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    149 साल पुराना है डुमरांव नप का इतिहास

    डुमरांव नगर परिषद का अतीत कस्बाई इलाके से निकलकर एक नगर के रूप में तब्दील हुए समाज की कहानी है।

    By JagranEdited By: Updated: Thu, 27 Apr 2017 03:08 AM (IST)
    149 साल पुराना है डुमरांव नप का इतिहास

    बक्सर। डुमरांव नगर परिषद का अतीत कस्बाई इलाके से निकलकर एक नगर के रूप में तब्दील हुए समाज की कहानी है। साथ ही नगर के इतिहास के उतार-चढ़ाव का साक्षी भी है। इसका इतिहास डुमरांव राज परिवार के साथ जुड़़कर और भी रोचक और महत्वपूर्ण हो जाता है। नगरपालिका के 149 वर्षो का सफर नगरीय लोकतंत्र का विकास, प्रबंधन के अलावा नगरीय सभ्यता सहित नागरिकों के संघर्ष की गाथा है। डुमरांव नगरपालिका का गठन वर्ष 1868 में किया गया था।

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    चेयरमैन और सदस्य चयन की प्रक्रिया

    ब्रिटिश काल में (बिहार, बंगाल और उड़ीसा) कलकत्ता प्रेसीडेंसी के गजट अधिसूचना केी अनुसार नगरपालिका के चेयरमैन की नियुक्ति और नियुक्त चेयरमैन द्वारा वार्ड सदस्यों के मनोनयन का प्रावधान था। वर्ष 1857 की क्रांति के बाद उबले जनाक्रोश को शांत करने और लोगों को खुश करने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने नागरिकों को कई रियायतें तथा सुविधाएं देनी शुरू कर दी। इसी कड़ी में अग्रेजी शासकों द्वारा एक नागरिक प्रबंधन और नगर स्वशासन का अधिकार नगरपालिका गठन के माध्यम से प्रदान किया। इस स्वशासन की व्यवस्था में उस दौरान तत्कालीन कथित अभिजात्य वर्ग के लोग ही चेयरमैन और वार्ड सदस्य होते थे। इसी पृष्ठिभूमि में कभी डुमरांव महाराजा को भी इसके चेयरमैन की जिम्मेवारी सौंपी गई थी। उस जमाने में डुमरांव की आबादी करीब 15 हजार थी। कुल आबादी के करीब 10 फीसद नागरिक ही करदाता थे। ऐसे में मात्र 15 सौ से 2 हजार मतदाता चुनाव में भाग लेते थे।

    देश की आजादी के बाद हुआ बदलाव

    स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नगरपालिका के चुनाव में प्रथम बार कई ऐसे वार्ड सदस्य चुनकर आए। जिन्होंने पुरानी परंपरा को धराशायी कर नया कीर्तिमान स्थापित किया। डुमरांव राज के प्रबंधक और उनसे जुड़े़ लोगों को अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष पद पर काबिज होने की परंपरा टूट गई। नई परंपरा में चौधरी धनुषधारी राय को अध्यक्ष बनाया गया। लेकिन, मामला उच्च न्यायालय में जाने के बाद न्यायालय द्वारा चुनाव रद कर दिया गया। उन दिनों नप अधिनियम के तहत राज्य सरकार ने चौधरी बृजबिहारी राय को अध्यक्ष पद पर नियुक्त कर दिया।

    वार्डो की संख्या में बढ़ोतरी तथा नया परिसीमन

    कुल आठ वार्डो में विभक्त डुमरांव नगरपालिका का वर्ष 1982 में नए सिरे से परिसीमन कर 11 वार्डो में विभक्त किया गया। वर्ष 82 में चेयरमैन के पद पर डुमरांव के चर्चित व्यवसायी स्व.शिवकुमार खेमानी चुने गए। इसी बीच लगातार तीन टर्म तक नप का चुनाव नहीं हो सका। सरकार द्वारा मनोनीत नप अध्यक्ष और सदस्य के माध्यम से नगरपालिका को संचालित करती रही। लंबी अवधि के बाद नप चुनाव को लेकर वर्ष 2002 में वार्डो का नए सिरे से परिसीमन किया गया। जिसमें इसे नगर पंचायश्त का दर्जा दे दिया गया। उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद डुमरांव का गौरव वापस मिला और नगर परिषद का दर्जा मिला। 2007 में नए सिरे से डुमरांव नगर परिषद के परिसीमन के बाद वार्डो की संख्या बढ़कर 26 हो गई। मुख्य पार्षद के पद पर कमलेश प्रसाद तुरहा बहुमत से चुने गए। वर्ष 2012 में 17 मई को नप का चुनाव संपन्न हुआ। दोबारा कमलेश प्रसाद तुरहा मुख्य पार्षद चुने गए। कालखंड में श्री प्रसाद को भ्रष्टाचार के आरोप के तहत वार्ड सदस्यों नें बहुमत के आधार पर मुख्य पार्षद के पद से हटा दिया और उनके स्थान पर वार्ड संख्या 15 के पार्षद मोहन मिश्रा को बहुमत के आधार पर मुख्य पार्षद के पद पर आसीन कर दिया।