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    बिहार में इनके पास है मैथिलों की 19 पुश्तों का हिसाब, महाराज हरि सिंह देव के समय से शुरू हुआ काम

    By Dilip Kumar ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 10 Feb 2022 09:46 PM (IST)

    समान गोत्र में विवाह रोकने के लिए मैथिल ब्राह्मणों का वंशावली सहेजने का काम आज की जा रही है। 19 पुश्तों से वंशावली भी तैयार करने का काम कर रहे पंजीकार। वंशावली निर्माण कार्य महाराज हरि सिंह देव के समय से ही काम शुरू हुआ।

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    विद्यानंद झा। मैथिल ब्राह्मणों का वंशावली सहजने का काम करते हैं।

    संजीव मिश्रा, कदवा (कटिहार)। मैथिल ब्राह्मणों का समान गोत्र में विवाह रोकने के लिए इनकी वंशावली सहेजने का काम आज भी जारी है। दरभंगा व मधुबनी से हर वर्ष पंजीकार वंशावली को अपडेट करने पहुंचते हैं। पंजीकारों के बीच गांवों व पंचायतों का भी बंटवारा रहता है। एक तरह से, डिजिटलाइजेशन के इस दौर में भी इनका क्रेज बरकरार है।

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    19 पुश्तों तक की वंशावली को सहेजकर रखने का काम पंजीकार करते हैं। पंजीकारों द्वारा पुश्त-दर-पुश्त यह काम किया जा रहा है। जिले के कदवा, सोनैली, कुम्हरी आदि स्थानों पर अभी पंजीकार वंशावली अपडेट करने का काम कर रहे हैं। पंजीकार विद्यानंद झा बताते हैं कि उनकी 19 पुश्तें यही काम कर रही हैं। कोसी, सीमांचल एवं मिथिला क्षेत्र के ब्राह्मण परविारों में लड़का एवं लड़की की शादी से पूर्व पंजीकार के यहां जाकर सात पीढ़ी तक के गोत्र की पड़ताल कराई जाती है।

    आधुनिक दौर में इस परंपरा में कहीं-कहीं बदलाव भी आया है। मान्यता है कि समान गोत्र में शादी करने से उत्पन्न संतान में कई प्रकार के दोष हो जाते हैं। इसलिए सात पुश्तों तक के गोत्र व मूल को खंगालने का काम किया जाता है। पंजीकारों के पास वंशावली उपलब्ध रहती है।

    ऐसे शुरू हुई व्यवस्था : 1326 ईसवी में मिथिला के राजा महाराज हरि सिंह देव के समय में एक मंत्री की अनजाने में उनकी दूर की रिश्ते की बहन से शादी हो गई। इस पर काफी विवाद हुआ। इसके बाद हर व्यक्ति की वंशावली बनाने का निर्णय लिया गया, ताकि ऐसी स्थिति फिर उत्पन्न ना हो। महाराज के आदेश पर मधुबनी जिले के पंडौक में विश्वचक्र सम्मेलन हुआ। इसमें महामहोपाध्याय गुणाकर झा पहले पंजीकार बने। उस समय से अलग-अलग स्थानों के लोगों से जानकारी लेकर मैथिल ब्राह्मणों की वंशावली तैयार करने का काम शुरू हुआ। पंजीकार विवाह तय कराने में भी अपनी भूमिका निभाते हैं। यजमान के द्वारा दिया गए दान ही पंजीकार का मेहनताना होता है।

    तिरहुत में लिखी गई पांडुलिपि : पंजीकार गुणानंद झा की 19वीं पीढ़ी के विद्यानंद झा इस कार्य मे लगे हुए हैं। उन्होंने अन्य पंजीकारों के सहयोग से 450 ईसवी से लेकर 2009 तक मिथिला क्षेत्र के विभिन्न ब्राह्मणों की वंशावली का वर्णन जीनोम मैप‍िंग एवं जीनयोलाजिकल मैंपिंग पुस्तक में किया है। उन्होंने मैथिली-इंग्लिश डिक्शनरी भी प्रकाशित कराई है। गुणानंद झा बताते हैं कि उनके पिता ने तिरहुत लिपि में लिखी वंशावली उन्हें दी थी। समय के साथ पांडुलिपि खराब होने लगी। इस कारण यजमानों के सहयोग से इसे प्रकाशित कराया गया।