चेरो खरबार साम्राज्य से जुड़ा गड़हनी का ऐतिहासिक गढ़ संकट में
यह आज की पीढ़ी के बहुत कम लोगों को पता है कि बनास व सहिला नदी के संगम पर बसा गड़हनी का नाम यहां मौजूद ऐतिहासिक गढ़ के नाम पर पड़ा। आज इस गढ़ के अस्तित्व ...और पढ़ें

गड़हनी (भोजपुर), अरुण कुमार सिंह । यह आज की पीढ़ी के बहुत कम लोगों को पता है कि बनास व सहिला नदी के संगम पर बसा गड़हनी का नाम यहां मौजूद ऐतिहासिक गढ़ के नाम पर पड़ा। आज इस गढ़ के अस्तित्व पर संकट है।इस अमूल्य धरोहर की दुर्दशा के लिए लालफीताशाही जवाबदेह है।
गड़हनी के नामकरण में गढ़ का विशेष प्रभाव रहा है। वर्ष 1905 के प्रथम सर्वे में दर्ज तथ्यों में 'गढ़नी' शब्द का बिगड़ा हुआ रूप ही गड़हनी के नाम से जाना जाता है। अतएव गढ़ और गड़हनी एक दूसरे के पर्याय है। समतल भू - भाग से लगभग 100 फिट ऊंचे मानव निर्मित इस टीले का इतिहास काफी पुराना है। गांव के सामाजिक कार्यकर्ता संजय केसरी बताते हैं कि देखरेख के अभाव में गड़ की ऊंचाई अब महज 20 फीट बनी है। इसका दायरा भी सिमट कर रह गया है। गढ़ के किनारे झड़ती मिट्टी से पुराने मिट्टी के बने बर्तन और सामान निकलते हैं। कहा जाता है कि चेरो-खरबार जनजातियां जब भोजपुर में निवास करती थीं तब उन लोगों ने बाड़ से बचने के लिए विशाल गढ़ का निर्माण करवाया था।यह इतना बड़ी होता था कि बाड़ आने पर पूरी आबादी गढ़ पर कई महीने रह सकती थी। जानकर लोगो के अनुसार यदि इस गढ़ की खुदाई की जाए तो निश्चित रूप से वैसे दुर्लभ अवशेष प्राप्त होंगे, जिससे तत्कालीन सभ्यता संस्कृति ,के विषय मे महत्वपूर्ण जानकारी हासिल होगी। लगभग एक एकड़ भू -भाग का स्वामित्व भारत सरकार के नाम से है इसके पूर्वी भाग का 20 डिसमिल जमीन बिहार सरकार के अधीन है। गढ़ पर पहुंचने का रास्ता बिहार सरकार की जमीन से होकर जाता है।परंतु सरकारी नीति के तहत बिहार सरकार की जमीन को भूमिहीनों के बीच वितरित की गई है। आवास निर्माण योग्य भूमि के प्रति लोगो के बढ़ते आकर्षण के कारण समूचे गढ़ पर स्वार्थी तत्वों की गिद्ध -²ष्टि लगी हुई है। बदलता रहा है गढ़ का स्वरूप
अर्द्ध चन्द्राकर भाग में फैला गहरा इसका स्प्ष्ट प्रमाण बनास व सहिला नदियों के मिलन स्थल पर प्रत्येक वर्ष आने वाले बाढ़ को ध्यान में रखते हुए चेरो-खरबार जनजाति के लोगों ने ऊंचे स्थल पर घर बनाने का निर्णय लिया था। बाद में यहां आर्यो का आगमन हुआ और जनजातियां दक्षिण की ओर पठारी क्षेत्रों में चली गईं। जमींदारी प्रथा के दौरान इस गढ़ पर मंदिर, चबूतरा, कुआ तथा खपड़ैल कोठारियो का निर्माण हुआ।सन 1945-46 तक उक्त निर्माण सुरक्षित थे लेकिन उचित रख रखाव के अभाव में सभी नष्ट होते गए। बाद में यह गढ़ भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने इसे अपने हाथ मे ले लिया लेकिन विभागीय उदासीनता के कारण किसी ने ध्यान नही दिया। इस बाबत गड़हनी के अंचलाधिकारी उदकांत चौधरी ने कहा कि गढ़ की खुदाई को लेकर पुरातत्व विभाग के किसी योजना की जानकारी नहीं है, अतिक्रमण पर हल्का कर्मचारी से प्रतिवेदन मांगा गया है। अतिक्रमण करने वालों पर कार्रवाई होती और वृक्षारोपण करा ऐतिहासिक गढ़ को सहेजा जाएगा।

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