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    Tarari By Election Result 2024: तरारी में खिला कमल, गठबंधन को लगा तगड़ा झटका; देखें कितना रहा हार-जीत का अंतर

    Updated: Sat, 23 Nov 2024 06:36 PM (IST)

    Bihar By Election Result 2024 तरारी उपचुनाव का परिणाम भाजपा के लिए बेहद खास है। यहां से भाजपा ने सुनील पांडेय के पुत्र विशाल प्रशांत को मैदान में उतारा है। वहीं दूसरी तरफ माले ने राजू यादव को प्रत्याशी बनाया था। इस सीट पर सभी राउंड की गिनती पूरी हो चुकी है। भाजपा के विशाल भारी मतों से विजयी हुए हैं।

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    तरारी में भाजपा के सिर सजा जीत का ताज। फाइल फ़ोटो

    डिजिटल डेस्क, पटना। तरारी विधानसभा में सभी राउंड की गिनती हो चुकी है। इस सीट पर बीजेपी प्रत्याशी की जीत हो गई है। यहां से अब बीजेपी के विशाल प्रशांत विधायक बन जाएंगे। गठबंधन को तगड़ा झटका लगा है। बता दें कि विशाल प्रशांत करीब 10 हजार वोटों से जीते हैं। उनकी जीत से समर्थकों में खुशी की लहर दौड़ गई है।

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    तरारी विधानसभा के सभी 12 राउंड की गिनती पूरी हो चुकी है भाजपा 10507 मतों से आगे हैं। भाजपा को 78564 मत, भाकपा माले (CPIML) को 68057 मत और जनसुरज पार्टी को 5592 मत हासिल हुए। पोस्ट बैलेट में मिले मतों को जोड़ा जा रहा है, इसके बाद मतों में मामूली बदलाव हो सकता है। कुल मिलाकर भाजपा साढ़े 10 हजार से ज्यादा मतों से चुनाव जीत चुकी है।

    तरारी विधानसभा उप चुनाव भाजपा के लिए बेहद खास है। क्योंकि आरा लोक सभा का चुनाव में करारी हार के बाद भाजपा इसे अपनी ताकत दिखने का मौका के रूप में देख रही है। दूसरी ओर, महागठबंधन की ओर से भाकपा माले भी इस सीट को तीसरी बार अपने कब्जे में लेने में जुटी है।

    वहीं, जन सुराज भी इस सीट के लिए चुनाव में अपने अस्तित्व के लिए पूरे दम-खम के साथ जुटी रही। भाजपा के प्रत्याशी यहां से दो बार विधायक रहे सुनील पांडेय के पुत्र हैं। तरारी से तीन बार विधायक रह चुके सुनील पांडेय का अपना व्यक्तित्व है। दावा करने वाले बताते हैं कि सभी जात में सुनील पांडेय के समर्थक मिल जाते हैं।

    भाकपा माले के प्रत्याशी राजू यादव का मिलनसार व्यक्तित्व विरोधियों को भी आकर्षित करता है। जन सुराज की प्रत्याशी किरण कुमारी हैं। सभी के अपने-अपने कैडर वोट हैं, लेकिन वे अपने मतदाताओं को वर्ग और जाति में विभाजित कर पैठ बनाने में भी पीछे नहीं रहे।

    विशाल प्रशांत के लिए यह पहला चुनाव

    भाजपा प्रत्याशी विशाल प्रशांत के लिए यह पहला चुनाव है। उनके पिता व पूर्व विधायक सुनील पांडेय पिछले विधान सभा चुनाव में बतौर निर्दलीय प्रत्याशी 62 हजार मत लाकर दूसरा स्थान पर रहे थे। भाजपा और महागठबंधन दोनों का दावा है कि चुनाव भारी अंतर से जीत रहे हैं। आरा लोकसभा के सांसद सुदामा प्रसाद यहां से लगातार दो बार विधायक रहे हैं। उन्हें भी इस सीट को बचाने की चुनौती है।

