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    पति की शहादत के बाद पुत्रियों को देश सेवा में आगे बढ़ा रही श्वेता

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    Updated: Wed, 20 Jan 2016 09:30 PM (IST)

    भोजपुर । देश की रक्षा में तैनात सैनिक की शहादत की विपदा को सह लेना आसान नहीं। उस पर भी नौनि

    भोजपुर । देश की रक्षा में तैनात सैनिक की शहादत की विपदा को सह लेना आसान नहीं। उस पर भी नौनिहाल औलादों को देश की सेवा के लिए ही तैयार करना उससे भी कठिन काम है। मगर कठिन व दुखों के पहाड़ पर विजय पाकर अपने शहीद पति के अरमानों को आसमान पर पहुंचा देने का सपना अगर शहीद की अद्र्धागिनी पूर्ण करने में लगीं हो तो उस जज्बे को हर हिन्दुस्तानी सलाम करना चाहेंगे, क्योंकि सैनिक पति के साथ परिणय में

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    बंधते वक्त अद्र्धागिनी ने खुशहाली का सपना संजोया था। मगर चन्द वषरें बाद ही जब उसे अपनी सिन्दूर पोंछनी पड़ी व चूडिया फोड़नी पड़ी तब उस विधवा ने फौरन ही शोक से बाहर आकर पति द्वारा देश सेवा के अधूरे छोड़े गये काम को अपनी दो नौनिहाल बेटियों द्वारा पूरा कराने का संकल्प ठान लिया। आज वह अपनी बेटियों को उनके सैनिक पिता की राह धराने में तल्लीन है। श्वेता कहती हैं पति की शहादत को असली सलामी तब सार्थक समझूंगी जब बेटियों को उनके शहीद पिता की राह पर खड़ी कर दूंगी। शहीद की शहादत का जज्बा ढोने में तन-मन से लगी श्वेता शर्मा मूल रूप से प्रखंड के सूरज नगर (फूहा) निवासी शिक्षक महेन्द्र प्रताप शर्मा की पुत्री है। जिसकी शादी बड़े ताम-झाम से अगिआव प्रखंड के नारायणपुर गाव निवासी सैनिक शकर शर्मा के साथ वर्ष 2005 में हुई थी। सुखमय दाम्पत्य जीवन के बीच वर्ष 2006 में पहली पुत्री व वर्ष 2009 में दूसरी पुत्री का जन्म हुआ। पहली का नाम सरिता कुमारी व दूसरी का नाम पूर्णिमा कुमारी पड़ा। मगर दुर्भाग्य वर्ष 2009 में ही आ गया। जब 18 मार्च 2009 को सैनिक शकर के सीमा पर एक आतंकवादी मुठभेड़ में गंभीर रूप से घायल होने की मनहूस खबर घर पर आ धमकी। शकर भारतीय थल सेना के 262 रेजीमेन्ट में जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में सीमा पर तैनात थे। एक आतंकवादी मुठभेड़ का सामना करते हुए दुश्मन की गोली से घायल हो कर अस्पताल में जिन्दगी की जंग लड़ने लगे। एक सप्ताह बाद जंग हार कर अंतिम सासें शकर ने ले ली। पति के शरीर की अंतिम क्रियाओं से निवृत्ति के बाद श्वेता शहीद पति के अमर आत्मा को जिंदा रखने की हर कवायद के लिए जुट गई। जो शहादत के बाद आज भी अनवरत जारी है। सिर्फ अपनी दोनों पुत्रियों को सैनिक बनाने की तमन्ना लेकर श्वेता नहीं चलती। बरन अपनी

    पुत्रियों जैसे गाव के बहुतेरे बच्चों को शिक्षित बनाकर देश सेवा की भावना से सुसज्जित कर रही है। साथ ही पर्यावरण की सुरक्षा को लेकर भी पति की शहादत पर पौधरोपण का व्यापक अभियान चलाती है।