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    तंत्र के गण.., सियासत में शुचिता के प्रतीक बने नागेन्द्र नाथ

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    Updated: Wed, 22 Jan 2014 08:45 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, बक्सर : 'काजल की कोठरी' का पर्याय सियासत से बेदाग निकलना मौजूदा समय के लिए चुनौती व आठवां आश्चर्य माना जाता है। भ्रष्टाचार, अनाचार व अकर्मण्यता जैसे तमाम आरोपों से कलंकित होने के चलते ही राजनेताओं के प्रति लोगों की सोच व नजरिया बदल गई है। जिन्हें देखते ही आम लोग नाक-भौं सिकोड़ लेते हैं। परंतु डुमरांव प्रखंड के सुरौंधा के रहने वाले पूर्व सांसद नागेन्द्र नाथ ओझा का नाम उन राजनीतिज्ञों में शुमार है, जो शुचिता के लिए न सिर्फ सम्मानित नजरों से देखे जाते हैं, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करते हैं।

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    गरीबों, किसानों व मजदूरों के उत्थान के प्रति उनका कार्य, कर्तव्य के प्रति निष्ठा तथा व्यवहारिक जीवन में सादगी व शुचिता उनकी अलग पहचान है। जबकि अन्य नेताओं से जो उन्हें अलग करता है वह है छह सालों तक राज्य सभा सदस्य रहते हुए 'सांसद क्षेत्र विकास निधि' का बगैर कमीशनखोरी इमानदारी के साथ धरातल पर उतारना। जिसके बदौलत उन्हें विकास पुरुष की भी संज्ञा दी जाती है।

    पढ़ाई के बाद सामाजिक सेवा

    प्रारंभिक शिक्षा गांवों में पूरा कर श्री ओझा 1964 में स्नातक की डिग्री एचडी जैन कालेज आरा से प्राप्त किए। फिर वे गांव आ गए। इसी बीच सोशलिस्ट पार्टी से प्रभावित होकर 1965 में दियारा क्षेत्र में बाढ़ पीड़ितों के बीच कार्य किए। तत्पश्चात 1967 में गांव व आसपास के इलाके में सुखाड़ पीड़ितों के बीच सरकार व मिशनरियों के सहयोग से राहत कार्यो में योगदान दिए। जिससे वे गरीबों व मजदूरों के संपर्क में आए। जिनकी समस्याओं के प्रति भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों ने उन्हें प्रभावित किया। लिहाजा सीपीआई का सदस्य बन गए।

    सरपंची से लेकर राज्यसभा सदस्य तक की यात्रा

    1971 में वे नेनुआं पंचायत के सरपंच बने। इसके बाद पार्टी के विभिन्न पदों पर गुमनामी में रहते हुए 1996 में वे सीपीआई की ओर से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए। जिसके बाद लोग उनके बारे में जाने। इस दौरान एमपी लैड से वे ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी क्षेत्र के उन भागों में काम कराया जहां कभी कोई विकास की रोशनी नहीं पहुंची थी। इन कार्यो का वे खुद निगरानी करते तथा ग्रामीणों से देखरेख कर मानक के अनुरूप कार्य कराने की गुजारिश करते। जिसका नतीजा रहा कि 44 निर्माण एजेंसियों पर प्राथमिकी भी हुई तथा उनकी इमानदारी व विकास कार्यो की सराहना होने लगी। सांसद रहने के बावजूद आज भी उनके पास कोई गाड़ी नहीं है तथा सादगी से रहते हुए सामाजिक कार्यो से जुड़े हैं।

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