Bihar Election 2025: 4 दशक बाद सीपीआई के कब्जे में आई ये सीट, कभी होता था कांग्रेस का गढ़
बक्सर जिले के डुमरांव विधानसभा क्षेत्र में आगामी चुनावों को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। विभिन्न दल अपने उम्मीदवारों की तलाश में जुट गए हैं। इस क्षेत्र में 3.16 लाख मतदाता हैं। डुमरांव का राजनीतिक इतिहास गौरवशाली रहा है जहाँ समय-समय पर विभिन्न दलों का वर्चस्व रहा है।

रंजीत कुमार पांडेय, डुमरांव (बक्सर)। डुमरांव विधानसभा क्षेत्र में चुनावी माहौल धीरे-धीरे गरमाने लगा है। विधानसभा चुनाव की आहट मिलते ही यहां की राजनीतिक बिसात पर शह और मात का खेल शुरू हो गया है। विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने मोहरे तलाशने में जुट गए हैं।
डुमरांव राज की ऐतिहासिक पहचान रखने वाली इस विधानसभा सीट का आजादी के बाद का भी राजनीतिक इतिहास गौरवशाली रहा है। यह विधानसभा क्षेत्र लंबे समय तक किसी एक दल के साथ नहीं रहा है। बीते चुनाव में डुमरांव की सीट पर 40 साल लंबे अंतराल के बाद वामपंथ की वापसी हुई थी।
डुमरांव विधानसभा में 3.16 लाख है मतदाताओं की संख्या
डुमरांव विधानसभा में इस समय लगभग 3.16 लाख मतदाता हैं। राजपुर सुरक्षित सीट से छह पंचायत हटाए जाने के बाद डुमरांव, चौगाईं, केसठ, नावानगर और डुमरांव नगर परिषद के वार्डों को मिलाकर इसका गठन हुआ।
यहां कुल 34 पंचायत और डुमरांव नगर परिषद के 35 वार्ड शामिल हैं। चुनाव आयोग के द्वारा नए मतदाताओं के नाम जोड़ने और मृत मतदाताओं का नाम हटाने की प्रक्रिया जारी है। ऐसे में मतदाताओं की संख्या में और वृद्धि की संभावना है।
आजादी के बाद से रहा इन दलों का उतार-चढ़ाव
डुमरांव विधानसभा क्षेत्र शुरू से ही राजपूत बहुल क्षेत्र माना जाता रहा है। हालांकि, समय के साथ जातीय समीकरण और राजनीतिक परिस्थितियों ने इस धारणा को बदल दिया। आजादी के बाद पहले चुनाव में कांग्रेस ने चौगाई निवासी और स्वतंत्रता सेनानी सरदार हरिहर सिंह को प्रत्याशी बनाया और उनकी जीत हुई। 1957 और 1962 में कांग्रेस के गंगा प्रसाद सिंह विजयी रहे।
1967 में सरदार हरिहर प्रसाद सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीते। 1969 और 1972 में कांग्रेस ने सरदार हरिहर सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया और उन्होंने लगातार जीत दर्ज की।
1977 में सीपीआई के रामाश्रय सिंह ने सीट पर कब्जा जमाया। 1980 में कांग्रेस के राजाराम आर्य विजयी हुए। 1981 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस के विजय नारायण भारती सफल रहे। 1985 में चौगाई निवासी बाबू बसंत सिंह कांग्रेस के टिकट पर जीते।
1990 और 1995 में उन्होंने क्रमशः जनता दल और राजद के टिकट पर जीत हासिल की। वर्ष 2000 में निर्दलीय ददन पहलवान ने जीत दर्ज की और 2005 के फरवरी और अक्टूबर में हुए दोनों चुनावों में भी वह विजयी रहे।
2010 में जदयू से डॉ. दाउद अली अंसारी विधायक बने। हालांकि 2015 में उनका टिकट कटने के बाद जदयू ने ददन पहलवान को उम्मीदवार बनाया और उन्होंने जीत दर्ज की। 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने फिर से उम्मीदवार बदलकर अंजुम आरा को मैदान में उतार दिया। लेकिन इस बार सीपीआई (एमएल) के डॉ. अजीत कुशवाहा ने जीत हासिल कर डुमरांव की राजनीति में नया अध्याय जोड़ा।
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