एनटीपीसी की नौकरी छोड़ आरा के बादल ने लगाई फैक्ट्री, करोड़ों का टर्नओवर
बिहार के गीधा औद्योगिक क्षेत्र में बादल तिवारी ने एक अनोखा स्टार्टअप शुरू किया है। वे वाष्प से चलने वाली कड़ाही की फैक्ट्री चला रहे हैं जिसमें कम ईंधन में अधिक देर तक गर्मी रहती है। सरस्वती रिलायबल इंजीनियरिंग नामक इस फैक्ट्री में 30 कुशल कारीगर काम करते हैं और कंपनी का सालाना टर्नओवर पौने दो करोड़ तक पहुंच गया है। कड़ाही की मांग गुजरात से लेकर बंगाल तक है।

नीरज कुमार, कोईलवर (आरा)। गीधा औद्योगिक क्षेत्र में एक अनूठा स्टार्टअप ध्यान आकर्षित कर रहा है। नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन की औरंगाबाद इकाई में परियोजना प्रभारी रहे बादल तिवारी ने अपनी नौकरी छोड़ यहां वाष्प से गर्म होने वाली कड़ाही की फैक्ट्री लगाई।
कड़ाही की विशेषता है कि कम ईंधन में यह वाष्प से चलने के कारण ज्यादा देर तक गर्म रहती है। कड़ाही की बिक्री इंडिया मार्ट प्लेटफॉर्म पर होती है और देशभर से ऑर्डर आते हैं।
सरस्वती रिलायबल इंजीनियरिंग नाम से चल रही फैक्ट्री में 30 कुशल कामगार काम करते हैं। कंपनी का सालाना टर्नओवर पौने दो करोड़ तक पहुंच गया है।
बादल ने कड़ाही में कम ईंधन खपत के लिए उसी तकनीक का इस्तेमाल किया है, जिससे ताप बिजली घर चलते हैं। इसकी विशेषता है कि चार किलो लकड़ी के ईंधन में सौ किलो दूध उबल जाता है। आरा के रहने वाले 'रिजनरेटिंग स्टीम' बायलर बना रहे हैं। फैक्ट्री में हस्तचालित और स्वचालित दो तरह की कड़ाही बनाई जाती है।
इस कड़ाही में दूध से बने उत्पाद खोआ, कलाकंद, डोडा और काजू बर्फी तैयार किए जाते हैं। मिठाई दुकानों में कम खर्च में उत्पादन के लिहाज से इसकी मांग हो रही है।
फैक्ट्री के कामगार मनोज कुमार बताते हैं कि वाष्प से एक सौ किलो दूध खौलाने के लिए मात्र तीन किलो और खोआ बनाने में बीस किलो लकड़ी की जरूरत होती है।
कड़ाही की मांग गुजरात से लेकर बंगाल तक
बिहार में इस तरह की रिसाइकिल बायलर कड़ाही की पहली फैक्ट्री है। कड़ाही की मांग गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम, यूपी, झारखंड, एमपी, छत्तीसगढ़, बंगाल समेत अन्य राज्यों में है।
ई. बादल बताते हैं कि उनके फैक्ट्री से पहला आर्डर महाराष्ट्र के उस्मानाबाद गया था, जिसके बाद मांग बढ़ती गई और प्रोडक्शन भी बढ़ने लगा। उनके यहां बनने वाले आटोमैटिक बॉयलर कड़ाही 65 हजार रुपये और मैनुअल 50 हजार रुपये का है। जिसकी क्षमता 120 लीटर है। साइज के साथ अलग-अलग कीमत है।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से मिलता है ऑर्डर
इंडिया मार्ट और ट्रेड मार्ट के जरिए ऑर्डर मिलता है। बादल ने बताया कि पांच साल पहले कोरोना के समय कामगार लौटकर अपने घर आए तो उन्होंने उनके हुनर का इस्तेमाल करने की योजना बनाई।
एनटीपीसी में वे बायलर तकनीक के बारे में समझ गए थे और इसका इस्तेमाल उन्होंने बॉयलर कड़ाही में किया। इसके लिए बैंक से ऋण लिया। अब फैक्ट्री का सालाना टर्नओवर लगभग डेढ़ करोड़ रुपये है।
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