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    अवैध खनन से नाला बनने की कगार पर सोन नदी, NGT के नियमों को ताक पर रख होता है खनन

    Updated: Thu, 30 Oct 2025 02:05 PM (IST)

    अमरकंटक से निकली सोन नदी अवैध खनन के कारण नाला बनने की कगार पर है। बालू की अंधाधुंध कटाई से नदी की धारा बदल गई है और जलस्तर घट गया है। कई गांवों में चापाकल सूख गए हैं, जिससे जल संकट गहरा गया है। पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर यही स्थिति रही तो सोन नदी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

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    अवैध खनन से नाला बनने की कगार पर सोन नदी

    संवाद सूत्र, कोईलवर(आरा)। अमरकंटक पर्वत से निकलकर बिहार में गंगा में मिलने वाली सोन नदी का अस्तित्व अब खतरे में है। जो संदेश और बड़हरा विधानसभा का एक बड़ा मुद्दा है। सोन नदी के सुनहरे बालू की अंधाधुंध कटाई से हुए जलवायु परिवर्तन ने नद की दिशा और दशा दोनों बिगाड़ रख दिया है। 

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    नियमों को ताक पर रख अवैध बालू खनन ने इस जीवनदायिनी नद को नाले में बदलने की कगार पर ला खड़ा कर दिया है। बीते कुछ दशकों में सोन नद की धारा खिसक चुकी है, जिससे न केवल इसका प्राकृतिक स्वरूप नष्ट हो रहा है, बल्कि तटवर्ती गांवों में जल संकट भी गहराता जा रहा है। 

    बाढ़ खत्म होते ही कोईलवर, चांदी, संदेश, सहार, बरुही, अजीमाबाद और जमालपुर, राजापुर समेत पूरे भोजपुर जिले में गुजरने वाला सोन नद का चौड़ा पाट नहर जैसा दिखाई देने लगता है। नद की धारा गांवों से लगभग नौ सौ मीटर दूर खिसक जाती है, और जलस्तर इतना नीचे चला जाता है कि कई गांवों के चापाकल सूख जाते हैं। 

    सिलेंडर लगे चापाकलों से पानी निकालने को मजबूर

    जिससे ग्रामीण अब सिलेंडर लगे चापाकलों से पानी निकालने को मजबूर हैं, लेकिन वे भी धीरे-धीरे हांफने लगे हैं। पर्यावरणविदों का मानना है कि अगर यही स्थिति बनी रही तो आने वाले दशकों में सोन नद पुनपुन की तरह नाला बन जाएगी। 

    स्थानीय निवासियों का कहना है कि बालू माफियाओं ने अपने फायदे के लिए नद की धारा मोड़ देते है। बालू खनन के लिए कई जगहों पर पुलिया बनाकर जलधारा को रोक दिया जाता है, जिससे नदी का प्रवाह दिशा बदल जाता है, जो गर्मी शुरू होने से पहले ही अब छिछली हो जाती है। बाहरी प्रदेशों में रहने वाले प्रवासी जब गांव लौट सोन की दुर्दशा देखते हैं, तो उन्हें रोना आ जाता है, और बताते है कि यह आने वाले जल संकट की चेतावनी है। 

    नदी का प्राकृतिक सौंदर्य और जीवन दोनों खतरे में हैं

    जानकारों के मुताबिक खनन विभाग और जल संसाधन विभाग की लापरवाही से यह स्थिति और भयावह होती जा रही है। विभागों के बीच समन्वय की कमी और अवैध खनन पर ढिलाई के कारण सोन नदी का प्राकृतिक सौंदर्य और जीवन दोनों खतरे में हैं। यदि अब भी सरकार और बालू संवेदक नहीं चेते तो आने वाले समय में सोन नद का अस्तित्व केवल इतिहास के पन्नों में रह जाएगा। 

    पर्यावरणविद की मानें तो नदी के दोनों किनारों पर वृक्षारोपण और खनन पर नियंत्रण से ही सोन का जीवन बचाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि राज्य और केंद्र सरकार की कई योजनाएं निजी जमीनों पर पौधारोपण को प्रोत्साहित करती हैं, लेकिन इसके लिए किसानों की सक्रिय भागीदारी जरूरी है।