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    Tulsi Vivah Kab Hai 2025: आज है तुलसी विवाह, इस तरह करें शालिग्राम-तुलसी पूजन, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और भोग

    By Hirshikesh Tiwari Edited By: Alok Shahi
    Updated: Sun, 02 Nov 2025 01:54 AM (IST)

    Tulsi Vivah 2025, Tulsi Vivah Kab Hai: तुलसी विवाह कब है? इसकी सही तिथि, शुभ मुहूर्त, भोग और पूजा विधि क्या है? आज के दिन यथा कार्तिक शुक्ल पक्ष की बारहवीं तिथि, द्वादशी, 2 नवंबर, रविवार को Tulsi Vivah तुलसी विवाह का आयोजन सनातन धर्म के विधि-विधान और पौराणिक मान्यताओं के बीच पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ किया जा रहा है। शनिवार, 1 नवंबर 2025 को देवउठनी एकादशी के अगले दिन Tulsi Vivah 2025 Date तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है। धार्मिक दृष्टि से Tulsi Vivah तुलसी विवाह को अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि चार माह के शयन के बाद जाग्रत होकर भगवान विष्णु इस दिन देवी तुलसी (वृंदा) से विवाह करते हैं। Tulsi Puja तुलसी पूजा करना मंगलकारी होता है। Tulsi Vivah Kab Hai 2025

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    Tulsi Vivah 2025, Tulsi Vivah Kab Hai: रविवार, 2 नवंबर को तुलसी विवाह का पर्व मनाया जा रहा है। Tulsi Puja

    संवाद सहयोगी, भागलपुर। Tulsi Vivah Kab Hai, Tulsi Vivah 2025, Tulsi Puja 1 नवंबर, शनिवार को देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के शयन से जाग्रत होने के अगले दिन आज यानी रविवार, 2 नवंबर 2025 को तुलसी विवाह का पर्व पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यता है कि इस दिन चार माह के शयन के बाद जाग्रत होने वाले भगवान विष्णु का विवाह देवी तुलसी के साथ संपन्न होता है। Tulsi Vivah Kis Din Hai तुलसी विवाह के साथ ही सनातन धर्म में मांगलिक कार्यों का शुभ मुहूर्त और विवाह उत्सव शुरू हो जाता है। Tulsi Vivah 2025 Date तुलसी विवाह को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ और मंगलदायक माना जाता है। 

    रविवार को संध्या समय तुलसी विवाह पारंपरिक रीति-रिवाजों से घर-घर में किया जाएगा। विधान अनुसार सबसे पहले तुलसी जी की मंगनी, फिर फेरे और आरती के साथ तुलसी विवाह संपन्न होगा। इस दिन श्रद्धालु अगर उपवास रखकर तुलसी विवाह में शामिल हों और Tulsi Puja तुलसी पूजा करें तो उनको मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और वैवाहिक जीवन सुखी हाेता है। पंडित-पुरोहित बताते हैं कि Tulsi Vivah Kab Hai 2025 देवउठनी एकादशी के अगले दिन देव उठान द्वादशी को तुलसी माता का विवाह शालीग्राम स्वरूप वाले भगवान विष्णु के साथ विधिपूर्वक कराया जाता है। Tulsi Vivah तुलसी विवाह का पर्व हमारे घर-परिवार में सुख, समृद्धि और सौभाग्य को बढ़ाता है। तुलसी विवाह में सहभागी बनने से मानव जीवन में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है। Tulsi Vivah 2025

    तुलसी विवाह आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। 2 नवंबर, रविवार को सुबह 7:31 बजे से कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी और अगले दिन सोमवार, 3 नवंबर को सुबह 5:07 बजे तक शुभ मुहूर्त माना गया है। इस दौरान भगवान विष्णु और माता तुलसी की पूजा करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है। Tulsi Vivah 2025 Shubh Muhurat

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    तुलसी–शालिग्राम विवाह 2025

    तिलकामांझी महावीर मंदिर के पंडित आनंद झा ने बताया कि देवोत्थान एकादशी को श्रीहरि के जाग्रत होने के बाद द्वादशी तिथि को तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने की परंपरा है, जिसे सामान्य विवाह की तरह धूमधाम से निभाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वादशी को तुलसी पूजन और तुलसी विवाह कराने से कन्यादान के समान फल की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में तुलसी विवाह का विशेष महत्व माना गया है। कार्तिक शुक्ल नवमी को विवाह का शुभ मुहूर्त उत्तम माना जाता है। श्रद्धालु मानते हैं कि तुलसी, जिन्हें विष्णु प्रिया कहा गया है, उनके विवाह से घर परिवार पर शुभता और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

