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    विश्व रंगमंच दिवस : नाटकों का मूल तत्व है, द्वंद : डा. बहादुर मिश्र

    विश्व रंगमंच दिवस सामाजिक औऱ सांस्कृतिक संस्था आलय ने रंग संवाद का आयोजन किया। कला केंद्र में वक्‍ताओं ने कहा कि पाश्चात्य नाटकों में ट्रेजरी को महत्व दिया गया है। उन्होंने भारत रचित नाट्य शास्त्र में भेद तथा वस्तु नेता और रस के विषय में विस्तृत व्याख्या की।

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By: Updated: Mon, 28 Mar 2022 01:34 PM (IST)
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    रंग संवाद कार्यक्रम को संबोधित करते डा बहादूर मिश्र।

    ऑनलाइन डेस्‍क, भागलपुर। विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पर सामाजिक औऱ सांस्कृतिक संस्था आलय द्वारा 'रंग संवाद' का आयोजन स्थानीय कला केंद्र भागलपुर के परिसर में किया गया। मुख्य वक्ता के रूप में स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष व शिक्षाविद डॉ बहादुर मिश्र थे। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय रंगमंच संबंधित दशरूपक और नाट्य शास्त्र के विषय में रंग कर्मियों को अवगत कराया। अपने संवाद के दौरान उन्होंने कहा के भारतीय परंपरा शील नाटकों के फलागम में हर्षोल्लास है।

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    वहीं पाश्चात्य नाटकों में ट्रेजरी को महत्व मिला है। साथ ही उन्होंने भारत रचित नाट्य शास्त्र में उल्लेखित नायक-नायिकाओं के भेद तथा वस्तु, नेता और रस के विषय में विस्तृत व्याख्या की। कार्यक्रम में वरिष्ठ कथाकार और रंगकर्मी रंजन ने भी अपना वक्तव्य दिया और कहा रंगमंच को बचाने हेतु इसे फिर से व्यावसायिक बनाना होगा। धन्यवाद ज्ञापन आलय के अध्यक्ष वह पूर्व प्रधानाचार्य मनोज कुमार सिंह ने किया।

    मनोज कुमार सिंह ने कहा कि यह आलय द्वारा आयोजित यह सोलहवां रंग संवाद था। इस कार्यक्रम में आलय से संबंधित कई रंग कर्मियों ने हिस्सा लिया। जिसमें युवा निर्देशक डॉ कुमार चैतन्य प्रकाश, मिथिलेश कुमार, ब्रजकिशोर, विक्रम, रंजीत कुमार, राजेश कुमार झा, सलमान अनवर, आदित्य आनंदम, विकास कुमार, तनुश्री सुरभि, प्रिया भगत, विवेक मिश्रा, श्रेया, ब्रजेश, नंदन, डॉ शैलेन्द्र, शशि शंकर और फ‍न‍िश्‍वर आदि मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन शशि शंकर और चैतन्य ने संयुक्त रूप से किया।

    आलय एक सामाजिक और सांस्‍कृतिक संस्‍था है। लगातार यह संस्‍था क्षेत्र के रंगकर्मी को प्रशिक्षण देती है। नाटक सहित अन्‍य कार्यक्रम भी किए जाते हैं। कई रंगकर्मी इससे जुड़े हुए हैं। 

    27 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच दिवस है। 1961 में नेशनल थियेट्रिकल इंस्टीट्यूट ने प्रयास से इसकी स्‍थापना हुई।  रंगमंच से संबंधित संस्थाओं और समूहों द्वारा इस दिन को विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश 1962 में फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था। यह संदेश भारत के प्रसिद्ध रंगकर्मी गिरीश कर्नाड ने वर्ष 2002 में दिया था।