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सांसद चिराग पासवान भी अपने-अपने आधार वोट के बीच एकजुट होकर भाजपा विशाल प्रशांत को जीताने की अपील कर चुके थे। पूर्व सांसद राज कुमार सिंह ने भी चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झाेक दी थी।

    सात महीने पहले लोकसभा चुनाव में आरा से भाजपा की अप्रत्याशित हार पूरे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए झटका था और इसका जमीनी स्तर तक कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ा था। अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और सात सीटों वाले भोजपुर जिले में एनडीए पराजय के संदेश के साथ कतई नहीं जाना चाहता था। तरारी उपचुनाव के लिए ठोंक-बजा कर तैयारी शुरू हुई और मजबूत प्रत्याशी की खोज हुई।

    पहले से ही यहां मजबूत जनाधार रखने वाले सुनील पांडेय को साधा गया और उनके पुत्र विशाल प्रशांत पर दांव लगाया गयाा। इस जीत से एनडीए को संजीवनी मिल गई। इससे न सिर्फ भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा, बल्कि एनडीए गठबंधन में भी यह संदेश गया कि ''एक हैं तब ही सेफ हैं''। तरारी की जीत एनडीए को ऐसे ही नसीब नहीं हो गई।

    इसके लिए सभी ने थोड़ा-थोड़ा दलीय हितों को दरकिनार कर त्याग किया। लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही पार्टी संगठन के बॉडी-लैंग्वेज में बदलाव दिखने लगा था। पार्टी के बड़े नेता ''मिलनसार'' होने लगे थे। गठबंधन के बीच भी प्रेम दिखाई देने लगा था। तरारी को भाकपा माले अपना गढ़ मानता है और 2015 में अकेले अपने दम पर पार्टी ने यहां से जीत दर्ज की थी।

    2020 के चुनाव में राजद के साथ आने के बाद माले का गढ़ और मजबूत हुआ। ऐसे में तरारी की रणनीति बनाते समय एनडीए को ऐसे प्रत्याशी की तलाश थी, जो दो बार से लगातार चुनाव जीत रहे माले को चुनौती दे सके। सुनील पांडेय पीरो से चुनाव जीतते रहे थे और 2010 में तरारी सीट के अस्तित्व में आने के बाद उन्होंने जदयू प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज की।

    हालांकि, 2015 में उन्होंने लोजपा की टिकट पर अपनी पत्नी गीता देवी को मैदान में उतारा और कुछ सौ मतों के मामूली अंतर से हार गए। 2020 के चुनाव में निर्दलीय आए और लगभग 11 हजार मतों के अंतर से चुनाव हारे। तब यहां से पहली बार चुनाव में उतरी भाजपा को केवल 13 हजार आठ सौ मत हासिल हुए।

    भोजपुर की राजनीति को करीब से समझने वाले सेवानिवृत्त प्रोफेसर बलराज ठाकुर कहते हैं कि इस बार भाजपा जानती थी कि उपचुनाव में जीतने वाले विधायक का कार्यकाल भले ही एक साल से भी कम होगा, लेकिन यहां के परिणाम का संदेश अगले साल के चुनाव में बहुत बड़ा होगा। इसी वजह से भाजपा कैडर से निकल जनाधार वाले नेता की ओर गई और उन्हें पार्टी में शामिल कराया।

    सुनील पांडेय की पहचान बाहुबली वाली रही है और विपक्ष को कुछ कहने का मौका नहीं मिले, इसलिए उनके पुत्र पर दांव खेला गया। ठाकुर कहते हैं कि गेम प्लान पहले से तय था और सुनील पांडेय के लिए भी अपने पुत्र के लिए राजनीति की जमीन तैयार करने में इससे बढ़िया मौका नहीं मिल सकता था। उनके नाम पर एनडीए एकजुट होकर लड़ी और आईएनडीआईए यहां चारों खाने चित हो गया।