शरद पूर्णिमा रात चांद की रौशनी बन टपकेगा अमृत,पवित्र नदी में स्नान और लक्ष्मी पूजा से मिलती है आर्थिक संपन्नता
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा का दिन और रात धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन के लिए विशेष महत्व रखता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी के रूप में अमृत की वर्षा होती है। जिसमें कई तरह खूबियां पाई जाती है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार इसका मानव शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

संवाद सूत्र, शाहपुर(भोजपुर)। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा का दिन और रात धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन के लिए विशेष महत्व रखता है। माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी के रूप में अमृत की वर्षा होती है। जिसमें कई तरह खूबियां पाई जाती है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार इसका मानव शरीर पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
चंद्रमा की रोशनी के प्रभाव से कई तरह के असाध्य रोगों से मानव शरीर को मुक्ति भी मिलती है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर माता लक्ष्मी के पूजा आराधना करने से आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ लक्ष्मी माता की कृपा भी बनी रहती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दूध का सीधा संबंध चंद्रमा से जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से जुड़ी वस्तुएं में सकारात्मक ऊर्जा जागृत हो जाती हैं और उन्हें अमृत के समान गुण समावेशित हो जाती है। बहुत सारे लोग असाध्य रोगों से मुक्ति के लिए शरद पूर्णिमा की रात चांद की रोशनी में खीर बनाते हैं।
चांद की रोशनी में तैयार किया गया खीर के सेवन करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही साथ कई तरह के असाध्य रोगों से छुटकारा पाने में भी मदद मिलता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से माना जाता है कि दूध में बने इस खीर में पौष्टिकता प्रचुर मात्रा में होता है। जिससे शरीर मे रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
वहीं कुछ लोग संध्या समय में ही खीर को बनाकर चंद्रमा की रोशनी में देर रात तक रखते है। साथ ही साथ उसमें पीपल के छाल को चूर्ण बनाकर उसमें मिश्रित कर उनका सेवन करते हैं। जिसे श्वास एवं यकृत संबंधी रोगों से मुक्ति मिलती हैं।
शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में गर्भवती महिलाओं को जरूर बैठना चाहिए। इससे गर्भ में पलने वाले बच्चे पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वही मान्यताओं के अनुसार गर्भवती महिलाएं छह लड्डू बनाकर माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना कर उसमें से एक लड्डू स्वयं सेवन करती हैं।
पिछले कई वर्षों से लगातार शरद पूर्णिमा को चंद्रमा की रौशनी में खीर बनाकर सेवन करने वाले शाहपुर के उमेश चंद्र पांडे व रतनपुरा के राजकिशोर सिंह बताते है कि इस खीर के सेवन करने से उन्हें काफी लाभ मिलता है। खीर को खाने के लिए बहुत सारे लोग आते है। यदि उन्हें फायदा नहीं होता तो खीर खाने क्यो आते
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