परेव बर्तन उद्योग की बढ़ी चमक
कोईलवर पुल के पूर्वी छोर के पास आबाद बस्ती परेव पीतल के बर्तन उद्योग और हर हाथ को काम देने के लिए प्रख्यात है। सोन के पूर्वी तट पर स्थित औद्योगिक बस्ती का भोजपुर जिला के कोईलवर से काफी गहरा संबंध है। शताब्दी पूर्व से परेव में पीतल के बर्तनों का निर्माण होता आया है। सोन तट की लसदार मिट्टी प्रारंभ में बर्तनों के सांचा निर्माण में मददगार रही। इसी ने कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित किया। कसेरा जाति के लोगों ने कुटीर उद्योग के रूप में अपनाकर इसे लघु उद्योग तक पहुंचाया। मशीनीकरण से पूर्व हर हाथ को यहां काम हुआ करता था। आज भी अधिकतर लोग इस रोजगार पर आश्रित हैं।
कुछ परिवार में संपन्नता आई है। आधा दर्जन बेलन मशीन और तीस-चालीस भट्ठियों की स्थापना तक मामला पहुंचा है। स्थानीय लोगों के अलावा कई मिर्जापुर आदि के कारीगर-मजदूर भी यहां काम करते हैं। फिलवक्त धनतेरस के मौके पर यहां निर्मित वर्तनों की मांग अधिक है। इस आधुनिक युग में भी परेव के पीतल के बर्तनों की चमक कम नहीं हुई है। फूल, पीतल, जर्मन सिलवर के सुनहरे बर्तन बाजार की शोभा बढ़ाते हैं। यहां की फूल की थाली, लोटा, कटोरा, ग्लास एवं डिश आदि की मांग बहुत हैं।
स्थानीय बाजार के अलावे भागलपुर, पटना, मुजफ्फरपुर आदि राज्य के शहरों के अलावा झारखंड, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद व मिर्जापुर में भी इनकी मांग है। नेपाल तक यहां का निर्मित समान जाता है।
इस उद्योग व्यवसाय से जुड़े कई लोगों का कहना है कि यदि सरकार व प्रशासन का समुचित सहयोग मिले तो परेव पीतल के बर्तन उद्योग में मिर्जापुर-मुरादाबाद को पीछे छोड़ देगा। परेव जैसी छोटी बस्ती में बर्तन उद्योग के कारण चार-पांच दशक पूर्व एक राष्ट्रीयकृत केनारा बैंक स्थापित किया गया है। अब यहां के लोग उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं। रेल से माल लाने व ले जाने के लिए दानापुर मंडल के कोईलवर स्टेशन का सहारा लेना पड़ता है जो महज एक मील पश्चिम सोन नद व कोईलवर पुल पार है। व्यवसायी दशकों इसके विकास और यात्री सुविधाएं बढ़ाने की मांग करते रहे। इसी दशक में परेव से पूरब एक मील दूर एक पाली हाल्ट अस्तित्व में आया। लेकिन इससे बर्तन उद्योग का मामला हल नहीं हुआ।
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