मृत्यु भोज पर बिहार का मुलायम सिंह यादव बनने चले थे भाजपा के यह विधायक, अब हिंदुत्ववादियों के निशाने पर
बिहार के भाजपा विधायक ललन पासवान एक चर्चा थमते ही दूसरी चर्चा में आने का इंतजाम ढूंढ़ने लगते हैं। अभी चर्चा मृत्यु भोज से देवी-देवताओं पर की गई टिपण्णी का है। मुलायम सिंह यादव से विधायक अचानक प्रभावित हो गए। हिंदुत्ववादियों ने निशाने पर विधायक आ गए हैं।

शंकर दयाल मिश्रा, भागलपुर। भागलपुर जिले का पीरपैंती विधानसभा क्षेत्र। विधायकी के लिए पिछड़ों के नाम आरक्षित क्षेत्र। यहां के भाजपा विधायक ई. ललन पासवान उर्फ ललन कुमार इन दिनों फिर राष्ट्रीय स्तर तक सुर्खियां बटोर रहे हैं। एक हफ्ता पूर्व देवी-देवताओं को जोड़ती उनकी एक टिप्पणी से हिंदुत्ववादी नाराज हैं। हिंदुत्ववादियों के साथ भाजपा के लोग भी इसे देवी-देवताओं का अनादर मान रहे हैं। एक हफ्ता होने को है, वे इंटरनेट मीडिया पर विधायक को लगातार निशाना बनाए हुए हैं। इधर, विधायक के बयान के मायने उनकी पार्टी निकाल रही है।
दूसरी ओर, विधायक ने कहा कि वे मृत्युभोज से संबंधित सवालों का जवाब दे रहे थे। विराधियों ने एक प्रश्न के जवाब के हिस्से को काटकर गलत रूप देते हुए वायरल किया। वे सनातनी हैं, शिवभक्त हैं। देवी-देवताओं के अनादर की सोच भी नहीं सकते। फिर भी उनकी बात से किसी को ठेस पहुंची है तो माफी मांगते हैं।
विधायक ललन पासवान की मां कुलेश्वरी देवी की मृत्यु बीते 7 अक्टूबर को हुई थी। एक माह पूर्व 12 सितंबर को उनकी इकलौती बड़ी बहन कृष्णा भी यह दुनिया छोड़ गईं। मां की मृत्यु के आठ दिन बाद 16 अक्टूबर को विधायक फेसबुक लाइव आते हैं। वे मृत्युभोज को सामजिक कुरीति बताकर इसे नहीं करने और किसी के मृत्युभोज में शामिल नहीं होने की जानकारी देते हैं। स्वभाविक तौर पर अचानक से मत्युभोज को कुरीति बताने के पीछे विधायक का कारण लोग तलाशने लगे। संभावनाएं दो ही थीं आर्थिक कमजोरी और चर्चा में आना। यहां बताना मुनासिब है कि विधायक ललन पासवान की इस घोषणा के दो दिन पूर्व सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की मृत्यु पर भोज नहीं दिए जाने की विस्तार से जानकारी राष्ट्रीय स्तर पर अखबारों में छपी थी। यह टीवी और इंटरनेट मीडिया में भी चर्चा में आया। उत्तरप्रदेश के सैफई में मुलायम ने ही यह परंपरा शुरू कराई थी ताकि मृत्युभोज करने में किसी गरीब की जमीन-जायदाद न बिके।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ललन पासवान को चर्चा में बने रहने की राजनीतिक अदा खूब आती है। मामला चाहे लालू यादव के बातचीत की रिकार्डिंग को वायरल करने का हो, विधानसभा में गाड़ी की डिलीवरी लेने का, भैंस खरीदने का या तेजस्वी के उपमुख्यमंत्री बनने पर उनसे मिलकर उन्हें लालू यादव पर लिखी एक किताब देते हुए फोटो फेसबुक पर पोस्ट करने का। ऐसे में प्रथमदृष्टया प्रतीत होता है कि मुलायम की मौत पर मृत्युभोज नहीं दिए जाने की खबर ने विधायक के इंजीनियर दिमाग में चर्चा बटोरने की योजना तैयार कर दी। दो दिन इंतजार इसलिए किया कि परिवार में चर्चा कर लें और कोई इसे सैफई की देखादेखी ना कह दे।
स्पष्ट है कि बिहार में इन दिनों अलग-अलग जिलों से मृत्युभोज के विरोध की जानकारी आती रहती है लेकिन यह एक-दो गांवों और पंचायत तक ही सिमटी होती है। लेकिन कोई भी यह समझ सकता है कि विधायक इसका विरोध करेगा तो बात दूर तलक जाएगी। विधायक ने इसे एक बहस बनाने की कोशिश की और गड़बड़ यहीं हो गई। बात मृत्युभोज नहीं दिए जाने तक ही नहीं ठहरी। व्यक्तिगत आस्था से जुड़े एक सवाल के जवाब में उन्होंने तर्क दिया कि अगर मुसलमान लक्ष्मी की पूजा नहीं करते तो क्या वे अरबपति नहीं होते हैं? सरस्वती की पूजा नहीं करते तो क्या आइएएस-आइपीएस नहीं होते हैं? हालांकि विधायक के मुताबिक उन्होंने उस जवाब में ही कहा था कि वे कर्मकांड करा रहे हैं यह उनकी आस्था है, जिसकी जैसी आस्था है वह वैसा करेगा। लेकिन विरोधियों ने अधूरा वीडियो वायरल कराकर दूसरा ही रूप दे दिया। विधायक का दावा है कि विरोध करने वालों में अधिकतर वही हैं जिन्होंने चुनाव के दरम्यान भी उनका विरोध किया था।
कुल मिलाकर, स्पष्ट है कि एक चर्चा थमती है कि वे दूसरी चर्चा में आने का दूसरा इंतजाम ढूंढ़ने लगते हैं। इस बार तो वे दक्षिण भारत तक के अखबारों में सुर्खियां बटोर रहे हैं। हालांकि, पार्टी के बड़े नेता विधायक की सुर्खियां बटोरने के तरीके में कोई गुप्त संदेश भी तलाशने की कोशिश करते हैं। चूंकि भाजपा बिहार की सत्ता से बेदखल हो चुकी है और महागठबंधन का भावी गणित भारी नजर आता है इसलिए आशंका यहां तक पहुंच जाती है कि कहीं विधायक पाला तो नहीं बदल लेंगे। वैसे, विधायक खुद को भाजपा का वफादार सिपाही बताते हैं। वे कहते हैं कि भाजपा के कारण ही वे यहां तक पहुंच पाए हैं। वैसे, इस प्रकरण के बाद पार्टी के अंदर भी विधायक का कड़ा विरोध हो रहा है। देवी-देवाताओं के कथित अनादर के विरोध में उनकी ही पार्टी के कई अधिकारियों ने बीते 18 अक्टूबर को पुतला फूंका। इसके बाद पार्टी के जिलाध्यक्ष ने दोनों पक्षों से बात की। हालांकि इसका क्या निष्कर्ष निकला यह स्पष्ट नहीं हो पाया है।
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