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    Vishwakarma Puja Special: आरा में शान से खड़े हैं 100 साल से ज्यादा पुराने वास्तुशिल्प के नमूने

    Updated: Wed, 17 Sep 2025 09:10 PM (IST)

    आरा में भगवान विश्वकर्मा जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। यहां कई ऐतिहासिक इमारतें हैं जो सौ साल से अधिक समय से खड़ी हैं। कोइलवर पुल मॉडल स्कूल पुराना चर्च और नहरों की लॉक प्रणाली वास्तुकला और इंजीनियरिंग के शानदार उदाहरण हैं। ये इमारतें आज भी मजबूत हैं और अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती हैं।

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    सौ साल से ज्यादा पुराने वास्तुशिल्प के नमूने। फोटो जागरण

    कंचन किशोर, आरा। भगवान विश्वकर्मा को वास्तुशिल्प और तकनीकी कला का आराध्य देव माना जाता है। उनकी जयंती पर जहां देशभर में कारीगर और शिल्पकार श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना करते हैं, वहीं आरा में कई ऐसे ऐतिहासिक नमूने आज भी शान से खड़े हैं, जो सौ वर्ष से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी अपनी मजबूती और कलात्मक सुंदरता के लिए चर्चित हैं।

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    यह आज की अभियंत्रण तकनीक को चुनौती देता है, जहां अनेक मामलों में निर्माण के कुछ ही वर्षों बुनियादी ढांचा की नींव दरकने लगती है और भवन जर्जर होने लगते हैं।

    कोइलवर पुल– इंजीनियरिंग का अद्भुत उदाहरण 

    दिल्ली-पटना मुख्य रेलमार्ग पर कोईलवर में सोन नदी पर 1862 में बना अब्दुल बारी रेल सह सड़क कोईलवर पुल किसी हेरिटेज से कम नहीं है। पुल लैटिक गार्डर पद्धति पर बना है। यह पुल स्थापत्य कला और प्राचीन समय की इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है, जो ऐतिहासिक के साथ दर्शनीय भी है।

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    कोईलवर में सोन नद पर 163 साल पहले निर्मित ऐतिहासिक लोहा पुल

    पुल के ऊपरी हिस्से में दिल्ली को हावड़ा से जोड़ने वाला अप और डाउन मुख्य रेल मार्ग और निचले हिस्से से भोजपुर को राजधानी पटना को जोड़ने वाला सड़क मार्ग बना था।

    सड़क मार्ग के उत्तरी सड़क मार्ग 3.03 मीटर और दक्षिणी मार्ग 4.12 मीटर चौड़ा है। 1440 मीटर लंबे पुल के निर्माण में लगभग 5683 टन लोहा लगा है। लोहा पुल के अठाइस खम्भे सोन नद में अभी शान से विराजमान है, जबकि, हाल के 10-15 वर्ष पहले जिले में बने पुलों की हालत खस्ता हो रही है।

    मीरगंज का आरा मॉडल स्कूल भवन- वास्तु की धरोहर

    मीरगंज का मॉडल स्कूल 1846 ईस्वी में अंग्रेजों ने बनवाया था। उस दौर में इसे एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक भवन का दर्जा प्राप्त था। इसी भवन में अदालत लगती थी, जहां उस समय पूरे शाहाबाद जिले से जुड़े मुकदमों की सुनवाई होती थी।

    Model School Ara

    मॉडल स्कूल व जर्जर भवन

    वर्ष 1917 में इस भवन को विद्यालय में तब्दील कर दिया गया और विंध्यवासिनी प्रसाद इसके पहले प्राचार्य बने। आज भी यहां माडल स्कूल चलता है और भवन का मूल ढांचा शान से खड़ा है।

    Court ara

    ऊपर वाले भवन में जज के द्वारा सजा दी जाती थी

    हालांकि, देखरेख के आभाव में दीवारों से पलस्तर झड़ रहा है, छतें टपकने लगी हैं, पुराने खिड़की-दरवाजे टूट चुके हैं। पूर्व वार्ड पार्षद अशोक सिंह बताते हैं कि कभी यह इमारत न्याय और शिक्षा दोनों का प्रतीक रही, इसे धरोहर के रूप में सुरक्षित रखना चाहिए।

    पुराना चर्च – यूरोपीय शैली का आकर्षण

    आरा का सबसे पुराना चर्च सेंट मैरी चर्च (या होली सेवियर चर्च) है, जिसका निर्माण 1911 में हुआ था। यह चर्च प्रारंभिक अंग्रेजी वास्तुकला का एक उदाहरण है, जो ब्रिटिश शासक महाराजा जार्ज पंचम के एक दिन के ठहराव के दौरान उनके स्वागत के लिए बनवाया गया था। यह गोथिक शैली की लाल ईंटों से बनी एक खूबसूरत संरचना है, और यह आरा के रमना मैदान के पास स्थित है।

    इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है नहरों की लॉक प्रणाली

    शाहाबाद को धान का कटोरा बनाने में सोन नहर एवं उसमें बने लॉक की महत्वपूर्ण भूमिका है। नहर का लॉक सिस्टम इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है। लख के निर्माण में लगी ईंट व लोहे 150 साल बाद भी हूबहू है।

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    बड़ी नहर का सखुआ लख

    लॉक सिस्टम से नहर में पानी का प्रवाह व परिवहन आदि कार्यों का सहजता से निष्पादन किया जाता है। डिहरी से आरा तक 96 कि भी बड़ी नहर का निर्माण कराया गया था जिसमें प्रत्येक 7 किलोमीटर पर लख बना था।

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    बड़ी नहर का सखुआ लख

    अंग्रेजों के जमाने में नहर का उपयोग सिंचाई के साथ ही नौकाएं व छोटे स्टीमर चलाने में होता था। आज स्टीमर तो नहर में नहीं चलते, लेकिन लाक प्रणाली आज भी कारगर है।