Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    खड़ी बोली के विकास में पं.सदल मिश्रका योगदान महत्वपूर्ण

    By Edited By:
    Updated: Tue, 19 Mar 2013 10:06 PM (IST)

    ...और पढ़ें

    Hero Image

    मृत्युंजय सिंह: स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर खड़ी बोली हिन्दी को विकसित करने में भोजपुर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आधुनिक खड़ी बोली हिन्दी गद्य-साहित्य की नींव जिन लोगों ने तैयार की उनमें एक आरा के सदल मिश्र का नाम भी शामिल है। श्याम सुंदर दास के मतानुसार 'हिन्दी के प्रारंभिक गद्य लेखकों में पहला स्थान इंशाअल्ला खां, दूसरा स्थान सदल मिश्र और तीसरा स्थान लल्लू जी लाल को मिलना चाहिए'। आरा के मिश्रटोला में कोई डेढ़ सौ साल पहले हिन्दी के सर्वप्रथम गद्य लेखक पं.सदल मिश्र का जन्म हुआ था। पं.सदल मिश्र 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में फोर्ट विलियम कालेज में हिन्दी के अध्यापक और लेखक थे। यहां लगभग 25 वर्ष तक कार्य करने के बाद कोलकाता से जहाज से सिन्हा घाट होकर आरा लौटे। पं.सदल मिश्र की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना 'नासिकेतोपाख्यान' है। यह आख्यानमूलक गद्य-कृति है। इसमें महाराज रघु की पुत्री चंद्रावती और उनके पुत्र 'नासिकेत' का पौराणिक आख्यान वर्णित है। ' नासिकेत' की कथा यजुर्वेद कठोपनिषद और पुराणों में वर्णित है। पं. सदल मिश्र ने इसे स्वतंत्र रूप से खड़ी बोली गद्य में भाषांतरित करके सर्वजन सुलभ बना दिया है। सदल मिश्र की दूसरी महत्वपूर्ण रचना 'अध्यात्म रामायण' है। यह संस्कृत के 'अध्यात्म रामायण' की खड़ी बोली हिन्दी में गद्यानुवाद है। इसमें भगवान राम की कथा सात खण्डों में वर्णित है। पं. सदल मिश्र हिन्दी के उन प्रारंभिक गद्य लेखकों में से एक हैं, जिन्होंने 1800 ई के आस-पास ही साहित्य की बदलती हुई प्रवृत्तियों को समय पूर्व पहचाना और गद्य रचना की शुरुआत की। पं.सदल मिश्र खड़ी बोली हिन्दी के प्रारंभिक गद्य लेखकों में से एक थे। पं.सदल मिश्र ने तत्कालीन समय की प्रचलित साहित्यिक भाषा ब्रज भाषा के विपरीत व्यवहारोपयोगी खड़ी बोली में लिखने का सफल प्रयत्‍‌न किया।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर