बीज ग्रंथ है श्री विष्णु पुराण : श्रीकृष्णानंद
बक्सर, जागरण प्रतिनिधि : सांसारिक व्यवस्था का बीजात्मक रूप है श्री विष्णु महापुराण। इस ग्रंथ में गृहस्थाश्रम का प्रतिपादन तथा नियमों का आख्यान जैसा मिलता है अन्य पुराणों में नहीं। लिहाजा इस ग्रंथ को सभी पुराणों का बीज कहा जाता है। शहर के रामरेखाघाट स्थित श्री रामेश्वरनाथ मंदिर के प्रांगण में आयोजित श्री विष्णु महायज्ञ के सातवें दिन रविवार को श्री विष्णु पुराण में वर्णित श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह प्रसंग का उल्लेख करते हुये श्रीकृष्णानंदजी पौराणिक 'शास्त्रीजी' ने ये बाते कही। पाणिग्रहण संस्कार को ईश्वर प्राप्ति का साधन बताते हुये उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण का विवाह उपासना है, वासना नहीं। जिसके सकारात्मक पहलू के तहत ही सृष्टि सृजन व पालन की सनातन व्यवस्था चलता है। कथा को विस्तार देते हुये आचार्य श्री ने कहा कि कुछ लोग भगवान द्वारा रुक्मिणी के हरण का सवाल खड़ा करते हैं। लेकिन श्रीकृष्ण रुक्मिणी का हरण नहीं, अपितु वरण किये थे। क्योंकि रुक्मिणी ने खुद की रक्षा हेतु श्रीकृष्ण के पास एक पत्र भेजकर खुद ही उनसे प्रणय निवेदन की गुहार ही नहीं लगायी, बल्कि चुनौती देते हुये लिखा था 'आप मेरा निवेदन स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं यह समझूंगी कि तुम्हारी योग्यता इस काबिल नहीं कि एक अबला की रक्षा कर सको'। सो धर्म की मर्यादा का पालन करते हुये उन्होंने रुक्मिणी को वरण किया। श्रीकृष्ण की सोलह हजार एक सौ आठ पत्िनयां व उनसे आठ-आठ पुत्र हुये। जो 16 हजार वेदोक्त उपासना की ऋचाएं, एक सौ उपनिषद व आठ प्रकृतियां ही उनकी पत्नी बनकर उनकी सेवा की।
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