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    दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है श्रीरंगनाथ मंदिर

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 06 Aug 2022 03:59 AM (IST)

    यदि हम कहें कि श्रीरंगम की तरह ही भोजपुर में भी वैसा ही मंदिर है।

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    दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है श्रीरंगनाथ मंदिर

    दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है श्रीरंगनाथ मंदिर

    कंचन किशोर, आरा : तमिलनाडु के तिरुचापल्ली श्रीरंगम में श्रीरंगनाथ मंदिर को देखने और भगवान रंगनाथ एवं मां गोदम्मा का आशीर्वाद लेने दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। यदि हम कहें कि श्रीरंगम की तरह ही भोजपुर में भी वैसा ही मंदिर और भगवान रंगनाथ की प्रतिमा है, तो शायद बिना इसे देखे विश्वास करना मुश्किल होगा। जिले के बड़हरा प्रखंड अंतर्गत गुंडी गांव में खालिस चुनार के पत्थरों से बना श्रीरंगनाथ मंदिर दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है। पटना-बक्सर फोरलेन से आरा के सिंगही के समीप आरा-सिन्हा मुख्य मार्ग से लगभग नौ किलोमीटर पर सरैयां आने के बाद एक सड़क केशोपुर की ओर कटती है। इसी सड़क किनारे सरैया से पांच किलोमीटर की दूरी पर गुंडी गांव में यह मंदिर स्थित है। लगभग 14 कट्ठे में अवस्थित मंदिर के प्रवेश द्वार पर विशाल स्तंभ खड़ा है, जिस पर पत्थरों से काटकर देवी-देवताओं और गरुड़ राज के आकृति की नक्काशी की गई है। मंदिर के अंदर चारों ओर परिक्रमा के लिए जगह छोड़ी गई है। परिक्रमा के रास्ते में नवग्रह पिंड रखे हैं। मुख्य मंडप में तीन कमरे हैं। बीच के कमरे में भगवान रंगनाथ और माता गोदम्मा के साथ गरुड़ जी की प्रतिमा है। दूसरे कमरे में श्रीराम-जानकी विराजमान हैं। जबकि, एक अन्य कमरे में भगवान वेंकटेश की प्रतिमा है। एक बड़े हाल में माता अन्नपूर्णा की प्रतिमा है, यहीं दक्षिण भारतीय भोजन बनाने के पुराने सामान रखे हैं। मंदिर परिसर में दो कुएं हैं, एक से मीठा और दूसरे से खारा पानी आता है। हालांकि, देखरेख के अभाव में खारा पानी वाला कुआं अब लगभग सूख गया है। खास बात यह है कि निर्माण के 182 सालों बाद भी मंदिर के किसी भी भाग में कहीं दरार नहीं है एवं दीवारों में चमक बरकरार है। गांव के जमींदार ने कराया था मंदिर का निर्माण गांव में दक्षिण भारतीय शैली में मंदिर का निर्माण यहां के जमींदार रहे स्व.चौधरी विशुन देव नारायण सिंह ने कराया था। मंदिर की देखरेख कर रहे स्व. विशुनदेव सिंह की चौथी पीढ़ी के युगल किशोर सिंह ने बताया कि उनके परदादा के पिता विशुन देव बाबू को 50 साल की उम्र तक कोई संतान नहीं हुई। अपने मैनेजर गंगा प्रसाद के कहने पर वे सपत्निक तीर्थाटन करने गए और घूमते हुए तिरुचापल्ली के श्रीरंगम में ननगुनेरी मठ जा पहुंचे। वहां वे श्रीरामानुजाचार्य संप्रदाय के गुरु श्रीतातेंद्रियाम स्वामी जी से मिले और उनके शिष्य बन गए। उन्होंने ही जमींदार साहब को वापस गांव जाकर ऐसा ही मंदिर बनाने को कहा और श्रीरंगम से ही शिल्पकार भेजे। मंदिर निर्माण के लिए चुनार में एक पहाड़ खरीदा गया और वहीं इसकी नक्काशी हुई। इसके बाद पांच सालों तक वहां से बैलगाड़ी से पत्थरों की ढुलाई होती रही। इसी बीच उन्हें एक पुत्र भी हुआ। गांव के लोग चाहते हैं, पर्यटन के नक्शे पर आए मंदिर मंदिर के प्रति गांव एवं आसपास के लोगों की काफी श्रद्धा है। पूर्वी गुंडी पंचायत के पूर्व मुखिया आनंद गोपाल पंडित बताते हैं कि उनके पूर्वजों के समय दक्षिण भारत से अक्सर यहां संत महात्मा आते थे और पूजनोत्सव का कार्यक्रम होता था।वे लोग चाहते हैं कि मंदिर राज्य के पर्यटन मानचित्र में शामिल हो। हाल ही में पटना महावीर मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष आचार्य किशोर कुणाल और भोजपुर के जिलाधिकारी राजकुमार ने यहां का जायजा लिया है, जिससे बेहतरी की उम्मीद जगी है।

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