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    17 साल में IIT, 25 साल में Phd, अब अमेरिका में AI पर रिसर्च.... बिहार के जीनियस सत्यम की कहानी

    Updated: Mon, 22 Dec 2025 03:21 PM (IST)

    बिहार के भोजपुर के रहने वाले सत्यम ने 17 साल की उम्र में आईआईटी और 25 साल में पीएचडी की। अब वे अमेरिका में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर रिसर्च कर रहे हैं ...और पढ़ें

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    भोजपुर के सत्यम कुमार। फोटो जागरण

    कंचन किशोर, आरा। भोजपुर का बखोरापुर गांव आध्यात्मिक क्षेत्र में मां काली का प्रसिद्ध मंदिर के लिए जाना जाता है और शिक्षा के क्षेत्र में इसकी पहचान सत्यम के गांव से है। वही सत्यम, जिसने वर्ष 2013 में महज 13 साल की उम्र में जेईई मेन्स की परीक्षा पास कर देश भर में तहलका मचा दिया था।

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    जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर देश के प्रतिष्ठित संस्थान IIT तक पहुंचने वाले सत्यम की कहानी आज भी लाखों बच्चों के लिए प्रेरणा बन रही है। किसान परिवार में जन्मे सत्यम ने बचपन में अपने बाबा, पिता और चाचा के सानिध्य में अलजबरा, बीज गणित एवं ज्यामिति से दोस्ती की।

    वहीं, कोटा होते हुए कानपुर के प्रतिष्ठित भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान तक का सफर तय कर लिया। सत्यम अभी अमेरिका की टेक रिसर्च कंपनी ''टेक्सास इंस्ट्रूमेंट'' में हैं और एआई (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) के एडवांस फीचर पर शोध कर रहे हैं।

    उनका लक्ष्य एआई तकनीक को समाज के लिए उपयोगी बनाना और शिक्षा एवं कृषि जैसे क्षेत्रों में मानव जाति के हित में इसका सकारात्मक इस्तेमाल करने लायक बनाना है। हालांकि, अपने इस काम पर अभी वे ज्यादा बात करना नहीं चाहते हैं।

    सत्यम कहते हैं कि AI पर पिछले पांच दशकों से काम हो रहा है और विभिन्न चरणों में कई बड़े तकनीक विशेषज्ञों ने इस पर शोध किया है, तकनीक को बेहतर बनाने के लिए शोध सतत चलता रहता है और इस समय वे भी एआई को बेहतर बनाने के लिए चल रहे शोध प्रक्रिया के हिस्सा हैं।

    आम से खास तक का सफर

    सत्यम मध्यम वर्गीय किसान परिवार से आते हैं और परिवार के साथ समय बिताने हमेशा गांव आते रहते हैं। अपनी अद्भुत शैक्षणिक यात्रा पर खुलकर बात करते हैं। कहते हैं, बखोरापुर वाली की कृपा से उनकी स्मरण-शक्ति अच्छी रही और कड़ी मेहनत, निरंतर अभ्यास तथा परिवार, मित्रों और शिक्षकों के सहयोग से ही कम उम्र में उन्हें आईआईटी में प्रवेश मिला।

    उनकी बचपन की शिक्षा-दीक्षा घर में ही हुई, मां प्रमिला देवी ने उन्हें प्रेरित किया और परिवार ने उनकी क्षमता को समझा। बाबा रामलाल सिंह की गोद में जोड़-घटाव सीखते थे, चाचा दीपक सिंह शिक्षक हैं और उन्होंने उनकी क्षमताओं को पहचाना।

    इसके बाद आठवीं कक्षा में पहली बार उन्हें कोटा के एक स्कूल और प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान रिजोनेंस में दाखिला मिला, जहां उन्हें मुख्य रूप से शिक्षक रामकिशन वर्मा का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। 

    संस्थान के शिक्षकों के सानिध्य में सत्यम और निखरे। पिता सिद्धनाथ सिंह बताते हैं कि शिक्षकों ने भी उनकी असाधारण क्षमता को पहचाना। 2012 में महज 12 साल की उम्र में बारहवीं की परीक्षा पास करने के अगले साल 2013 में 13 साल की उम्र में जेईई मेन्स की परीक्षा क्वालिफाई कर ली। वह पहला साल था, जब जेईई मेन्स से आईआईटी संस्थानों में प्रवेश शुरू हुआ था।

    अमेरिका से की पीएचडी

    गांव से टेक्सास इंस्ट्रूमेंट तक के सफर में सत्यम ने कई पड़ाव तय किए। आईआईटी कानपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक-एमटेक ड्यूल डिग्री प्रोग्राम पूरा करने के बाद सिर्फ 25 साल की उम्र में स्कालरशिप के बल पर अमेरिका से पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली।

    बाद में उन्होंने दिग्गज टेक कंपनी एप्पल में भी काम किया। खास बात यह है कि उन्हीं की तरह उनके छोटे भाई शिवम भी विलक्षण प्रतिभाशाली हैं। उन्होंने भी 15 साल की उम्र में जेईई मेन्स की परीक्षा क्वालिफाई कर आईआईटी कानपुर में प्रवेश लिया और डिग्री हासिल करने के बाद अभी ''सैमसंग'' में सेवा दे रहे हैं।

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    अपने भाई के साथ सत्यम

    सत्यम की सफलता पर गांव में रह रहे बाबा रामलाल सिंह, मां प्रमिला देवी, पिता सिद्धनाथ सिंह, चाचा पशुपति सिंह, राम पुकार सिंह आदि परिवार के लोगों को गर्व है और उन्हें यह उम्मीद है कि उनका शोध मानवता की भलाई के लिए नई चीज लेकर आएगा।