Ara News: 16 साल से शाहाबाद की लाइफ लाइन बनी आरा-सासाराम रेल लाइन, अंग्रेजों के जमाने में बना था स्टेशन
साल 2009 के फरवरी में आम चुनाव के पहले आरा-सासाराम रेल लाइन को चालू किया गया था। हालांकि आरा में अंग्रेजों के जमाने में भी ट्रेन का संचालन किया जाता था। अंग्रेजों ने 1857 में आरा स्टेशन की स्थापना की थी। हावड़ा से दिल्ली तक बिछाई गई रेल लाइन में आरा प्रमुख ठहराव था। वहीं 1904 में आरा से सासाराम लाइन का मसौदा तैयार हुआ।

रितेश चौरसिया, आरा। आज से 25 साल पहले आरा जंक्शन से आरा सासाराम रेल मार्ग नहीं था और सड़क मार्ग शाहाबाद के दो प्रमुख शहरों को जोड़ता था। 25 साल पहले दैनिक जागरण के बिहार में आगमन के बाद आरा-सासाराम का मुद्दा जोर शोर से उठाया गया। इसके लिए होने वाले आंदोलनों को अखबार के पन्ने पर प्रमुखता से स्थान दी गई।
2009 में हुई शुरुआत
पाठकों को आवाज सरकार तक पहुंची और रेल लाइन का काम शुरू हुआ। वर्ष 2009 के फरवरी में आम चुनाव के पहले आरा-सासाराम रेल लाइन को चालू किया गया था।
98 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन में से सासाराम और पीरो के बीच 60 किलोमीटर लंबी रेल लाइन को तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद ने राष्ट्र को समर्पित किया।
30 साल पुराना सपना हुआ पूरा
इसके साथ ही पुराने शाहाबाद क्षेत्र के लोगों का आरा और सासाराम के बीच रेलगाड़ी चलाने का 30 साल पुराना सपना को साकार हो सका था। सासाराम से आरा के बीच 98 किलोमीटर लंबे मार्ग पर नई ब्राड गेज लाइन का निर्माण करीब 190 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था।
आरा स्टेशन का इतिहास
दरअसल, आरा जंक्शन का इतिहास भारत में रेल के आगमन के कुछ वर्षों बाद से ही जुड़ा है। अंग्रेजों ने 1857 में आरा स्टेशन की स्थापना की थी। हावड़ा से दिल्ली तक बिछाई गई रेल लाइन में आरा प्रमुख ठहराव था। पहले सिंगल लाइन रेल लाइन बिछाई गई थी।
रेल लाइन पर कोयले के इंजन के साथ ट्रेन आरा स्टेशन पहुंचती थी। यहां इंजन के लिए कोयला और पानी आपूर्ति के इंतजाम किए गए थे। 1904 में आरा से सासाराम लाइन का मसौदा तैयार हुआ।
1914 में छोटी लाइन पर निजी कंपनी मार्टिन रेलवे ने आरा-सासाराम रेल परिचालन शुरू किया। बढ़ते घाटे को देखते हुए निजी कंपनी ने वर्ष 1978 में आरा सासाराम रेल लाइन को बंद कर दिया।
मात्र 20 पैसे था पटना से आरा का रेल किराया
1970 से पहले आरा जंक्शन ईस्टर्न रेलवे कोलकाता के अधीन था। तब आरा जक्शन का एक महीना का आय 42463 हुआ करती थी। यात्री की संख्या पूरे माह की संख्या 30 हजार के आस पास हुआ करती थी। आजादी के बाद तक पटना से आरा रेल भाड़ा 20 पैसा हुआ करता था।
उस आय के बाद भी आरा जंक्शन का विकास उस हिसाब से अच्छा हुआ करती थी। आज आरा जंक्शन सौ करोड़ से ज्यादा सालाना आय अर्जित कर रहा है। इसके बावजूद कमाई और यात्रियों की संख्या की तुलना में यहां सुविधाएं नहीं बढ़ीं हैं।
ईस्टर्न रेलवे कोलकाता से वर्ष 2002 में दानापुर रेल मंडल अलग हुआ। वर्ष 2009 में आरा- सासाराम बड़ी रेल लाइन चालू हुई तो आरा स्टेशन का जक्शन का दर्जा मिला, लेकिन मौखिक तौर पर दिया गया। उसके बाद 2018 में आरा स्टेशन को जंक्शन का दर्जा दिया गया।
आरा-भभुआ और आरा-बलिया रेल लाइन का बेसब्री से इंतजार
वर्ष 2008 में आरा-भभुआ रेल परियोजना की चर्चा शुरू हुई थी। दिसंबर 2008 को तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने मोहनियां में आरा-भभुआं रेल लाइन का शिलान्यास भी किया था, लेकिन परियोजना रेलवे के फाइल में दफन हो गई।
आरा से बलिया तक रेल संपर्क भी यहां के लोगों की पुरानी मांग है। हर बजट में इस परियोजना को लेकर आस जगती है, लेकिन इंतजार अभी खत्म नहीं हुआ है।
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