5G के दौर में भी 'नेटवर्क कमजोर', भोजपुर के सैकड़ों गांवों में घरों के भीतर 'खिलौना' बना स्मार्टफोन
भोजपुर जिले के चरपोखरी प्रखंड के कई गांवों में मोबाइल नेटवर्क की गंभीर समस्या है। 5G के दौर में भी ये गांव नेटवर्क शैडो एरिया बने हुए हैं, जिससे लोगों को घरों में फोन और इंटरनेट इस्तेमाल करने में परेशानी हो रही है। टेलीकॉम कंपनियों के दावों के विपरीत, ग्रामीणों को डिजिटल सेवाओं और आपातकालीन स्थितियों में भी दिक्कतें आ रही हैं। ग्रामीण प्रशासन से टावर लगाने की मांग कर रहे हैं।

5G के दौर में भी नेटवर्क कमजोर
जागरण संवाददाता, चरपोखरी (भोजपुर)। भोजपुर जिले के चरपोखरी प्रखंड के बराढ़,बड़हरा,हरपुर,भैरोडीह और जैतपुरा सहित आस-पास के कई गांवों में मोबाइल नेटवर्क और इंटरनेट कनेक्टिविटी की गंभीर समस्या ने एक बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।
जहां एक ओर देश 5G कनेक्टिविटी की ओर अग्रसर है।वहीं यहाँ के दर्जन भर से अधिक गांव नेटवर्क शैडो एरिया बन गया हैं। शैडो एरिया का सीधा अर्थ है की ऐसा इलाका जहां मोबाइल नेटवर्क की फ्रीक्वेंसी लगभग नगण्य होती है, जिससे घरों के भीतर फोन पर बात करना या इंटरनेट का उपयोग करना असंभव हो जाता है।
टेलीकॉम कंपनियों के सारे दावे फेल
स्मार्ट फोन यूजर बराढ़ निवासी छोटू कुमार का कहना है कि घर में घुसते ही नेटवर्क के बिना फोन बेजान हो जाता है।यही नही जिले में सैकड़ों ऐसे गांव है जहां टेलीकॉम कंपनियों के सारे दावे दम तोड़ चुके हैं।
हरपुर निवासी मदन यादव,हिमांशु कुमार,बड़हरा निवासी मनमोहन मल्होत्रा,बराढ़ निवासी आनंद,कुंदन,मनु शर्मा सहित अन्य बताते हैं कि जैसे ही वे अपने घर की दहलीज पार करते हैं उनका स्मार्टफोन एक साधारण फीचर फोन से भी बदतर हो जाता है।न कॉल कनेक्ट होती है और न ही डेटा काम करता है।
बराढ़ निवासी आनंद ने कहा कि मै एयरटेल का वार्षिक पैक डलवाता हूं, लेकिन नेटवर्क न होने के कारण यह रिचार्ज पूरी तरह से व्यर्थ चला जाता है। जब कोई बेहद जरूरी कॉल करनी होती है या इंटरनेट का कोई काम होता है, तो हमें मजबूरी में घर से बाहर निकलकर किसी ऊंचे स्थान या खुले मैदान में जाना पड़ता है।
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी इससे बुरी तरह प्रभावित हो गई है।नेटवर्क नही रहना किसी एक कंपनी का बात नही है,एयरटेल, जिओ व बीएसएनएल सभी कंपनी का गांवों में यही हाल है।
नेटवर्क कमजोर बना डिजिटल सेवाओं पर बाधा
एक ओर जहां डिजिटल क्रांति जोरो पर है,जहां सभी कार्य इंटरनेट के माध्यम से किये जा रहे है।लेकिन नेटवर्क नहीं रहने के कारण स्कूली बच्चों की ऑनलाइन क्लास और असाइनमेंट अक्सर छूट जाते हैं। वही स्वास्थ्य या सुरक्षा संबंधी आपात स्थितियों में कॉल नहीं लगना भी खतरा बन जाता है।
टेलीकॉम कंपनियों के दावों की खुली पोल
टेलीकॉम कंपनियां लगातार यह दावा करती रही हैं कि उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में नेटवर्क फ्रीक्वेंसी को बढ़ाया है और चप्पे-चप्पे पर इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करा दी है। लेकिन धरातल पर चरपोखरी जैसे कई प्रखंडों की हकीकत इन दावों के बिल्कुल विपरीत है।
इधर नेटवर्क की समस्या से जूझ रहे ग्रामीण अब महंगे और सीमित विकल्पों की ओर मुड़ने को मजबूर हैं। वे मजबूरी में इंटरनेट चलाने के लिए केबल ब्रॉडबैंड, बीएसएनएल या अन्य भारी उपकरण लगा रहे हैं, जो उनकी मासिक जेब पर अनावश्यक बोझ डाल रहा है।
ग्रामीणों ने कहा टावर लगे, फ्रीक्वेंसी बढ़े
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन और संचार मंत्रालय से तत्काल इन शैडो एरिया का सर्वे कराकर नए मोबाइल टावर लगाने और मौजूदा टावरों की फ्रीक्वेंसी (शक्ति) बढ़ाने की मांग की है। यह सिर्फ कनेक्टिविटी का नहीं, बल्कि डिजिटल नागरिक के रूप में उनके मौलिक अधिकार का भी सवाल है।

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