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    Bihar Election 2025: कभी एक साथ चुने जाते थे दो विधायक, आज नहीं है उस विधानसभा सीट का अस्तित्व

    Updated: Wed, 03 Sep 2025 03:21 PM (IST)

    आजादी के बाद बिहार में द्वि-सदस्यीय प्रणाली से विधानसभा चुनाव होते थे जिसमें एक क्षेत्र से दो विधायक चुने जाते थे। भोजपुर का पीरो भी ऐसा ही क्षेत्र था। 1952 में सोशलिस्ट पार्टी के राधा मोहन राय और देवीदयाल राम यहाँ से विधायक बने। बाद में 2010 में परिसीमन के बाद पीरो को तरारी विधानसभा में मिला दिया गया और यह प्रणाली समाप्त कर दी गई।

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    पीरो से कभी चुने जाते थे दो विधायक, अब इस का नाम निर्वाचन क्षेत्र भी नहीं

    कंचन किशोर, आरा। आजादी के बाद से ही देश की संसदीय प्रणाली में समानता का अधिकार दिलाने की कवायद शुरू हो गई थी और बिहार समेत कई राज्यों में कुछ विधानसभा क्षेत्रों के चुनाव द्वि सदस्यीय प्रणाली के तहत होते थे। इस प्रणाली में एक विधानसभा क्षेत्र से दो विधायक चुने जाते थे और दोनों समान रूप से सरकार का गठन में भूमिका निभाने के साथ क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते थे।

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    भोजपुर जिला(पुराना शाहाबाद) का पीरो वैसे ही विधानसभा क्षेत्र में शामिल था, जहां से देश के स्वतंत्र होने के बाद बिहार में हुए दो विधानसभा चुनावों में दो विधायक चुने गए। हालांकि, अब इस नाम से कोई विधानसभा क्षेत्र नहीं है। परिसीमन के आधार पर वर्ष 2010 में हुए चुनाव में पीरो को तरारी विधानसभा में समायोजित कर दिया गया।

    स्वतंत्रता के बाद बिहार विधानसभा का पहला चुनाव मार्च-1952 में हुआ था। उस चुनाव में कुल 276 विधानसभा सीटें अधिसूचित थीं। इनमें 24 सीट अनुसूचित जनजाति के आरक्षित थी, जबकि अनुसूचित जाति के लिए सीटों का आरक्षण नहीं हुआ था।

    तब राज्य में 39 ऐसे विधानसभा क्षेत्र थे, जहां से एक सामान्य कोटी के और एक अनुसूचित जाति कोटी से विधायक चुने जाते थे।

    महाराजा कॉलेज के पूर्व प्राचार्य और राजनीति शास्त्र की कई पुस्तकों के लेखक सेवानिवृत्त प्रो.गांधी जी राय बताते हैं उस समय यह व्यवस्था इसलिए बनाई गई थी ताकि अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।

    शाहाबाद में सासाराम, भभुआ और पीरो ऐसे विधानसभा क्षेत्रों में शामिल थे, जहां से दो विधायक प्रतिनिधित्व करते थे। चुनाव में उन क्षेत्रों के मतदाताओं को सामान्य कोटी और आरक्षित कोटी के विधायक चुनने के लिए दो अलग-अलग मतपत्र दिए जाते थे और अलग-अलग गिनती थी होती थी।

    परिसीमन के बाद 1962 के चुनाव से यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई और 40 सीटें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित की दी गईं।

    पीरो के पहले विधायक बने एसपी के राधा मोहन राय और देवीदयाल राम

    1952 के चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रचंड लहर के के बावजूद द्वि सदस्यीय प्रणाली के तहत पीरो में हुए चुनाव में उसे पराजय का सामना करना पड़ा। यहां से सामान्य और आरक्षित कोटी वर्ग से सोशलिस्ट पार्टी के क्रमश:राधा मोहन राय और देवीदयाल राम ने जीत हासिल की।

    वहीं, 1957 में हुआ विधानसभा चुनाव में यहां से विधायक के दोनों पद कांग्रेस ने सोशलिस्ट पार्टी से छीन ली और सामान्य वर्ग से सुमित्रा देवी एवं अनुसूचित जाति कोटी से नगीना दुसाध विधायक चुने गए।

    1962 के चुनाव में यह व्यवस्था खत्म होने के बाद पीरो सामान्य सीट बन गया और जगदीशपुर को सुरक्षित सीट अधिसूचित कर दिया गया। 2010 में परिसीमन के बाद जगदीशपुर सामान्य सीट हो गया और जिले की अगिआंव सीट को सुरक्षित अधिसूचित किया गया।

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