जीवन मूल्यों को समझते हुए अपना जीवन सफल करना होगा
कौन कहता है कि आसमान में सूराख हो नहीं सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। ...और पढ़ें

आरा । कौन कहता है कि आसमान में सूराख हो नहीं सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। सृष्टि के रचयिता परमपिता परमेश्वर द्वारा इस धरती पर हम मानव उनकी सबसे उत्कृष्ट रचना हैं। अपनी सभी महत्वाकांक्षी रचनाओं में हमें सोचने की शक्ति देकर सबसे अलग बनाया। परन्तु जन्म लेने के बाद हमें अपने स्वयं की कड़ी मेहनत व लगन के बलबूते ही अपने जीवन मूल्यों को समझते हुए अपना जीवन सफल करना होता है। हम वही पाते हैं जैसा स्वयं करते हैं। हमें जीवन में क्या प्राप्त करना है, अपने लक्ष्यों को निर्धारित कर उसे पाने की दिशा में निरंतर अपने आप पर निर्भर होकर कार्य करते रहना चाहिए। अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए हमें कदापि दूसरे पर निर्भर नहीं होना चाहिए और न ही किसी दूसरे से विशेष मदद पाने की अपेक्षा रखनी चाहिए क्योंकि दूसरों पर निर्भरता हमें कमजोर करती है। इससे हमारे आत्मविश्वास एवं स्वाभिमान कम होने लगता है। जिसका प्रतिकूल प्रभाव लक्ष्य प्राप्ति में बाधक बनता है। हमारा प्रयास कमजोर होने लगता है और हम लक्ष्य के प्रति मानसिक थकान का शिकार होने लगते हैं। लक्ष्य प्राप्ति के लिए आवश्यक आत्मविश्वास में ही कड़ी मेहनत करने की प्रेरणा छुपी होती है और मानसीकता भी बनी रहती है। जिसके फलस्वरूप मनुष्य की लालसा अपनी वास्तविक क्षमताओं से परे जाकर कुछ अलग कर गुजरता है, जो आनेवाली पीढि़यों के लिए मिसाल बनकर हमेशा के लिए प्रेरणा का स्रोत बन जाता है। इतिहास में कई ऐसे उदाहरण हुए जिनमें एक थॉमस अल्वा एडिसन की प्रेरणा देने वाली कहानी है।
एडिसन पढ़ने में इतने कमजोर थे कि उनके स्कूल के शिक्षक ने उनके अभिभावक को बुलाकर बोला कि आपका बेटा पढ़ने में बहुत कमजोर है। हम इसे स्कूल में पढ़ा ही नहीं सकते। यह जीवन में कुछ नहीं कर सकता यह कहकर उसे विद्यालय से निष्कासित कर दिया गया। लेकिन इस बात को उनकी मां ने घर आकर उन्हें नहीं बताया कि उसे शिक्षक ने स्कूल से निकाल दिया है, बल्कि यह बताया कि शिक्षक ने बोला है कि उसे पढ़ाने के लिए हमारे विद्यालय में योग्य शिक्षक नहीं हैं। उसे आप स्वयं ही पढ़ाए। इस सकारात्मक प्रोत्साहन का असर ऐसा हुआ कि आगे चलकर एडिसन का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित हुआ। साथ ही एडिसन आज नवीन पीढि़यों के लिए मिसाल कायम कर प्रेरणा दे रहे हैं कि स्वयं को पहचानो, तभी कुछ अलग कर सकोगे । स्वयं की जीत समाज की जीत है। क्योंकि स्वयं का निर्माण ही समाज का निर्माण है।
---सनोज कुमार, निदेशक, संत जेवियर्स प्ले एकेडमी, धोबहां बाजार
गुणों के आधार पर ही लक्ष्य का निर्धारण:
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स्वयं का महत्व का पता लगाना ही एक अच्छे मानव की पहचान होती है। स्वयं का मतलब अपने आप को पहचान ले, यानि अपने बारे में सही आकलन कर ले तो वह अपने आप को सही दिशा को निर्देशित कर सकता है। हम अपने समाज में सही स्थान पा सकते हैं। समाज को प्रगतिशील बना सकते हैं। अभी तक वही व्यक्ति सफल हुआ है जो अपने आप के महत्व को जानता है। क्योंकि पूरा समाज एक दूसरे पर टिका हुआ है। हमारा महत्व अपने परिवार अपना समाज में क्या है। ये जानना एक प्रगतिशील मानव की पहचान है।
--सतीश आनंद, शिक्षक
----मनुष्य बड़ा होते ही अपने रिश्तों को पहचानने लगता:
