बंगाल के SIR की गूंज बिहार तक: पूर्वजों की खोज में जुटे प्रवासी बिहारी, 2003 की वोटर लिस्ट बनी पहेली
पश्चिम बंगाल में कार्यरत बिहारी प्रवासी अपने पूर्वजों की तलाश में बिहार के गांवों में जा रहे हैं। 2003 की वोटर लिस्ट इस खोज में मददगार साबित हो रही है, लेकिन नामों की गलत वर्तनी के कारण दिक्कतें आ रही हैं। प्रवासी स्थानीय लोगों से मदद ले रहे हैं ताकि वे अपनी जड़ों से जुड़ सकें और अपनी पहचान को फिर से स्थापित कर सकें।

बिहार विधानसभा चुनाव
संवाद सूत्र, बिहिया/आरा(पटना)। बंगाल में चल रहे विशेष मतदाता सूची पुनरीक्षण का कार्य चल रहा है, लेकिन इसकी आंच अब बिहार तक महसूस की जा रही है। वर्षों से बंगाल में रह रहे प्रवासी बिहारी इन दिनों अपने मूल गांवों की ओर फिर से नजरें मोड़ रहे हैं। वे अब अपने बाप-दादा के नाम 2003 की मतदाता सूची में तलाश रहे हैं, ताकि बंगाल में चल रही जांच प्रक्रिया के दौरान अपनी जड़ों का प्रमाण दे सकें।
रोजगार और काम-धंधे में व्यस्त इन प्रवासियों को अब पुराने रिश्तेदारों और परिजनों को याद करना पड़ रहा है। फोन पर लगातार संपर्क कर वे एक ही विनती कर रहे हैं, कृपया 2003 की वोटर लिस्ट उपलब्ध कराइए। हालांकि बहुत से लोग यह नहीं जानते कि यह मतदाता सूची चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध है, लेकिन इसमें नाम ढूंढना आसान नहीं है।
बीते दो दशकों में आबादी बढ़ने के साथ बूथों की संख्या में भी बड़ा बदलाव आया है। कई नए मतदान केंद्र अस्तित्व में आ गए हैं, जिससे पुराने मतदान केंद्रों का नाम या स्थान बदल गया है। जैसे रोहतास जिले का गोशलडीह गांव, जहां वर्तमान में मतदान केंद्र मौजूद है, लेकिन 2003 की मतदाता सूची में इस गांव का नाम नहीं मिलता।
संभावना है कि तब यहां मतदाताओं की संख्या कम रही होगी, इसलिए उन्हें किसी पड़ोसी गांव के मतदान केंद्र से जोड़ा गया होगा।
अब जब आबादी बढ़ी, तो यहां नया मतदान केंद्र बना।ऐसे में जो लोग अब अपने पूर्वजों का नाम खोज रहे हैं, उन्हें पहले यह पता लगाना जरूरी है कि पूर्व में उनके गांव के मतदाता किस मतदान केंद्र पर वोट डालते थे।
ऐसे कई उदाहरण देखे जा रहे है।बंगाल में चल रहे इस विशेष पुनरीक्षण ने न केवल मतदाता पहचान की प्रक्रिया को जीवंत किया है, बल्कि प्रवासी बिहारियों में भी अपनी जड़ों को फिर से टटोलने की लहर पैदा कर दी है।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।