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    महान साहित्यकार रवींद्र नाथ ठाकुर का था यहां से आत्मीय संबंध

    By Dilip ShuklaEdited By:
    Updated: Thu, 07 May 2020 09:27 AM (IST)

    रवींद्र नाथ ठाकुर का भागलपुर से आत्‍मीय संबंध था। उन्हें जब-जब याद किया वे यहां पधारे। वे यहां दो बार आए थे। पहली बार 1910 व दूसरी बार 1912 में।

    महान साहित्यकार रवींद्र नाथ ठाकुर का था यहां से आत्मीय संबंध

    भागलपुर [विकास पांडेय]। प्राकृति की सतरंगी छटा को भी मानवीय संवेदना का स्वर देकर अन्यतम काव्य की रखना करने वाले विश्वविख्यात कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर का भागलपुर से आत्मीय संबंध रहा था। यही कारण है कि उन्हें जब-जब याद किया वे यहां पधारे। वे यहां दो बार आए थे। पहली बार 1910 व दूसरी बार 1912 में।

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    वे 1910 में 13 से 15 फरवरी को यहां के बंगीय साहित्य परिषद के तृतीय वार्षिक अधिवेशन के अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित किए गए थे। यूं तो महान उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय तथा सुरेंद्रनाथ गंगोपाध्याय, गिरिशनाथ गंगोपाध्याय, विभूति भूषण भट्ट, निरुपमा देवी सरीखी चोटी की बांग्ला साहित्याकारों के सहयोग से 1905 में ही बंगीय साहित्य परिषद् अस्तित्व में आ चुका था। लेकिन उस समय तक उसका भवन नहीं बन पाया था। इसलिए वह अधिवेशन 1854 में स्थापित भागलपुर इंस्टीच्यूट सह पब्लिक लाइब्रेरी में हुआ था।

    हिंदी के साहित्यकार व टीएनबी लॉ कॉलेज में हिंदी के प्राध्यापक प्रो. चंद्रेश के अनुसार, तीसरे दिन 15 फरवरी, 1910 को आयोजित खुले अधिवेशन में रवि बाबू ने अध्यक्षीय भाषण दिया था। उसमें उन्होंने बांग्ला साहित्य, कला व संस्कृति के संरक्षण व संवद्र्धन पर बल देते हुए संपर्क भाषा के रूप में हिंदी के विकास की आवश्यकता की बात कही थी।

     

    रवींद्रनाथ ठाकुर कवि, कथाकार, चित्रकार, शिक्षाविद् सहित बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इसलिए सभी वर्गों के लोग उनका सम्मान कर स्वयं को धन्य समझते थे। गीतांजलि काव्य कृति आने के साथ ही उनकी लोकप्रियता और बढऩे लगी थी। बिहार बंगाली समिति की उपाध्यक्ष व तिलकामांझी भागलपुर विवि में स्नातकोत्तर बांग्ला विभाग की पूर्व अध्यक्ष शर्मिला बाग्ची के अनुसार, उस समय 1912 में ब्रह्म समाज की भागलपुर इकाई के सदस्यों ने उनका सम्मान करने की ठानी। बहुत व्यस्त रहने के बावजूद रवि बाबू यहां आए थे। उस दौरान भी वे विश्वविद्यालय कार्यालय के समीप स्थित टिल्हा कोठी स्थित भवन में ठहरे थे। वहां से वे बग्धी पर सवार होकर सभा स्थल तक आए थे। विश्वविद्यालय की ओर से बाद में उस भवन का नामाकरण रवींद्र भवन रख दिया गया। ऊंचे टीले पर स्थित वह भवन और मानिक सरकार स्थित भागलपुर इंस्टीच्यूट आज भी देश की उस महान विभूति की याद संजोए हुए है। शर्मिला बाग्ची ने बताया कि इस बार लॉकडाउन के कारण सीमित कार्यक्रम के साथ कविगुरु की जयंती मनाई जाएगी।