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    रामकथा की भोजपुरी गायकी के पर्याय हैं गायत्री ठाकुर

    By Edited By:
    Updated: Fri, 04 Mar 2016 06:46 PM (IST)

    आरा : भोजपुर । लोक संगीत की मिठास ही उसकी ताकत है। लोक गायकी जब भक्ति की चासनी से लै

    आरा : भोजपुर । लोक संगीत की मिठास ही उसकी ताकत है। लोक गायकी जब भक्ति की चासनी से लैस होती है तो उसकी मिठास और बढ़ जाती है। बिहार के जिन कुछ लोक कलाकारों ने इसे उत्कर्ष पर पहुंचाया उनमें गायत्री ठाकुर का नाम भी शुमार है। ठाकुरजी ने रामकथा को भोजपुरी में गाकर ख्याति अर्जित की उनकी पुण्ययात्रा पांच मार्च पर उन्हें स्मरण।

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    लोक गायक भोजपुरी भाषा के संगीत साधक श्री गायत्री ठाकुर, बक्सर जनपद के डुभा ग्राम के निवासी थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के व्यक्ति थे। इनके पितामह व पिता भी रामायण के भजनीक थे। पिता स्व. राम सिंहासन ठाकुर भी राम कथा गायक थे। गीता, गायत्री, गंगा एवं गौ माता के सेवक गायत्री ठाकुर की देह राममय थी। प्रारंभ में जीविका की खोज में कोलकाता की यात्रा की। वहां हिन्द मोटर में काम करते हुए पीतल के झाल द्वारा संगीत गाते थे। यह गान परंपरा अपने पितामह एवं पिता से प्राप्त की थी । कारखाने के लोग कहते थे कि आप काम करते रहें तथा संगीत का अभ्यास करते रहें। परंतु गायत्री ठाकुर ने कहा कि पीतल का झाल पीटे वाला कारखाना में का काम। ऐसा कहकर वे कोलकाता से अपने गांव चले आये तथा संगीत साधना में लग गये। मियाजीपुर के लक्ष्मण दूबे लहरी बाबा के साथ रहकर रामायण एवं महाभारत का गहरा अध्ययन किये एवं लहरी बाबा के प्रसाद गान को गाते हुए जीवन को धन्य बताया। बाद में स्वयं रचना कर लोक गायकी में ख्याति प्राप्त की। वे बिहार एवं यूपी के अमर गायक बने। महेन्द्र मिश्र एवं भिखारी ठाकुर की गान परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सारा जीवन भोजपुरी भाषा में रामकथा एवं महाभारत कथा के दिव्य प्रसंगों को बनाया और गाकर लोगों को मुग्ध कर दिया। उनके गानों के सैकड़ों कैसेट बने, परंतु ठाकुर जी लोक गायक थे। स्त्रोताओं के अपार भीड़ उन्हें सुनती थी। उनकी संगीत मंडली भव्य थी। उन्होंने अपनी ज्ञान विद्या की सौदागरी नहीं की। जन रंजन उन्होंने मनोरंजन के रूप में नहीं किया बल्कि राम रंजन किया। वे कहा कहते थे कि 'भोजपुरी बोले वाला जी हजुरी ना करी' । कृष्ण के लीला गान को गाते हुए कहा कि 'युग-युग में प्यासल बा नयन का हो दर्शनवा क लागल बा मनवा में' तथा रामकेवट प्रसंग पर आधारित गान 'नाथ बिना कंई का धोवले ना चढ़ाईम नईया' ये उनके परिचायक गान है। कहते थे केवल संसार के लोगों के लिए नहीं गाया बल्कि देवताओं के लिए उनकी अर्चना करने के लिए जिहवा को धन्य बताया है।

    उनकी वाणी से प्रसन्न होकर तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें रामायण सम्राट की उपाधि प्रदान की थी। लोग ठाकुर जी को भोजपुरी भाषा के तुलसी दास कहते थे। अपनी अंतिम अवस्था में वे निरंतर राममय रहे। 'चलत डगरिया पिरा जाला पाव हो' जोन्हीयों के दूर बा बलमुआ के गांव हो, बढ़ी मर्यादा अभी मुअला का बाद हो' यह पद निश्चय ठाकुर जी का था। उनकी गायकी से लोगों की आंखों से अश्रुपात होने लगता था। ठाकुर जी 5 मार्च 2014 को परम धाम चले गये।

    प्रो. श्याम बिहारी राय, निवर्तमान अध्यक्ष इतिहास विभाग, वीकेएसयू,

    आरा

    इनका है कहना :

    लोक गायकी के क्षेत्र में गायत्री ठाकुर जी का योगदान अप्रतीम है। रामायण और महाभारत कथा को भोजपुरी में रुपायित कर जन-जन में पहुंचाने का उनका कार्य अत्यंत सराहनीय है। लोक कलाकार उनकी परम्परा को आगे बढ़ाएं यहीं उनके प्रति श्रद्धा निवेदन होगा।

    रविरंजन, उद्घोषक व लोक कलाकार

    -फोटो कटआउट में नाम से ही है।

    ठाकुरजी की लोक गायकी के हम सभी कायल हैं। पद रचना और उसे स्वर प्रदान कर बहुसंख्यक जनता तक ले जाने के लिए उन्होंने रामायण को माध्यम बनाया। वे एक लोकप्रिय लोक कलाकार थे।

    देवी, लोक गायिका

    -फोटो कटआउट में देवी-1 नाम से ही है।