संवाद सूत्र, उदवंतनगर(आरा)। करमा धरमा पर्व, जिसे करमा पूजा या करम एकादशी भी कहा जाता है, भाई-बहन के पवित्र रिश्ते, प्रकृति के सम्मान और कृषि समृद्धि का अनूठा उत्सव है।
यह पर्व हर वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष करमा पर्व तीन सितंबर, बुधवार को मनाया जाएगा।
यह पर्व मुख्य रूप से झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बिहार और बंगाल के आदिवासी समुदायों में मनाया जाता है, जहां इसकी समृद्ध परंपराएं और गहरी पौराणिक कथाएं इसे विशेष बनाती हैं।
करमा पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के साथ मानव के गहरे संबंध, कृषि की अहमियत और पारिवारिक रिश्तों की मजबूती का प्रतीक भी है।
इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं और करम देवता की पूजा करती हैं, जिन्हें फसलों और खुशहाली का अधिष्ठाता माना जाता है।
भोजपुर में झूर रखने की परंपरा
भोजपुर जिले में करमा-धरमा पर्व पर आंगन में झूर (झूल) स्थापित करने की परंपरा है, जिसे वृद्धि और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। महिलाएं अपने घर और आंगन को गोबर से लीपकर पवित्र बनाती हैं।
पूजा से पूर्व पुष्प, कलश और अखंड दीप की स्थापना की जाती है। महिलाएं दिनभर उपवास रखकर करम-धरमा कथा श्रवण करती हैं और रातभर मंगल गीत गाती हैं। दूसरे दिन तालाब या नदी में झूर का विसर्जन किया जाता है।
पर्व का समय
पंडित विवेकानंद पांडेय के अनुसार, भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ दो सितंबर, मंगलवार की रात 12:48 बजे होगा, जो तीन सितंबर को रात 1:37 तक रहेगा। पद्मा एकादशी रवि योग में मनाई जाएगी।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।