कामेश्वर प्रसाद सिंह : थम गयी तबले की थाप
एक प्रतिनिधि, आरा : थम गयी तबले की थाप। बड़हरा प्रखंड के चातर गांव निवासी वरिष्ठ तबलावादक कामेश्वर प्रसाद सिंह(65 वर्ष) का हृदयगति रूक जाने के कारण मंगलवार की सुबह निधन हो गया। मशहूर तबलावादक स्व. गुदई महाराज के शिष्य कामेश्वर प्रसाद सिंह गत कई सालों से मधुमेह रोग से ग्रस्त थे। स्व. ओंकारनाथ शास्त्री संस्थान से 'तबला अलंकार', नार्दन रेलवे से 'सर्वश्रेष्ठ तबलावादक' समेत अन्य सम्मानों से सम्मानित स्व. सिंह के तबलावादन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।
बचपन से था संगीत से लगाव : कामेश्वर जी को बचपन से ही संगीत से गहरा लगाव था। उन्होंने ढोलक बजाने की प्रारंभिक शिक्षा गुंडी के स्व.तारकेश्वर पाठक से हासिल की। बताया जाता है संगीत से गहरा लगाव होने के कारण वे किसी कार्यक्रम में बजाने के लिए गंगा नदी तैर कर पार कर जाते थे और कार्यक्रम में शामिल होकर तैरकर ही घर वापस आते थे। स्व. सिंह के शिक्षक पिता स्व.शोभनाथ सिंह नहीं चाहते थे कि उनका पुत्र ढोलक बजाये। वे अपने पुत्र को वादन के लिए मना करते थे। संगीत से विशेष लगाव के कारण उनपर अपने पिता की मनाही का असर नहीं पड़ता था।
पिता की मार से घर छोड़ भागे : शायद घर नहीं छोड़ते तो कामेश्वर जी मशहूर तबलावादक नहीं बनते। बताया जाता है कि 1980 में चातर गांव में चैता का कार्यक्रम था। इस कार्यक्रम में उनके गांव का वादक हारनेवाला था। इसकी सूचना पाकर गांव की प्रतिष्ठा का ख्याल कर वे चैता के कार्यक्रम में ढोलक बजाये। जब इस बात की जानकारी उनके पिता को हुई तो वे तारकेश्वर जी को अगले दिन सुबह में सोते समय ही नीम के दातुन से खूब पिटाई कर दी, जिसके कारण वे नंगे पांव ही घर छोड़कर मुगलसराय चले गये।
मुगलसराय से बदला जीवन : घर छोड़ने के बाद कामेश्वरजी मुगलसराय में बसंतपुर के अपने एक रिश्तेदार के यहां रहने लगे। बताया जाता है कि नार्दन रेलवे के एक कार्यक्रम में कामेश्वर जी ने जब ढोलक की थाप पर रेलगाड़ी की चाल को प्रस्तुत किया तो कार्यक्रम में मौजूद तत्कालीन लखनऊ के डी.आर.एम ने उनकी कला से प्रभावित होकर कहा कि 'यह कलाकार रेलवे की अच्छी सेवा कर सकता है।' साथ ही डी.आर.एम ने उन्हें रेलवे में नौकरी दे दी।
गुदई महाराज से सीखा तबला : नौकरी शुरू करने के साथ ही गुदई महाराज से तबले की बारीकियों को सीखा। वे गुदई महाराज के परम शिष्यों में से एक थे। महाराज जी उन्हें प्यार से 'अनुराग' कहकर पुकारते थे। तबले की विधिवत तालीम हासिल करने के बाद कामेश्वर जी ने ख्यातिलब्ध भोजपुरी गायक भरत शर्मा 'व्यास', नथुनी सिंह समेत अन्य गायकों के साथ संगत किया। वहीं अपने पुत्र अंजनी सिंह को तबले की विधिवत तालीम दी। आज अंजनी युवा तबलावादकों में अपने परिश्रम व पिता के आशीर्वाद से अहम स्थान प्राप्त कर चुके हैं।
एक अच्छे कलाकार के साथ काफी संवेदनशील थे : तबलावादन के साथ ही वे जानवरों की आवाजें बखूबी निकालते थे। साथ ही अपने मुंह से कपड़ा फाड़ने की आवाज भी बखूबी निकलते थे, जिसके कारण कई बार लोगों से तू-तू, मैं-मैं हो जाती थी। वे अक्सर अच्छे कलाकारों को सम्मान देते थे।
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