Move to Jagran APP

नेताजी जयंती पर विशेष : युद्ध के दौरान भी आजाद हिंद फौज के सिपाही मनाते थे नेताजी की सालगिरह Bhagalpur News

भागलपुर के पुरानी सराय स्थित रानी झांसी रेजिमेंट की सेकेंड लेफ्टिनेंट आशा चौधरी ने नेताजी जयंती पर कई बातें साझा की। उन्होंने कहा नेताजी जैसे दृढ़ व्यक्ति छिप कर रहने वाले नहीं थे।

By Dilip ShuklaEdited By: Published: Thu, 23 Jan 2020 08:24 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jan 2020 08:24 AM (IST)
नेताजी जयंती पर विशेष : युद्ध के दौरान भी आजाद हिंद फौज के सिपाही मनाते थे नेताजी की सालगिरह Bhagalpur News
नेताजी जयंती पर विशेष : युद्ध के दौरान भी आजाद हिंद फौज के सिपाही मनाते थे नेताजी की सालगिरह Bhagalpur News

भागलपुर [विकास पाण्डेय]। विदेशी सहयोग व सरजमीं से ब्रिटिश सल्तनत से मातृभृमि को आजादी दिलाने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित आजाद हिंद फौज के सिपाही युद्ध के दिनों में भी अपने कमांडर इन चीफ नेताजी का जन्मदिन मनाना नहीं भूलते थे। यह कहना है उन कार्यक्रमों को साझा करने वाली भागलपुर के पुरानी सराय स्थित रानी झांसी रेजिमेंट की सेकेंड लेफ्टिनेंट आशा चौधरी का। इन्हें नेताजी संभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में देश की आजादी के जंग में हिस्सा लेने का गौरव मिला है। वह बताती है कि नेताजी ने तत्कालीन शक्तिशाली देश जापान के सहयोग से मातृभूमि को अंग्रेजों के चंगुल से स्वतंत्र करने का बीड़ा उठाया था। उनकी इच्छा से सहमति जताते हुए ब्रिटिश इंडिया की सेना की एक बड़ी टुकड़ी ने भी कर्नल मोहन सिंह के नेतृत्व में आत्मसमर्पण कर दिया था। इससे हमारी द्वितीय आजाद हिंद फौज शक्तिशाली हो गई थी। उस फौज के सहयोग से नेताजी ने 1945 में अंग्रेजी सल्तनत के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। रेजिमेंट की कर्नल लक्ष्मी सहगल के नेतृत्व में लड़ते-लड़ते हमलोग बर्मा की सीमा तक पहुंच गए थे। लेकिन उसी दौरान ब्रिटिश फौज द्वारा अंधाधुंध रूप से नापाम बम बरसाए जाने से हमारे फौजियों को नुकसान उठाना पड़ा। जंगलों के नष्ट हो जाने से उनके वहां छिपे रहने के साधन नहीं बचे थे। उसी दौरान मूसलाधार बारिश होने से हमारी फौज तक रसद पहुंचने में बाधा आने लगी। वैसी संगीन परिस्थिति में नेताजी सुभाष बोस ने युद्ध को कुछ समय के लिए स्थगित कर दिया था। वह बताती हैं कि युद्ध के दौरान भी फौज के सिपाही नेताजी सुभाष चंद्र बोस की सालगिरह मनाना नहीं भूले। हालांकि उस दौरान उसे छोटे रूप में ही मनाया गया था। उस अवसर पर आजाद हिंद फौज के सेनानियों का परेड हुआ। नेताजी को सलामी दी गई। उसके बाद सभी सैनिक अपनी-अपनी चौकियों पर तैनात हो गए थे। आजाद ङ्क्षहद फौज के सेक्रेटरी जनरल आनंद मोहन सहाय की सुपुत्री आशा चौधरी बताती हैं कि 1944 में 17 वर्ष की उम्र में वे नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में गठित आजाद हिंद फौज की सहयोगी रेजिमेंट रानी झांसी रेजिमेंट में शामिल हुई थीं। इससे पूर्व बैंकाक में इन्हें नौ माह की युद्ध संबंधी कड़ी ट्रेनिंग दिलाई गई थी। उसमें इन्हें राइफल चलाना, एंटी एअर क्राफ्ट गन चलाना, युद्ध के तरीके, गुरिल्ला युद्ध की बारीकियां आदि के प्रशिक्षण दिए गए थे। देश को आजादी दिलाने के लिए ब्रिटिश फौज से युद्ध के दौरान वे सिंगापुर, मलाया (अब मलेशिया) और बर्मा के युद्ध मैदान में सक्रिय रहीं थीं। 1944 में पापा के साथ इन्हें बैंकॉक में मनाए गए नेताजी के जन्मदिन समारोह में भी शरीक कोने का मौका मिला था। वह बताती हैं कि उसमें सबसे पहले पुरुष व महिला फौजी टुकडिय़ा द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस को सलामी दी गई थी। शाम को नेताजी की मौजूदगी में फौजियों की ओर से रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किए गए थे। उसमें एक समूह गीत पेश करने के दौरान वह बेसुरा हो गया। इस पर उपस्थित दर्शकों में हंसी का फौब्वारा छूट पड़ा था। यह देख सभी प्रतिभागी झेंप गए थे। लेकिन जब नेताजी मंच पर बोलने पहुंचे तो उन्होंने यह कहकर सभी को संतुष्ट कर दिया कि कई स्वरों वाला समूह गीत भला एक स्वर वाला कैसे हो सकता था। उसे तो अपने नाम के अनुरूप कई स्वरों वाला होना ही था। इसलिए उसके लिए शरमाने जैसी कोई बात नहीं है। उनके इस मनोविनोदी उद्गार से सभी प्रतिभागी फौजी खुश हो गए थे।

