कोरोना संक्रमितों की सेवा करते-करते खुद संक्रमित हो गई थीं डॉ. अर्पणा
कोरोना काल में कोरोना संक्रमितों की जांच में जुटी डॉ. अर्पणा झा अपने घर से दूरी बनाकर कोरोना संक्रमितों को बचाने में लगी थी पर उन्हें क्या पता था कि स ...और पढ़ें

आरा। कोरोना काल में कोरोना संक्रमितों की जांच में जुटी डॉ. अर्पणा झा अपने घर से दूरी बनाकर कोरोना संक्रमितों को बचाने में लगी थी, पर उन्हें क्या पता था कि संक्रमितों की सेवा करते करते वह खुद भी संक्रमित हो जाएंगी। इस दौरान वह चार महीनों तक संक्रमितों की सेवा तथा महीने भर तक स्वयं संक्रमित होने के कारण बाल बच्चों से दूर रहीं। अवकाश समाप्त होने के बाद 10 अक्टूबर से वह एकबार फिर गांव-गांव घूमकर ग्रामीण महिलाओं को चिकित्सकीय परामर्श देती हैं। साथ ही ग्रामीण क्षेत्र की नर्सों की मॉनीटरिग भी करती हैं। जबकि संक्रमण के कारण लंग्स और न्यूरो सिस्टम दोनों बुरी तरह प्रभावित हो गया है।
बता दें कि भोजपुर में कोरोना जब अपने चरम पर था, उनके परिवार के सभी सदस्य पटना में रहते थे। आरा में अकेले परिवार से अलग-थलग जिला स्वास्थ्य समिति के क्वार्टर में रहने वाली जिला एपिडेमियासेलोजिस्ट के पद पर कार्यरत डॉ. अर्पणा की दिनचर्या उन दिनों कोरोना संक्रमितों तथा उनके चेन की पड़ताल में ही गुजरती थी। कभी-कभी तो सुबह का अखबार पढ़ने तक का समय नहीं मिलता था। अक्सर दिनभर घर से बाहर रहना पड़ता था। वह सुबह 5:30 बजे उठ जाती थी। खुद चाय बनाकर पीती थी। सुबह 7:30 बजे अस्पताल के लिए घर से निकल जाती था। खाना-पीना अक्सर बाहर ही होता था। कभी कभी तो इस काम के लिए भी समय नहीं मिलता था। संक्रमितों के चेन से जुडे़ लोगों की पड़ताल कर उसका स्वाब सैंपल पटना तक भेजने और उनका रिजल्ट आने तक वे दिन रात लगी रहती थी। अपनी इकलौती पुत्री और परिवार के दूसरे सदस्यों से वे सिर्फ मोबाइल से संपर्क स्थापित कर पाती थी। सात मई 2020 की रात संदेश क्वारंटाइन सेंटर में पाए गए कोरोना पॉजिटिव मरीज की जानकारी मिलने के बाद तो वह ठीक से खाना भी नहीं खा सकी थी। इस दौरान वह अपनी बेटी से मोबाइल पर बात कर रही थी, जिससे बात करना बीच में ही छोड़ना पड़ा था।
डॉ. झा ने बताया कि उन दिनों दिन में काम के बोझ के बीच परिवार के सदस्यों से बात करने का मौका तक नहीं मिलता था। रात में ही समय निकालकर बात करने की कोशिश करती थी। व्यस्ततम दिनचर्या के बीच कभी कभी तबीयत भी नासाज हो जाती थी, जिसकी जानकारी होने पर परिवार वालों की झिड़की भी सुननी पड़ती थी।
जिला एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. अर्पणा झा चार महीनों तक अपने बाल बच्चों से दूर रही। एक समय तो ऐसा भी देखने को मिला, जिसमें अधिकांश पुलिसकर्मी और मेडिकल स्टाफ तक को क्वारंटाइन करने की नौबत आ गई थी। फिर भी मैं उस समय बाल-बाल बच गई। कोरोना को लेकर जनवरी-फरवरी में हुई ट्रेनिग के बाद दो मार्च से भोजपुर में जो युद्ध स्तर पर काम शुरू हुआ, उसके बाद से अपने बाल बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों से चार पांच महीने तक नहीं मिल सकी। जबकि डॉ. अर्पणा के परिवार में बुजुर्ग बीमार पिता, मेडिकल की पढ़ाई कर रही बेटी और चिकित्सक पति मौजूद हैं। कोरोना के संक्रमण के खतरे को देखते हुए उनसे फोन पर हीं बातचीत हो पाती है।

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