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पंच तत्वों से बना ये मानवरूपी शरीर जिसे हम मिट्टी का शरीर कह सकते हैं हमारे समाज में भिन्न-भिन्न रूपों और रिश्तों में पहचाना जाता रहा है। बचपन से ही एक नवजात शिशु अपनी मां से सुनता है कि तुम मेरे बेटे हो, तुम मेरे भाई हो आदि। जैसे-जैसे वह शिशु बड़ा होता है अपने प्रत्येक रिश्तों को समझने और पुकारने लगता है। कभी बेटा, कभी भाई, कभी पति अलग-अलग रूपों में उसकी पहचान होती है। पर वह संभवत: यह भूल जाता है कि वह भी स्वयं के जीवन में महत्व रखता है। यदि हम स्वयं को समझे तो हम खुद से ज्यादा दूसरों के लिए जीते हैं। जीवन में स्वयं का भी महत्व होना चाहिए। हमें स्वयं के बारे में पूरी तरह से ज्ञान होना चाहिए। यदि स्वयं को महत्व दें तो एक अच्छे मनुष्य के साथ- साथ देश के एक अच्छे नागरिक के रूप में देश और समाज के सामने प्रस्तुत होते हैं।
--प्रियंका दिव्यांश, शिक्षिका
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आत्मविश्वास से ही विचारों की प्राप्त होती है स्वाधीनता
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जब तक हमें अपने आप की पहचान नहीं होगी,हम अपने महत्व को नहीं जान पाएगे। हमें हमारी पहचान ही समाज में स्थापित करती है और हमारी योग्यता के अनुसार समाज में हमें स्थान मिलता है। स्वयं के महत्व वस्तुत: हमारे आत्मविश्वास से जुड़ा हुआ है। जो मूलत: एक मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति है। आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है। इसके कारण ही हमें अपने योग्यता के अनुसार कार्यों में सफलता मिलती है। हर इंसान का अपना एक अलग योग्यता और पहचान होती है, जो अपनी सोच और विचारों के प्रति जुझारू और अडिग होते हैं। समाज में उनका कद उतना ही मजबूत होता है। एक ही पेट से जन्मे फूल और कांटा अपने महत्व के कारण से समाज में अपना-अपना स्थान बनाये हुए है।
--संदीप गोस्वामी, शिक्षक
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स्वयं पर विश्वास करना सीखिए:
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अपने महत्व को बढ़ाने के लिए सबसे पहले हमें स्वयं पर विश्वास करना चाहिए। हमें ऐसा काम करना चाहिए, जिससे लोग हमारा महत्व समझे। क्योंकि महत्व हमारा आत्म सम्मान है। बिना महत्व के इस दुनिया में जीना बेकार है। इस दुनिया में कोई भी नहीं चाहता कि कोई हमें महत्व नहीं दे। हमारा महत्व बहुत ही जरूरी है।
--तान्या कुमारी, छात्रा----
अच्छा विचार ही आगे बढ़ाएगा
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स्वयं का महत्व दुनिया का सुनहरा सम्मान है। स्वयं का महत्व इस धरती पर हमारे लिए बहुत जरूरी है। क्योंकि अगर स्वयं का विचार अच्छा हो तो तुम खुद ही आगे बढ़ने लगोगें। स्वयं का मतलब यह है कि जब तुम अपने लक्ष्य को अपने आप से ही पहचान लोग तो इस दुनिया में सफल होने से हमें कोई नहीं रोक सकेगा।
-- गणेश राय, छात्र
अपने पर विश्वास करना चाहिए
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हमें अपने पर हमेशा विश्वास रखना चाहिए। इसका जीवन में बहुत महत्व है। अगर हम लक्ष्य तक पहुंचने की अपनी क्षमता में विश्वास नहीं करते हैं तो शायद आप कोशिश करना छोड़ देंगे। विश्वास की जड़े अक्सर इस तर्कहीन आभा में होती है कि सब ठीक हो जायेगा। विश्वास की कमी की वजह से अपने सपनों का दम न घुटने दें। जब तक आप किसी काम को करना शुरु नहीं करते, तब तक आप कभी भी कुछ भी नहीं सीख सकते। लेकिन वही लोग दुनिया की सबसे सशक्त हस्तियां बन सकते हैं, जिनमें उंचे लक्ष्य पर निशाना साधने का साहस होता है। उन्हें ही सफलता मिलती है।
-- प्रीति ¨सह, छात्रा

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