loksabha election banner

छिपकर रहने वाले नहीं थे सुभाष चंद्र बोस

आशा चौधरी का मानना है कि नेताजी जैसे दृढ़ व्यक्ति वर्षों तक छिप कर रहने वाले नहीं थे। इन्होंने व उनके पापा नेताजी के निकट सहयोगी व द्वितीय आजाद हिंद फौज के सेक्रेटरी जनरल स्व. आनंद मोहन सहाय ने बहुत पहले ही सरकार तथा जांच आयोगों को भारी मन से बता दिया था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस ताइवान के फारमोसा में 1945 में हुए विमान दुर्घटना में दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से शहीद हो चुके हैं। उनकी पवित्र अस्थि-राख जापान के टोक्यो स्थित रेंकोजी मंदिर में रखी हुई है। वहां से उसे स्वदेश लाया जाए। लेकिन देश के चोटी के नेताओं को न उनकी बातों पर भरोसा हुआ था और न नेताजी की अस्थि राख स्वदेश लाई गई।

सहाय ने नेहरू से की थी नेता जी की अस्थि राख स्वदेश लाने की पेशकश

आशा चौधरी का कहना है कि देश को आजादी मिलने के बाद पापा आनंद मोहन सहाय सिंगापुर, वियतनाम आदि कई देशों के राजदूत बनाए गए थे। नई दिल्ली में एक दिन पापा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू से जापान के टोक्यो स्थित रेंकोजी बौद्ध मंदिर में रखी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पवित्र राख लाने की पेशकश की थी। उस पर पं. नेहरू ने कहा था, ठीक है मैं तुम्हें उसे लाने के लिए विशेष जंगी जहाज देता हूं। तुम जापान से उसे ले आओ। लेकिन जरा सोचो कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परिजन अगर यह कह दें कि वह नेताजी की अस्थि-राख नहीं है, तब हमारी स्थिति क्या होगी? पापा का कहना था कि पं. नेहरू के इस तर्क को सुन कर वे खामोश हो गए थे।

देश को आजादी दिला कांग्रेस को सौंपना चाहते थे सत्ता

आशा चौधरी बताती हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की योजना थी कि आजाद हिंद फौज के सिपाही लड़ाई में ब्रिटिश सेना को पराश्त कर देश के स्वाधीनता आंदोलन के सिपाहियों से जा मिलेंगे और फिरंगियों से भारत माता को स्वाधीन करा लेंगे। नेताजी कहा करते थे कि उनकी व आजाद हिंद फौज की जिम्मेदारी सिर्फ भारत को आजाद करना है। उसके बाद सत्ता कांग्रेस के हाथों में सौंप दी जाएगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.