Bihar Election: नामांकन शुरू होने में मात्र 1 दिन बाकी, प्रत्याशी घोषणा के इंतजार में कार्यकर्ता हुए बेचैन
बक्सर में बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद भी प्रत्याशियों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। पहले चरण के नामांकन जल्द शुरू होने वाले हैं लेकिन किसी भी उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं हुई है जिससे कार्यकर्ताओं में असमंजस है और चुनावी तैयारियों पर असर पड़ रहा है।

राजेश तिवारी,बक्सर। बिहार विधानसभा चुनाव की तिथि की घोषणा हो गई। चुनाव आयोग ने सब कुछ स्पष्ट कर दिया कि कब कहां मतदान होगा और कब मतों की गिनती होगी। इसके तहत पहले चरण के लिए एक दिन बाद नामांकन का दौर भी शुरू हो जाएगा, लेकिन हैरत की बात यह है कि अभी तक "दूल्हे" को लेकर असमंजस की स्थिति बरकरार है।
जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों में पहले चरण में ही चुनाव होना है। इसलिए यहां 10 अक्टूबर से ही नामांकन की प्रक्रिया प्रारंभ होगी, लेकिन अभी तक किसी विधानसभा में किसी प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं हुई। दूसरी तरफ इंटरनेट मीडिया पर अलग-अलग नाम उछाले जा रहे हैं।
बक्सर विधानसभा का एनडीए प्रत्याशी चर्चा में
इंटरनेट मीडिया पर खासकर बक्सर विधानसभा का एनडीए प्रत्याशी चर्चा में हैं। सबकी निगाहें इसी पर टिकी हैं कि यहां से किस प्रत्याशी को टिकट मिलता है। बहरहाल, फेसबुक पर नजर डालें तो नीतीश सिंह लिखते हैं "नेहा सिंह राठौर बक्सर सदर से लड़ सकती हैं चुनाव"।
वहीं, रवि सिंह राजपूत लिखते हैं, "शाहाबाद क्षेत्र के बक्सर व भाेजपुर जिले के एनडीए प्रत्याशियों की घोषणा जल्द, बदलेंगे पुराने चेहरे नए चेहरों पर दांव आजमाएंगे घटक दल"। नीतीन मुकेश ने लिखा है "बक्सर से मंगल पांडेयजी"।
किसी प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं
यह बात और है कि अभी तक बक्सर से खासकर एनडीए से किसी प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं हुई है। बहरहाल, पार्टी यहां से लोकल प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाती है या फिर किसी बाहरी उम्मीदवार को मैदान में उतारती है, यह तो बाद की बात है, लेकिन जो लोग मैदान में खम ठोकने के लिए "दूल्हा" बनने का सपना पाले हैं, उनकी बेचैनी बढ़ गई है।
इस परिस्थिति में कार्यकर्ता भी असमंजस में हैं कि वे किसके साथ सक्रिय रूप से चुनाव प्रचार में जुटे। इससे स्थानीय स्तर पर चुनावी तैयारियों पर भी असर पड़ रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो ज्यादा दावेदार वाले सीटों पर बगावत की संभावना भी अधिक होती है, जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता है। यही वजह है कि पार्टियां टिकट वितरण में बेहद सावधानी बरत रही हैं और जातीय समीकरण, सामाजिक समीकरण, जीत की संभावना आदि सभी पहलुओं का आकलन कर रही हैं।
फिलहाल राजनीतिक गलियारों में टिकट को लेकर कयासों का बाजार गर्म है और सभी की नजर अंतिम सूची पर टिकी है।
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