    भगवान विष्णु (शालिग्राम) की विधिवत पूजा

    देवोत्थान एकादशी पर शनिवार को शहर के मंदिरों और घर-घर में भगवान विष्णु (शालिग्राम) की विधिवत पूजा-अर्चना की गई। चार महीने के शयन के बाद भगवान विष्णु को जगाने की परंपरा के तहत श्रद्धालुओं ने अल्पना (चौक) बनाकर ईख खड़ा कर शालिग्राम भगवान को जागृत किया और विशेष भोग लगाया। परंपरा के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवोत्थान होता है। इसी के साथ धार्मिक आयोजनों का शुभारंभ माना जाता है।

    अल्पना पर उकेरे गए प्रतीक

    भक्तों ने अरवा चावल पीसकर चौक (अल्पना) बनाया। इसमें घर, भंडार-घर, हल, चौंकी, सीकर, खड़ाऊं, पैर और पशुधन से जुड़े प्रतीक उकेरे गए। भंडारण स्थल में 12 खाने बनाकर विभिन्न अन्न से उसे भरा गया। रात्रि के समय 3, 5 या 7 की संख्या में ईख खड़ी कर भगवान को जगाने की रस्म निभाई गई।

    मौसमी उपज का भोग

    पूजा में धूप, दीप, अगरबत्ती, अक्षत, चंदन, फूल एवं फल अर्पित किए गए। शालिग्राम भगवान को नया गुड़, दूध, दही, ईख, सुथनी, कन्ना (कच्चू), शकरकंद सहित मौसमी उपज का भोग लगाया गया। शहर के रामजानकी मंदिर, सूजागंज सहित कई मंदिरों में भी विशेष पूजन और भोग का आयोजन हुआ। दिनभर के उपवास के बाद रात्रि में भगवान को जागरण कर देव उठाने की परंपरा संपन्न की गई।

    चावल के पीठार से महिलाओं ने किया अरिपन

    शनिवार की रात्रि में कार्तिक शुक्ल पक्ष के देवोत्थान एकादशी पूजा धार्मिक अनुष्ठान के बीच पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाई गई। महिलाएं आंगन में चावल के पीठार से अरिपन कीं। मालूम हो कि हिंदू धर्म में देवोत्थान एकादशी का बहुत अधिक महत्व होता है। देवोत्थान एकादशी की तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है।इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवोत्थान एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

    शालिग्राम स्वरूप में भगवान विष्णु

    देवोत्थान एकादशी और द्वादशी का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की तुलसी से विवाह की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। हिन्दू धर्म में देवोत्थान एकादशी के दिन देवी-देवताओं के जाग्रत रूप में आने के बाद शादी-विवाह, उपनयन, मुंडन संस्कार, द्विरागमन, गृह प्रवेश, भूमि पूजन सहित अन्य शुभ कार्यों के दौर की शुरुआत होती है। महिलाओं के बनाए गए अरिपन पर रात्रि में पान,सुपारी, फूल के अलावे इस क्षेत्र में उपजने वाले विभिन्न तरह के अनाज,फल व सब्जी भी चढाने का रिवाज है।

    कोसी एवं मिथिलांचल में विशिष्ट महत्व

    कोसी एवं मिथिलांचल में इस पारंपरिक त्योहार का काफी विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व के बाद से किसानों के खाली पड़े घरों एवं सूने खलिहानों में भी नए फसल आने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस कारण इस दिन काफी विधि-विधान के साथ कुल देवता की भी पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवोत्थान के दिन सभी देवी-देवता शयन मुद्रा से उठकर पृथ्वी पर आकर पूजा घर में वास करते हैं।

    देवउठनी एकादशी को जाग्रत हुए भगवान विष्णु

    पौराणिक कथा के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर का वध किया था। इस दौरान दैत्य शंखासुर और भगवान विष्णु के बीच लंबे समय तक युद्ध चला था। युद्ध समाप्त होने के उपरांत भगवान विष्णु थककर क्षीरसागर में जाकर सो गए। वे कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को गहरे नींद से जगे। दूसरी ओर शास्त्रों के अनुसार भगवान अन्य एकादशी के दिन सोते है। जबकि देवोत्थान एकादशी के दिन जागते हैं।