जब भागलपुर में गांधीजी पर हुई थी सिक्कों की बारिश, बापू की अनसुनी अनोखी शर्त पढ़ खड़े हो जाएंगे रोंगटे
गांधी जयंती- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन का एक अनोखा अध्याय बिहार के भागलपुर से भी जुड़ा है। गांधी जी की अनोखी शर्त का भागलपुर के लोगों ने खुले दिल से स्वागत किया। पूरा वाकया बड़ा रोचक और रोंगटे खड़े कर देने वाला है।
विकास पांडेय, भागलपुर। हमेशा लोगों के हितों का ख्याल रखने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी उस समय संकट में फंस गए थे, जब भागलपुर के लाजपत पार्क की सभा में पांव छूकर प्रणाम करने के लिए उमड़ी भीड़ से इसके एवज में उन्होंने चार आना देने की शर्त रख दी थी। बात दो अप्रैल, 1934 की है। उनके मुंह से यह बात निकलते ही लोगों ने उनकी ओर चवन्नी फेंकनी शुरू कर दी थी। सिक्कों की बारिश देखते ही देशरत्न राजेंद्र प्रसाद, दीपनारायण सिंह, रासबिहारी लाल सरीखे स्वाधीनता सेनानियों ने सिक्कों की चोट से गांधीजी को बचाने के लिए उन्हें चारों ओर से घेर लिया था। नेताओं ने लोगों से एक-एक करके गांधीजी का अभिवादन करने का आग्रह किया था। तब जाकर सिक्कों की झड़ी रुकी थी।
इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी रहे नाथनगर के प्रसिद्ध स्वाधीनता सेनानी रासबिहारी लाल (अब जीवित नहीं हैं) ने कुछ वर्ष पूर्व बताया था कि 1934 में मुंगेर में आए भीषण भूकंप से जान-माल की क्षति को देखकर गांधीजी दहल गए थे। उन्हें वहां के भूकंप पीड़ितों को हरसंभव राहत प्रदान करने के सिवा कुछ नहीं सूझ रहा था। स्थानीय लाजपत पार्क की जनसभा में भी उन्होंने हताहत लोगों के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करते हुए जनता से तन-मन-धन से राहत कार्य चलाने की अपील की थी। उसमें उन्होंने सभी लोगों से समरसता बनाए रखने की भी अपील की थी। उस दौरान सभा समाप्त होने पर जब उनके पांव छूकर प्रणाम करनेवालों की भीड़ उमड़ पड़ी तो उन्होंने राहत कोष के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से चार आने की फरमाईश कर दी।
बापू ने किया था नशाबंदी का पुरजोर समर्थन
गांधी जी इससे पूर्व भी दो बार भागलपुर आ चुके थे। पहली बार वे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी दीपनारायण सिंह के आमंत्रण पर 20 दिसंबर, 1920 को भागलपुर आए थे और उनके आवास पर ठहरे थे। उस दौरान उन्होंने भागलपुर में कांग्रेस की शाखा की स्थापना की थी। उसमें दीपनारायण सिंह अध्यक्ष व रासबिहारी लाल प्रथम कोषाध्यक्ष बनाए गए थे। उसी दिन यहां नशाबंदी आंदोलन का उद्घाटन करते हुए उन्होंने नशाबंदी का पुरजोर समर्थन करते हुए कहा था नशा करने वाले लोग स्वतंत्रता हासिल नहीं कर सकते। बाद में उन्होंने तिलकामांझी भागलपुर विवि स्थित रविंद्र भवन (टिल्हा कोठी) की सीढ़ी पर से लोंगों को संबोधित किया था। उसमें उन्होंने लोगों से हिन्दू-मुस्लिम एकता मजबूत करने, छुआछूत निवारण, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार करने, खादी वस्त्र पहनने व घर-घर चरखा चलाने का आह्वान किया था।
हिंदी के प्रचार-प्रसार के थे प्रबल समर्थक
स्थानीय वरीय लोगों के अनुसार, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भागलपुर की जनता को दूसरी बार रूबरू होने का सुयोग 30 सितंबर, 1925 को मिला था। उस दिन उन्होंने यहां मारवाड़ी अग्रवाल सभा को संबोधित करते हुए खादी व हिंदी का व्यवहार करने तथा विधवा व बाल विवाह पर विचार प्रकट किए थे। दूसरे दिन 01 अक्टूबर, 1925 को लाजपत पार्क में उन्होंने जनसभा को संबोधित किया था। अपने जीवन काल में बापू ने अंग प्रदेश का चार बार दौरा किया।