भोजपुरी संस्कृति का अनूठा पर्व: पीड़िया धर्म, परंपरा और भाई–बहन के प्रेम का पवित्र संगम
भोजपुरी अंचल का पीड़िया पर्व भाई-बहन के प्रेम और पारिवारिक एकता का प्रतीक है। अगहन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाने वाला यह पर्व, पूजन सामग्री की खरीदारी के साथ शुरू होता है। बहनें भगवान विष्णु की पूजा कर भाई की दीर्घायु की कामना करती हैं। व्रत का समापन पीड़िया विसर्जन के साथ होता है, जो बाधाओं को दूर करने का प्रतीक है। इस दौरान सोहरिया पूजन और पारंपरिक गीत गाए जाते हैं।

यह पर्व भाई–बहन के पवित्र रिश्ते
संवाद सूत्र, भोजपुर। भोजपुरी अंचल की लोकजीवन, आस्था और पारिवारिक परंपराओं की समृद्ध विरासत को उजागर करने वाला अनुपम पर्व है,पीड़िया। यह पर्व भाई–बहन के पवित्र रिश्ते, परिवारिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रतीक माना जाता है। रक्षाबंधन और भाई-दूज की तरह इसे भी समान श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष अगहन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को पड़ने वाला यह पर्व गुरुवार को मनाया जाएगा। पर्व के पूर्व ही गांवों से लेकर बाजारों तक पूजन सामग्री, पारंपरिक वस्तुओं और सजावट की खरीदारी तेज हो गई है।
भोजपुरी समाज में पीड़िया व्रत को केवल धार्मिक अनुष्ठान न मानकर जीवन–मूल्यों और पारिवारिक संस्कारों से जोड़कर देखा जाता है।
इस दिन बहनें भगवान विष्णु और कुलदेवता का पूजन कर भाई की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और हर संकट से रक्षा की प्रार्थना करती हैं।
पूजा में मिट्टी के पात्र, चावल, दीया, माला और पारंपरिक व्यंजनों का विशेष महत्व होता है। कथा-श्रवण और दीपदान भी इस दिन की प्रमुख धार्मिक विधियां हैं।
स्थानीय जनों के अनुसार, पीड़िया व्रत की शुरुआत गोवर्धन पूजा के दिन दीवारों पर गोबर से पीड़िया बनाने से होती है, जो करीब सवा माह तक चलता है।
इसके बाद अगहन की प्रथम तिथि को बहनें उपवास रखती हैं और द्वितीया को भाई के साथ गंगा नदी या तालाब में पीड़िया का विधि-विधान से विसर्जन करती हैं।
यह विसर्जन भाई के जीवन से समस्त बाधाओं को दूर करने का प्रतीक माना जाता है।
इस व्रत की खास परंपरा सोहरिया है, जिसमें भाई की संख्या के अनुसार 16 धानों से पूजन किया जाता है। बहनें चावल और सोहरिया की खीर बनाकर प्रसाद स्वरूप ग्रहण करती हैं।
कई गांवों में व्रतधारी बहनें पूरी रात जागकर पारंपरिक पीड़िया गीत गाती हैं, जो पूरे क्षेत्र में एक दिव्य वातावरण बनाता है।
शाम को बहनें भाइयों को तिलक और आरती कर आशीर्वाद देती हैं, जबकि भाई बहनों की सुरक्षा और सम्मान का संकल्प लेते हैं।
बड़हरा, शाहपुर, कोईलवर सहित पूरे इलाके में इस पावन पर्व की तैयारियां जोर पर हैं। घर-आंगन में चौक–आलपना और सजावट भोजपुरी संस्कृति की पुरातन पहचान को सजीव कर रहे हैं।
यह पर्व आज भी हर घर में अपनी चमक के साथ पारिवारिक मूल्यों को मजबूत करता हुआ दिखाई देता है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।