सीताराम को 17,564 (40.00%), भारतीय जनसंघ के आरएन राम को 4,800 (10.93%) और निर्दलीय आर राम को 1,988 (4.53%) मत मिले।

    1969 और 1972 में भी सीपीआई के लाल बिहारी प्रसाद ने जीत दर्ज की। 1977 में नए परिसीमन के बाद नावानगर सुरक्षित की जगह राजपुर सुरक्षित निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया, जो अब तक कायम है।